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Chaurasi Kos ki Brij Yatra: क्या है बृज चौरासी कोस परिक्रमा का महत्व
Chaurasi Kos ki Brij Yatra: श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी दोनों ही उनको नहीं देखे और ना ही उनकी और ध्यान दिये जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई को क्रोध आ गया और बोले- हम यहाँ से गुजर रहे हैं और ये लोग विहार में इतने मद मस्त हैं कि इनको हमारी ओर जरा भी ध्यान नहीं है।
Chaurasi Kos ki Brij Yatra: एक दिन श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी अपने धाम श्री गौलोक में विहार कर रहे थे, दोनों विहार में इतने मद मस्त थे। उसी समय श्रीराधा रानी जी के भाई श्रीदामा वहाँ से गुजरे। श्रीराधा जी और श्रीकृष्ण जी दोनों ही उनको नहीं देखे और ना ही उनकी और ध्यान दिये जिस पर श्रीराधा रानी जी के भाई को क्रोध आ गया और बोले- हम यहाँ से गुजर रहे हैं और ये लोग विहार में इतने मद मस्त हैं कि इनको हमारी ओर जरा भी ध्यान नहीं है।
उन्होंने उन दोनों को श्राप दे दिया कि आप लोग में जितना अधिक प्रेम है आप दोनों उतने ही दूर चले जाओगे। श्राप देकर भाई तो चले गये। तब श्रीकृष्ण जी श्रीराधा रानी जी से बोले कि आपके भाई द्वारा दिए गये श्राप के फल को भोगने के लिए तो मृत्युलोक में जाना पड़ेगा, क्योंकि यहाँ तो इस श्राप को भोगने का कोई साधन नहीं है। ये सुन कर श्रीराधा रानी जी रोने लगीं, और भगवान श्रीकृष्ण जी से बोलीं कि हम तो मृत्युलोक नहीं जायेंगे क्यों कि वहाँ का लोक हमारे अनकूल नहीं है। वहाँ पाप अधिक है पुन्य कम है। तब भगवान श्रीकृष्ण जी बोले कि चाहे वहाँ जो भी हो, श्राप भोगने तो वहीँ जाना होगा।
श्रीराधा रानी जी मृत्युलोक में आने के लिए किसी भी प्रकार से तैयार नहीं हो रहीं थीं, तब अन्त में श्रीकृष्ण जी बोले कि एक उपाय है, क्यों ना हम इस गौलोक धाम को ही वहाँ ले चलें। इस पर श्रीराधा रानी जी मृत्युलोक आने के लिए तैयार हो गयीं। तब भगवान श्रीकृष्ण जी ने सर्व प्रथम श्रीयमुना जी को पृथ्वी (धरती) पर आने को कहा, फिर श्रीविरजा नदी का जल (पानी) श्रीयमुना जी में छोड़ा गया।
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी गौलोक धाम से (84) चौरासी अँगुल गौलोक धाम कि मिट्टी पृथ्वी पर एक सीमित क्षेत्र चौरासी कोस में बर्षा की, 84 कोस बराबर 252 कि.मी.। श्रीविरजा नदी का जल और श्रीगौलोक धाम की मिट्टी चौरासी कोस के क्षेत्र में एक साथ आने के कारण इस क्षेत्र का नाम ब्रज क्षेत्र पड़ा। फिर भगवान ने गोवर्धन पर्वत को बृज में आने का आदेश दिया।
राधा साध्य है उनको पाने का साधन भी राधा नाम ही है। मन्त्र भी राधा है और मन्त्र देने वाली गुरु भी स्वयं राधा जी ही है। सब कुछ राधा नाम में ही समाया हुआ है। सबका जीवन प्राण भी राधा ही हैl ऐसा माना जाता है कि यदि राधा जी के बिना भगवान श्री कृष्ण की आराधना की जाती है तो वह सफल और पूरी नहीं होती। यदि आप कृष्ण को पाना चाहते हैं तो राधा को तो याद करना ही होगा, क्योंकि कृष्ण के रोम—रोम में बसने वाली राधा ही उनके जीवन की स्वामिनी हैं। राधा के बगैर भगवान कृष्ण अधूरे हैं।
वेद तथा पुराणादि में राधाजी का ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है, वहीं वे कृष्णप्रिया हैं। कई पुराणों में यह लिखा गया है कि राधाजी श्री लक्ष्मीजी का अवतार थीं। जिस तरह विष्णु जी की पूजा श्री लक्ष्मीजी के बिना अधूरी होती है उसी प्रकार श्री कृष्णजी की पूजा राधाजी के बिना अधूरी होती है। राधा साध्य है उनको पाने का साधन भी राधा नाम ही है। मन्त्र भी राधा है और मन्त्र देने वाली गुरु भी स्वयं राधा जी ही है। सब कुछ राधा नाम में ही समाया हुआ है। और सबका जीवन प्राण भी राधा ही हैl