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21 तोपों की ही सलामी क्यों? जानें क्या है इसका रहस्य, कहां से हुआ शुरू  

स्वतंत्रता दिवस हो या अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रीय दिवस 21 तोपों की सलामी दी जाती है। अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और कैनेडा सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व सरकारी दिवसों की शुरुआत पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है। 

SK Gautam
Published on: 26 Jan 2020 2:48 PM IST
21 तोपों की ही सलामी क्यों? जानें क्या है इसका रहस्य, कहां से हुआ शुरू  
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लखनऊ: 'इक्कीस तोपों की सलामी' आपने यह वाक्य अक्सर सुना होगा। यह सुनकर आप खुद अनुमान लगा लेते होंगे कि इक्कीस तोपों की सलामी क्यों दी जाती है। जाहिर सी बात है कि यह सलामी किसी के सम्मान में दी जाती है। लेकिन यह भी प्रश्न आपके मन में उठता होगा कि आख़िर सलामी के लिए 21 तोपें की क्यों, 20 या 22 तोपें क्यों नहीं होती?

हम आपके इन दोनों प्रश्नों का जवाब यहां पर दे रहे हैं

गौरतलब है कि स्वतंत्रता दिवस हो या अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रीय दिवस 21 तोपों की सलामी दी जाती है। अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ़्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और कैनेडा सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व सरकारी दिवसों की शुरुआत पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है।

इन सवालों का कोई निश्चित उत्तर तो मिलना थोड़ा कठिन है लेकिन कुछ घटनाएं और बातें ऐसी हैं जो इन सवालों को समझने में मदद कर सकती हैं।

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तोपों को चलाने के इतिहास

आपको बता दें कि तोपों को चलाने का इतिहास मध्ययुगीन शताब्दियों से शुरू हुआ। उस समय जब दुनिया में लड़ाईयां बहुत आम थीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय सेनाएं ही नहीं बल्कि व्यापारी भी तोपें चलाते थे। 14वीं शताब्दी में पहली बार तोपों को चलाने की परम्परा उस समय शुरू हुई जब कोई सेना समुद्री रास्ते से दूसरे देश जाती तो तट पर पहुंचते ही तोपों से फ़ायर करके यह संदेश देती थी कि उसका उद्देश्य युद्ध करना नहीं है।

युद्ध न करने का संकेत दिया जाता था तोपों से फ़ायर करके

सेनाओं की इस परम्परा को देखकर व्यापारियों ने भी एक से दूसरे देश की यात्रा करने के दौरान तोपों को चलाने का काम शुरू कर दिया। पराम्परा यह हो गई कि जब भी कोई व्यापारी किसी दूसरे देश पहुंचता या सेना किसी अन्य देश के तट पर पहुंचती तो तोपों से फ़ायर करके यह संदेश दिया जाता था कि वह लड़ने का इरादा नहीं रखते।

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ऐसे बढ़ी सलामी तोपों की संख्या

चौदवहीं शताब्दी तक सेना और व्यापारियों की ओर से 7 तोपों के फ़ायर किए जाते थे और इसका भी कोई स्पष्ट कारण मौजूद नहीं है कि सात फ़ायर क्यों किए जाते थे? कुछ बातों तथा इतिहास में प्रचलित पराम्पराओं से पता चलता है कि जैसे-जैसे दुनिया में विकास होता गया और बड़े समुद्री जहाज़ बनने लगे वैसे वैसे फ़ायर की जाने वाली तोपों की सखंया बढ़ती गई जो 21 तक पहुंच गई।

तोपों को शाही ख़ानदान के सम्मान में चलाने का प्रचलन

लगभत 3 शताब्दियों तक तोपें चलाने की यह प्रक्रिया इसी रूप में चलती रही लेकिन फिर 17वीं शताब्दी में पहली बार ब्रिटिश सेना ने तोपों को सरकारी स्तर पर चलाने का काम शुरू किया। ब्रिटिश सेना ने पहली बार 1730 में तोपों को शाही ख़ानदान के सम्मान में चलाया और संभावित रूप से इसी घटना के बाद दुनिया भर में सलामी देने और सरकारी ख़ुशी मनाने के लए 21 तोपों की सलामी की रीति चल पड़ी।

18वीं शताब्दी तोपों की सलामी के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई शुरुआती 20 वर्षों में अमरीका ने भी उसे सरकारी रूप से लागू कर दिया। 1810 में अमरीका ने इसे सरकारी रूप से लागू किया।

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यहां पहली बार शुरू हुआ 21 तोपों की सलामी

अमरीका में पहली बार 1842 में राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी अनिवार्य कर दी गई और अगले 40 साल बाद अमरीका ने इस सलामी को राष्ट्रीय सलामी के रूप में लागू कर दिया। 18वीं से 19वीं शताब्दी के शुरू होने तक अमरीका और ब्रिटेन एक दूसरे के प्रतिनिधिमंडलों को तोपों की सलामी देते रहे और 1875 में दोनों देशों ने एक दूसरे की ओर से दी जाने वाली तोपों की सलामी को सरकारी तौर पर मान्यता दे दी।

धीरे धीरे उपनिवेशों में भी यह सिलसिला चल पड़ा। यहां तक कि छोटे छोटे देशों और राजाओं ने भी तोपों की सलामी को सरकारी सम्मान के रूप में स्वीकार कर लिया।

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दुनिया के लगभग सारे ही देशों में 21 तोपों की सलामी का प्रचलन

गार्ड आफ़ आनर भी 21 तोपों की सलामी की तरह सरकारी सम्मान का महत्व रखता है। दुनिया के विभिन्न देश अपने यहां आने वाले दूसरे देशों के नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों को गार्ड आफ़ आनर पेश करते हैं।

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