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रविदास जयंतीः काशी में ‘पॉलिटिकल शो’, अखिलेश-प्रियंका समेत कई दिग्गज शामिल
बनारस के सीरगोवर्धनपुर गांव की फिजां बदली-बदली नजर आ रही है। संत रविदास के जन्मोत्सव को मनाने के लिए जितनी भीड़ रैदासियों की है, उससे कहीं अधिक, अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता और नेता नजर आ रहे हैं।
वाराणसी: बनारस के सीरगोवर्धनपुर गांव की फिजां बदली-बदली नजर आ रही है। संत रविदास के जन्मोत्सव को मनाने के लिए जितनी भीड़ रैदासियों की है, उससे कहीं अधिक, अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ता और नेता नजर आ रहे हैं। हर कोई दलितों के सबसे बड़े संत के प्रति अपनी दरियादिली दिखाने का मौका नहीं चूकना चाहता। आलम ये है कि अखिलेश यादव, धर्मेंद्र प्रधान और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर जैसे सियासी दिग्गज एक दिन पहले ही बनारस में डेरा डाल चुके हैं तो दूसरी ओर प्रियंका गांधी का इंतजार है।
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जन्मस्थली पर लगता है सियासी जलसा
अब सवाल ये है कि संत रविदास के प्रति इतनी आस्था की वजह क्या है ? हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है जब रविदास की जयंती पर सीरगोवर्धनपुर गांव में सियासी जलसा लगेगा। इसके पहले भी राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, राष्ट्रपति के आर नारायणन, राज्यपाल उत्तर प्रदेश सूरज भान, कल्याण सिंह , मुलायम सिंह और मायावती जैसे नेता यहाँ आ चुके हैं, लेकिन जब से नरेंद्र मोदी बनारस से सांसद बने हैं, संत रविदास की जन्मस्थली, सियासत का बड़ा केंद्र बन गया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मंदिर में एक नहीं बल्कि दो बार मत्था टेक चुके हैं। तो दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी पीछे नहीं है। इस बार तो सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी दस्तक देने वाले हैं।
दलित वोटबैंक पर पार्टियों की नजर
उत्तर प्रदेश की सियासत में गुजरात लॉबी की एंट्री के बाद हालात बदल चुके हैं. आक्रामक शैली और मजबूत संगठन के बूते बीजेपी ने विरोधियों को हाशिए पर ला दिया है। सबसे ज्यादा नुकसान बीएसपी को हुआ है। साल 2014 के पहले दलित वोटबैंक पर बीएसपी का एकछत्र राज था। मायावती दलितों की सबसे बड़ी नेता हुआ करती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने इस तिलिस्म को तोड़ दिया. आलम ये हुआ कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का सूपड़ा साफ हो गया था।
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने सपा के साथ गठबंधन करके पार्टी में जान फूंकने की कोशिश जरुर की लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि बीजेपी को लेकर मायावती का साफ्ट नजरिया दलित वोटर्स को चुभ रहा है. दलित अब उहापोह में है। ऐसे में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस इस मौके को चूकना नहीं चाहती है। शायद यही कारण है कि प्रियंका गांधी के साथ अखिलेश यादव भी रविदास मंदिर में मत्था टेकने का मौका नहीं चूकना चाहते हैं।
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पूर्वांचल में प्रियंका का ‘दलित दांव’
साल 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगी प्रियंका गांधी भी रविदास के जन्मोत्सव में शरीक होकर दलितों को संदेश देना चाहती हैं। हालांकि ये दूसरा मौका होगा जब प्रियंका गांधी रविदास जयंती में शिरकत करने पहुंचेंगी। प्रियंका गांधी एक तरफ कृषि बिल को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के महापंचायत में मौजूदगी जता रही हैं तो दूसरी ओर पूर्वांचल में उनकी सियासत के केंद्र में दलित समाज है। पिछले दिनों प्रयागराज में उन्होंने नाविकों और निषादों से मुलाकात की थी और अब बनारस में रविदास जयंती में पहुंच रही हैं।
चूकना नहीं चाहते हैं चंद्रशेखर रावण
सियासी दिग्गजों के बीच भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर पर भी लोगों की नजरें हैं। निश्चित तौर पर दलित युवाओं में चंद्रशेखर रावण का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। वो खुद को मायावती का ‘उत्तराधिकारी’ के तौर पर पेश करते हैं। दलितों के बीच चंद्रशेखर ये संदेश देने की कोशिश करते हैं कि मायावती का मैजिक अब खत्म हो चुका है। बनारस के बाबतपुर एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही चंद्रशेखर ने योगी सरकार पर निशाना साधा तो उन्होंने मायावती पर भी तंज किया।
उन्होंने कहा कि बुआ आराम कर रही है, भतीजा काम कर रहा है। रविदास जयंती के बहाने चंद्रशेखर पूर्वांचल में अपनी राजनैतिक जमीन को टटोल रहे हैं। यकीनी तौर पर उनकी नजरें साल 2022 के विधानसभा चुनाव पर हैं, जिसे लेकर वो पूर्वांचल के नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी करने वाले हैं।
पॉलिटिकल शो में बीजेपी भी पीछे नहीं
रविदास के बहाने होने वाले पॉलिटिकल शो में बीजेपी भी पीछे नहीं है। हालांकि इस बार नरेंद्र मोदी और योगी जैसे हैवीवेट नजर नहीं आएंगे। फिर भी पार्टी की ओर से केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान नुमाइंदगी करेंगे. इसके पीछे की वजह भी बताई जा रही है. नरेंद्र मोदी ने रविदास के जन्मोत्सव के कायाकल्प के लिए बड़ा खांका खींचा था। लगभग 46 करोड़ रुपए की परियोजना के तहत रविदास मंदिर में एक पार्क, लंगर हॉल और संत रविदास की भव्य प्रतिमा लगनी थी। कोरोना काल और प्रशासनिक उदासीनता के चलते ये परियोजनाएं अभी तक परवान नहीं चढ़ पाई हैं।
रिपोर्ट: आशुतोष सिंह