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कल से खुलेगा माँ का दरबार, लगेगी भक्तों की लम्बी कतार
नवरात्र में माँ की आराधना के लिये मंदिरों में भक्तों की कतार तो लगी ही रहती हैं। वहीं प्रदेश में एक मंदिर ऐसा भी हैं, जो सिर्फ नवरात्र के आखिरी तीन दिन ही खुलता हैं।
कानपुर: उत्तर प्रदेश के औद्योगिक नगरी कहें जाने वाले कानपुर शहर में नवरात्र की सप्तमी, अष्टमी, नवमीं कों ही मंदिर के कपाट खुलते हैं।
शक्ति की देवी दुर्गा के दर्शन और आराधना के लिए कानपुर के शिवाला में स्थित ’छिन्नमस्तिका देवी मंदिर‘ के कपाट साल में पडऩे वाले दो नवरात्रों के दौरान सप्तमी,अष्टमी और नवमी के दिन भक्तों के लिये खोले जाते है। चैत नवरात्र में कल सप्तमी को मंदिर का कपाट खुलेगा।
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यहाँ मां पार्वती के रूप में स्थित देवी की प्रतिमा धड़विहीन है। उससे निकलने वाली रक्त की तीन धारायें उनकी सहचरियों की प्यास बुझाते दिखती है। छिन्नमस्तिका माँ का दूसरा नाम ‘प्रचण्ड चण्डिका’ भी हैं।
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि निर्माण की अभिलाषा मन में संजोये मां पार्वती एक दिन अपनी दो सहचारियों डाकिनी और वॢणनी के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थी, कि इस बीच उन्हें काम और रति सहवास क्रीड़ा करते दिखे। यह देखकर मां तथा सहचरियों के कंठ अचरज के कारण सूख गये।
तब माता पार्वती ने अपने नाखूनों से अपना शीश छिन्न-भिन्न कर दिया। मां के कटे शीश से रक्त की तीन धाराये गिरी जिससे मां और सहचरियों ने अपनी प्यास बुझाई और विश्व में माता के इस रूप को छिन्नमस्तिका के रूप में जाना गया।
मंदिर से जुडे लोगों के मुताबिक कलयुग की देवी के रूप में विख्यात देवी के दर्शन के लिये इन तीन दिनों भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर के पट सप्तमी को खुलते है, जहाँ भोर में बकरे की बलि दी जाती है। तथा कटे सर पर कपूर रखकर माँ की आरती की जाती है, और नारियल फोड़ा जाता है
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इसके बाद मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिये खोल दिये जाते है। मंदिर में 23 महादेवियों के साथ 10 महाविद्यायें विराजमान है। मां का मूलनिवास झारखंड में हजारीबाग जिले के राजरप्पा गांव में स्थित है।
मनौती के लिये श्रद्धालु दो सेब तथा एक कलावा लेकर आते है, उसमें से एक सेब मां के दरबार में खाने का प्रचलन है और कलावा मंदिर के पुजारी से बंधवाया जाता है। यह कलावा मन्नत पूरी होने तक श्रद्धालु कलाई में बांधे रहते है।