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अंग्रेजों का जुल्म: घोड़ों के टापुओं वाला गांव, 11 महीने की जेल और भयानक यातनाएं

कानपुर शहर से लगभग 56 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में आने वाले मोहम्मदपुर गांव का जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है । सन् 1900 में नहर विभाग की जमीन पर अंग्रेजों ने अपना बेस कैंप बनाया था । ये इलाका अंग्रेजों के घोड़ों के टापूओं  का अवाज के लिए भी जाना जाता था ।

SK Gautam
Published on: 14 Aug 2019 6:59 PM IST
अंग्रेजों का जुल्म: घोड़ों के टापुओं वाला गांव, 11 महीने की जेल और भयानक यातनाएं
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कानपुर : अंग्रेजों की ये कोठी आज सैकड़ों साल से अजादी के दिवानों के इतिहास को समेटे हुए है । अंग्रेजों के जुल्मों से त्रस्त होकर हजारों ग्रामीणों ने हाथो में जलती हुई मसाल लेकर कोठी में आग लगा दी थी । सैकड़ो अंग्रेजों ने भागकर अपनी जान बचाई थी । इसके बाद अंग्रेजों ने 400 ग्रामीणों को चिन्हित कर कानपुर कारागार में डाल दिया था । ग्रामीणों को 11 माह की जेल और यातनाए झेलनी पड़ी थी । गांव वाले आज भी कोठी पर तिरंगा फहराकर अजादी के जश्न को मनाते है ।

कानपुर शहर से लगभग 56 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में आने वाले मोहम्मदपुर गांव का जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है । सन् 1900 में नहर विभाग की जमीन पर अंग्रेजों ने अपना बेस कैंप बनाया था । ये इलाका अंग्रेजों के घोड़ों के टापूओं का अवाज के लिए भी जाना जाता था । इस बेस कैंप में पुलिस विभाग के अफसर , नहर विभाग के अधिकारियों और तारबाबु के दफ्तर और आवास थे ।

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कोठी के ठीक बगल में एक हजारों वर्ष पुराना बरगद का पेड़ है जिस पर ग्रामीणों को बांधकर बेरहमी से पीटा जाता था

अंग्रेजों ने कोठी पर अपनी जरूरत की सभी चीजों का निर्माण कराया था । जिसमें पीने के पानी के लिए कुआं , प्रार्थना के लिए चर्च , रहने के लिए आवास और यातनाएं देने के लिए टार्चर रूम भी बनवाए थे । इसके साथ अंग्रेज इस कोठी पर आय दिन नाच गाने का भी आयोजन करते थे । कोठी के ठीक बगल में एक हजारों वर्ष पुराना बरगद का पेड़ है जिस पर ग्रामीणों को बांधकर बेरहमी से पीटा जाता था । लगान नहीे देने वाले किसानो को कई दिनों तक भूखा प्यासा बरगद के पेड़ से बांधकर रखा जाता था और उन्हे प्रताड़ित किया जाता था ।

मोहम्मदपुर के ग्रामीण कामता प्रसाद बताते है कि अंग्रेजी हुकुमत के बड़े अफसर इस अलीशान हवेली में रहते थे । वो ग्रामीणों और महिलाओं पर जुल्म करते है । जब कोठी में आग लगाई गई तो मेरी उम्र लगभग 13 वर्ष थी । लेकिन मेरी आंखो के सामने आज भी वो दृश्य जिंदा है । इस कोठी में रहने वाले अंग्रेज टांडेल ओर ओवर सराय बहुत ही क्रूर अफसर थे ।

ग्रामीण बैलगाड़ी पर बैठकर निकला तो उसपर कोड़ों की बरसात की जाती थी

उन्होने बताया कि कोठी के बगल से गंग नहर बहती है । अगर किसी भी ग्रामीण ने नहर के पानी का इस्तेमाल शौच क्रिया के लिए किया तो उस पर चार गुना लगान लगा दिया जाता था । यदि जुर्माना नहीं भरा तो प्रताड़ित किया जाता था वर्ना जेल जाना तय था । इसके साथ ही अंग्रेजों के सामने कोई ग्रामीण बैलगाड़ी पर बैठकर निकला तो उसपर कोड़ो की बरसात की जाती थी । बैलों को कांजी हाॅउस भेज दिया जाता था , बैलो को छुड़ाने के लिए किसानो से दोगुनी रकम अदा करनी पड़ती थी ।

