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प्राइमरी टीचर्स ट्रांसफर मामलाः हाईकोर्ट ने यूपी सरकार के फैसले को बताया सही
न्यायालय ने कहा है कि गंभीर बीमारियों से पीड़ित शिक्षकों का चिकित्सकीय आधार पर दोबारा स्थानातंरण हो सकता है। दिव्यांगों को भी विशेष परिस्थिति में लाभ मिल सकता है।
लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी के प्राथमिक शिक्षकों के अंतर्जनपदीय स्थानातंरण पर लगी रोक हटा ली है। उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद यूपी सरकार को भी बड़ी राहत मिली है। इससे अब यूपी के बेसिक शिक्षा विभाग के 54 हजार शिक्षकों का स्थानातंरण हो सकेगा। एक लाख से ज्यादा शिक्षकों के एक से दूसरे जिले में तबादले के लिए आवेदन किया था। उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार के फैसले को सहीं करार देते हुए कहा है कि सामान्य परिस्थितियों में एक बार स्थानातंरण किए जा चुके शिक्षकों का दोबारा स्थानातंरण नहीं किया जा सकता है लेकिन विशेष परिस्थितयां हैं तो दूसरी बार भी स्थानातंरण किया जा सकता है।
न्यायालय ने कहा है कि गंभीर बीमारियों से पीड़ित शिक्षकों का चिकित्सकीय आधार पर दोबारा स्थानातंरण हो सकता है। दिव्यांगों को भी विशेष परिस्थिति में लाभ मिल सकता है। साथ ही ऐसी विवाहित महिला शिक्षक जिन्होंने शादी से पहले स्थानातंरण लिया था और अब जरूरत के आधार पर ससुराल वाले जिले में स्थानातंरण पाना चाहती हैं, वो भी इस दायरे में आ सकती हैं। खास बात ये है कि बीच सत्र में तबादले नहीं हो सकेंगे, लेकिन इस बार ये आदेश लागू नहीं होगा।
तबादला सूची जारी करने पर लगी थी रोक
इससे पहले बीती 15 अक्टूबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बेसिक शिक्षा परिषद के अध्यापकों के अंतर जिला तबादला सूची जारी करने पर रोक लगा दी थी। अंतर्जनपदीय तबादले के मामले में याचिका पर सुनवाई पूरी होने पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित करते हुए आदेश किया था कि इस प्रकरण में सभी बिंदुओं को न्यायालय ने खारिज कर दिया है, केवल एक बिंदु कि जो एक बार स्थानांतरण का लाभ ले चुके हैं उन्हें पुनः मौका दिया जाय कि नही पर फैसला सुरक्षित कर लिया गया है। न्यायालय ने कहा कि 3 नवंबर को फैसला आएगा तब तक आवेदनों के संबंध में जो भी कार्य शेष हो उसे राज्य सरकार पूरा करे लेकिन ट्रांसफर लिस्ट जारी नहीं होगी।
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बता दें कि दिव्या गोस्वामी, जयप्रकाश शुक्ल सहित तमाम अध्यापकों ने अंतर जिला स्थानांतरण को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी थी। याचिकाओं में अंतर जिला तबादले के तहत पुरुष व महिला अध्यापिकाओं के स्थानांतरण के लिए निर्धारित नियमों, पूर्व के आदेशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा गया था कि स्थानांतरण वर्ष 2008 की नियमावली के विपरीत किए जा रहे हैं। नई स्थानांतरण नीति में प्राविधान है कि एक बार जिस शिक्षक ने स्थानांतरण ले लिया वह दोबारा नहीं ले सकता, जबकि 2017 के शासनादेश में ऐसा प्राविधान नहीं था, जिसे 2018 में हटा लिया गया था।
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अब 2019 के शासनादेश में फिर से वही प्राविधान लागू कर दिया गया। याचीगणों का कहना था कि ये नियमित स्थानांतरण नहीं है। जिन अध्यापकों को पूर्व में अपने गृह जिले में नियुक्ति नहीं मिली उनको दोबारा स्थानांतरण की मांग करने का अधिकार है। इससे उनको वंचित नहीं किया जा सकता है। नियमावली में बदलाव करने का कोई कारण नहीं बताया गया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया था।
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