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रचनात्मक लोकतत्वों से आधुनिक रंगकर्म में हो रहे अद्भुत प्रयोग
प्रकृति और लोक तत्व हमेशा से मानव को आकर्षित करते रहे हैं। कोई भी चीज पहले लोक में विद्यमान होती है और फिर शास्त्रीय रूप में आकार लेती है। आधुनिक नाटक में लोक नाट्य में अद्भुत प्रयोग हुए हैं और हो रहे हैं। लुप्त होती लोक विधाओं में व्यापक दृष्टि से काम करने की जरूरत है।
लखनऊ : प्रकृति और लोक तत्व हमेशा से मानव को आकर्षित करते रहे हैं। कोई भी चीज पहले लोक में विद्यमान होती है और फिर शास्त्रीय रूप में आकार लेती है। आधुनिक नाटक में लोक नाट्य में अद्भुत प्रयोग हुए हैं और हो रहे हैं। लुप्त होती लोक विधाओं में व्यापक दृष्टि से काम करने की जरूरत है।
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रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया
कुछ ऐसे ही विचार छोटे कद के बड़े रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया ने यहां उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के गोमतीनगर सभागार में आज दोपहर अभिलेखागार रिकार्डिंग करते हुए व्यक्त किये। आधुनिक नाटक में लोक नाट्य का प्रयोग विषय पर सवालों के साथ उनके सामने प्रख्यात कला समीक्षक कृष्णमोहन मिश्र थे। यह कार्यक्रम अकादमी के फेसबुक पेज पर कलाप्रेमियों के लिए जीवंत प्रसारित भी हो रहा था। अकादमी के सचिव तरुणराज ने बताया कि करोना संकट काल में अकादमी की गतिविधियां मानकों का पालन करते हुए लगातार चल रही हैं। अकादमी के फेसबुक पेज पर यह रिकार्डिंग भी लाइव थी। इसे सम्पादित करके रंगकर्म हितार्थ अकादमी के यूट्यूब चैनल पर भी डाला जायेगा। ऐसी गतिविधियां आगे भी क्रमानुसार संचालित की जाएंगी।
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लेखक व रंगनिर्देशक
कार्यक्रम में अपने अनुभव और लेखक व रंगनिर्देशक के तौर पर अपने कृतित्व और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र का उल्लेख करते हुए श्री पोखरिया ने बताया कि लोक में गीत-संगीत, नृत्य और अभिनय आदि से सम्बंधित अनेकानेक अभिव्यक्ति की परम्पराएं हैं। लोक की सबसे बड़ी पहचान संगीत है। चित्रांकन भी एक बड़ी अभिव्यक्ति रही है। प्रदेश के लोक नाट्यों में नौटंकी गीत-संगीत और अभिनय आदि से भरी एक अद्भुत कला रही है जो लुप्त हो रही है और इसे सहेजने की जरूरत है। महाराष्ट्र की तमाशा शैली और तमिलनाडु की अत्यंत ऊर्जावान तेरुकुत्तु शैली भी उन्हें अत्यंत प्रभावकारी लगी। उन्होंने बताया कि दिल्ली में कई दिन चले एक लम्बे सांस्कृतिक आयोजन से उन्हें भी अपनी लोककलाओं को रंगमंच पर उतारने की प्रेरणा मिली। अपने पर्वतीय गृहक्षेत्र और कुमाऊं की लोक कलाओं का हवाला देते हुए श्री पोखरिया ने बताया कि उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र के साथ ही बुंदेलखण्ड में लोकतत्वों को लेकर काम किया। विशेषकर थारू जनजाति पर काम करते हुए उन्हें नये अनुभव मिले।
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नौटंकी की लोकगरिमा
उन्होंने बताया कि नौटंकी की लोकगरिमा को बरकरार रखते हुए रंगनिर्देशक उर्मिलकुमार थपलियाल ने हरिश्चन्नर की लड़ाई जैसी उल्लेखनीय प्रस्तुति दी। इसी तरह आतमजीत सिंह ने नौटंकी में नये विषय उठाए। लोक में हबीब तनवीर ने अपनी एक अलग शैली गढ़ी। रतन थियम ने मणिपुरी लोकतत्वों को जोड़कर अपनी शैली बनाई तो वामन केन्द्रे, कन्हाईलाल, बंसी कौल, सतीश आनन्द, संजय उपाध्याय जैसे रंग निर्देशकों ने लोक नाट्यों पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। चर्चा के आरम्भ में अकादमी की नाट्य सर्वेक्षक शैलजाकांत पाठक ने दर्शकों का अभिनंदन करते हुए परिचय कराया।