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बसपा बेहद कमजोर: सरकार बनाने के दावे, पर सदन के अंदर-बाहर ऐसा हाल
बहुजन समाज पार्टी भले ही अगले विधानसभा चुनाव मे सरकार बनाने के दावे कर रही हो पर हालत यह है कि पार्टी की हालत विधानसभा में कमजोर होती जा रही है। जहां उसके पास पार्टी नेताओं का अभाव बढ़ता जा रहा है वहीं विधायकों की संख्या भी लगातार कम हो रही है।
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी भले ही अगले विधानसभा चुनाव मे सरकार बनाने के दावे कर रही हो पर हालत यह है कि पार्टी की हालत विधानसभा में कमजोर होती जा रही है। जहां उसके पास पार्टी नेताओं का अभाव बढ़ता जा रहा है वहीं विधायकों की संख्या भी लगातार कम हो रही है। विधानसभा चुनाव 2017 के चुनाव में बसपा के सदस्यों की संख्या 19 थी। वहीं अब यह संख्या लगातार घाटी ही जा रही है।
सदस्यताा खत्म करने को लेकर आवेदन
विधानसभा चुनाव के एक साल बाद ही साल 2018 में सबसे पहले उन्नाव से बसपा विधायक अनिल सिंह ने एमएलसी चुनाव में बगावत कर दी और वह भाजपा के साथ हो गये। इसके बाद अंबेडकर नगर से विधायक रितेश पांडेय सांसद बन गए। जब इस सीट पर उप चुनाव हुआ तो यहां सपा ने यह सीट जीतकर अपने पाले में कर ली। बसपा सुप्रीमों ने पार्टी के पुराने नेता रामवीर उपाध्याय को इसी बीच पिछले साल पार्टी से निष्कासित कर दिया। अब पार्टी विधानसभा में उनकी सदस्यताा खत्म करने को लेकर आवेदन करने जा रही है।
राज्य सभा चुनाव में पार्टी का नुकसान
इस बार राज्य सभा चुनाव में पार्टी का नुकसान होता उस समय होता दिखाई दिया जब उसके 7 विधायक बागी रुख अपनाकर समाजवादी पार्टी कार्यालय में पहुंच गए। इसके बाद मायावती ने आज इन विधायकों असलम राइनी ( भिनगा-श्रावस्ती) असलम अली (ढोलाना-हापुड़) मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-इलाहाबाद) हाकिम लाल बिंद (हांडिया- प्रयागराज) हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर) सुषमा पटेल( मुंगरा बादशाहपुर) वंदना सिंह ( सगड़ी-आजमगढ़) को पार्टी से निष्कासित कर दिया।
पार्टी के एक अन्य सदस्य उमा शंकर सिंह
यहीं नहीं राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा जोरो पर है कि जल्द विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा, सुखदेव राज भर भी पार्टी से किनारा कर सकते हैं। पार्टी के एक अन्य सदस्य उमा शंकर सिंह की सत्ता से नजदीकियों किसी से छिपी नहीं हैं। खास बात यह है कि बसपा विधायक मुख्तार अंसारी जेल में है और पार्टी के ब्राम्हण विधायक विनय शंकर तिवारी सीबीआई के चंगुल फंस चुके हैं।लेकिन मायावती की कोशिश अब फिर से 2007 के विधानसभा चुनाव के प्रयोग को दोहराने की है। उन्हें लगता है कि ‘सोशल इंजीनियरिंग’ फार्मूले के तहत ब्राह्मण मुस्लिम और पिछड़ा-दलित कार्ड का लाभ भविष्य की राजनीति में फिर से पाया जा सकता है।
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ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन
जातीय आधार पर देखा जाए तो यूपी में दलितों की आबादी 15 प्रतिशत और ब्राम्हणों की आबादी 12 प्रतिशत को जोड़ने के साथ ही 54 प्रतिशत पिछड़ा वोट बैंक के और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट किसी भी दल की किस्मत बदलने के लिए काफी है। मायावती 2007 की तर्ज पर ब्राह्मण वोटो को अपनी झोली में लाने के लिए सतीश चंद्र मिश्र पहले से ही पार्टी में इस बड़े वोट बैंक को अपने पाले में रखने के लिए कवायद करते रहते हैं। माना जा रहा है कि बसपा इन दिनों ब्राह्मणों की हो रही उपेक्षा को ध्यान में रखकर विधानसभा चुनाव के पहले एक बार फिर ब्राह्मण सम्मेलनों का आयोजन करेगी। मायावती यही प्रयोग फिर से करने के प्रयास में है।
श्रीधर अग्निहोत्री
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