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औरैया के किसानों का दर्द: कृषि कानून नहीं, अगली फसल की चिंता
कृषि किसान बिल संशोधन को लेकर विपक्षी पार्टियां आंदोलन कर रही हैं, लेकिन किसान अपने खेतों में काम कर रहा है। उनका कहना है कि पहले ही नुकसान झेल चुके हैं। अब बिना मतलब में आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ा है। उन्हें अपने मेहनत पर पूरा भरोसा है।
औरैया: कृषि किसान बिल संशोधन को लेकर विपक्षी पार्टियां आंदोलन कर रही हैं, लेकिन किसान अपने खेतों में काम कर रहा है। उनका कहना है कि पहले ही नुकसान झेल चुके हैं। अब बिना मतलब में आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ा है। उन्हें अपने मेहनत पर पूरा भरोसा है।
सदर विकासखंड के ग्राम सुरान में धान की दो सौ बीघा व सब्जी की करीब पांच सौ बीघा खेती होती है। यहां की आवादी 2400 है। किसानों का मानना है कि मेहनत का फल मीठा होता है, इस बार वह अच्छी खेती करने के लिए प्रयासरत हैं।
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ग्राम पंचायत सुरान में सब्जी की तकरीबन दो सौ बीघा व धान पांच सौ बीघा की फसल होती है। इस गांव के किसान गाजर, बैगन, तरोई, खीरा व लौकी की खेती होती है। कृषि किसान बिल संशोधन को लेकर जहां विपक्षी पार्टियां आंदोलनरत हैं, वहीं किसानों को इस समय खेती जुताई और नई फसल उगाने की अधिक चिंता सता रही है। इस ग्राम पंचायत में 1200 वोटर हैं, तकरीबन 2400 की आवादी है।
यहां के अधिकतर परिवार कृषि पर ही निर्भर हैं, वह मौसमी खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। इस बार धान की खेती में जहां नुकसान हुआ है और करीब 60 फीसद किसानों ने प्राइवेट आढ़त पर 1100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से धान बेंचा है। वहीं दिसंबर माह के पहले सप्ताह में कम सर्दी पड़ने के कारण सब्जी की खेती में भी नुकसान हुआ है। नई फसल के लिए वह दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।
बोले किसान...
- सुरान निवासी सुमित नारायण ने बताया कि वह किसी राजनैतिक पार्टी के प्रभाव में नहीं आना चाहते हैं। इस बार पहले ही सब्जी की खेती में नुकसान हुआ है। अब वह आगे की फसल किसी पार्टी के प्रभाव में आकर बर्वाद नहीं करना चाहते। रुपयों की जरूरत है, वह खुद कर्ज लेकर अपनी फसल तैयार कर रहे हैं।
- किसान अश्विनी कुमार ने बताया कि पिछले बार दो बीघा खेत में करीब एक लाख रुपये की गाजर हुई थी। इस बार मौसम की मार के चलते मात्र पचास हजार रुपये की ही गाजर हुई हैं। वह किसी के बहकावे में नहीं आएंगे। मेहनत करके ही बेहतर फसल करेंगे।
- सुनीता देवी ने बताया कि वह बटाई पर खेती लेकर मौसमी सब्जी की फसल करती हैं। पहले लॉकडाउन के दौरान उनका काफी नुकसान हुआ है। अब मौसम के उतार-चढ़ाव के चलते अच्छी फसल नहीं हो रही है। अब बच्चों को पढ़ाने व उनकी फीस भरने की चिंता सता रही है।
- पुष्पा देवी ने बताया कि इस बार उनके एक बीघा खेत में मात्र छह क्विंटल ही धान हुई। सरकारी क्रय केंद्र पर पहुंची तो तमाम झंझट बता दिए गए। आगे की फसल बोने के लिए रुपयों की सख्त जरूरत थी, इसलिए उन्होंने प्राइवेट केंद्र पर ही 1100 रुपये प्रति क्विंटल से हिसाब से धान बेंच दिया।
रिपोर्टर प्रवेश चतुर्वेदी औरैया
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