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इस बेस कैंप के बनने से अंग्रेजो की ताकत लगातार बढती जा रही थी । अंग्रेज लगातार मजबूत होते जा रहे थे और ग्रामीण उनके गुलाम । अंग्रेज ग्रामीणो को पकड़ कर लाते थे उनसे कोठी की घास कटवाते थे । अंग्रेजो की अनुमति के बिना खेतो में अनाज नहीं बो सकते थे । बिना अनुमति के अनाज बेच नहीे सकते थे । वो हर बात पर आपत्ति दर्ज करते थे ।

जब नाचने वाली महिला ने लगान नहीं दिया तो पाई तो उसे गांव निकालवा दिया

ग्रामीण ओमप्रकाश के मुताबिक अंग्रेज बेस कैंप पर शाही पार्टी का आयोजन करते थे । एक किस्सा यहां का बहुत फेमस है अंग्रेजो ने अपनी पार्टी में बिरहर गांव की एक नाचने वाली महिला को बुलाया था । लेकिन वो किसी वजह से अंग्रेजो की पार्टी में नहीं आ पाई थी । अगले दिन अंग्रेजो ने उसे नहर से पानी लेते हुए देख लिया था । इस पर अंग्रेज अफसरों ने उस पर पांच सौ बीघा जमीन की सिंचाई का लगान लगा दिया था । जब नाचने वाली महिला लगान नहीं दे पाई तो उसे गांव निकालवा दिया था ।

बजरंगी दास बताते है कि इस कोठी के आसपास के दर्जनो गांव वाले अंग्रेजी हुकुमत से त्रस्त थे । 15 अगस्त सन् 1942 को मोहम्मदपुर, बिरहर, उमरा बरूई, दौपुरा और गौरीपुर समेत दर्जनो गांव ग्रामीणों ने बिरहर गांव के जगलों में इकट्ठा होकर कोठी में आग लगाने की योजना बनाई थी ।

मुखबिरों ने इसकी सूचना अंग्रेजो को दे दी थी

23 अगस्त की रात को दर्जनों गांव के हजारों ग्रामीण इकट्ठा हो कर हाथो में जलती हुई मसाल लेकर अंग्रेजो की कोठी में आग लगाने के लिए चल दिए । लेकिन मुखबिरों ने इसकी सूचना अंग्रेजो को दे दी थी । मुखबिरों की सूचना के बाद सैकड़ो अंग्रेज वहां से भाग निकले थे । वहीं ग्रामीणों ने अंग्रेजो की कोठी और उनके अवासो को आग के हवाले कर दिया था । उनके सभी दस्तावेज नष्ट कर दिए थे । सब कुछ उनका बर्बाद किया दिया गया था ।

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अगले दिन हजारो की संख्या में अंग्रेज सिपाही और अफसरों ने गांव पर धावा बोल दिया था

इसके अगले दिन हजारो की संख्या में अंग्रेज सिपाही और अफसरों ने गांव पर धावा बोल दिया था । घर के अंदर घुसकर महिलाओं बच्चो के साथ के मारपीट की थी । घरों पर तोड़फोड की थी गांव में जो भी पुरूष मिला उसे पकड़कर ले गए । मोहम्मदपुर गांव समेत आसपास के गांव के चार सौ लोगो पर मुकदमा दर्ज किया गया था । जिसमें सभी को ग्यारह माह की जेल हुई थी ।

लेकिन इस घटना के बाद अंग्रेजो ने कोठी को छोड़ दिया था । अब अब ये कोठी खंडहर में तब्दील हो गई है । लेकिन आज भी अंग्रेज 15 अगस्त को कोठी पर तिरंगा फैराकर आजादी का जश्न मनाते है ।



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