अयोध्या ने बदल दी देश की राजनीति, विरोधियों की धार कुंद, BJP को मिली बुलंदी

देश की सियासत को पिछले साढ़े तीन दशक के दौरान जिस मुद्दे ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है वह है अयोध्या। इस अकेले मुद्दे ने देश की राजनीति और राजनीतिक दलों की ताकत में बड़ा अंतर पैदा कर दिया।

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Published on: 5 Aug 2020 4:07 AM GMT
अयोध्या ने बदल दी देश की राजनीति, विरोधियों की धार कुंद, BJP को मिली बुलंदी
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। देश की सियासत को पिछले साढ़े तीन दशक के दौरान जिस मुद्दे ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है वह है अयोध्या। इस अकेले मुद्दे ने देश की राजनीति और राजनीतिक दलों की ताकत में बड़ा अंतर पैदा कर दिया। इस मुद्दे ने देश की सियासत को किस हद तक प्रभावित किया है इसे इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा शून्य से शिखर पर पहुंच गई है जबकि उसकी विरोधी पार्टियां कांग्रेस और कम्युनिस्ट की ताकत लगातार कमजोर होती जा रही है। अयोध्या में बुधवार को मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के साथ ही देश की सियासत का एक महत्वपूर्ण अध्याय पूरा होगा।

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1984 में दो सीटों पर सिमटी भाजपा

राम मंदिर का मुद्दा गरम होने से पहले 1984 का आम चुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पैदा हुई सहानुभूति लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने अपने विरोधी दलों को जमीन सुंघा दी थी। राजीव गांधी विशाल बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हो गए थे। भाजपा की हालत तो यह हो गई थी कि लोकसभा में उसकी ताकत दो सदस्यों पर सिमट गई थी। ऐसे माहौल में विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर का ताना-बाना बुनना शुरू किया और दिल्ली में इसके लिए रूपरेखा तैयार की गई।

भाजपा के एजेंडे में अयोध्या आंदोलन

1989 में देश की सियासत में फिर नया मोड़ आया और भाजपा ने अपने पालमपुर अधिवेशन में अयोध्या आंदोलन को अपने एजेंडे में शामिल कर इसे नई धार देने की सियासी जमीन तैयार कर दी। विश्व हिंदू परिषद ने अशोक सिंघल की अगुवाई में अयोध्या मामले को गरमाने के लिए देश भर में अभियान शुरू कर दिया। माहौल गरमाता देखकर तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने 1989 में अयोध्या में शिलान्यास करने की अनुमति दे दी।

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मंडल के जवाब में कमंडल का दांव

1989 में राजीव गांधी के सत्ता से बेदखल होने के साथ ही देश का सियासी माहौल भी पूरी तरह बदल गया। बोफोर्स के मुद्दे पर कांग्रेस से बगावत करने वाले वीपी सिंह भाजपा और वामपंथी दलों के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन कांग्रेस के खिलाफ किया गया यह प्रयोग लंबे समय तक नहीं चल सका। वीपी सिंह ने जब मंडल मुद्दे का कार्ड चला तो भाजपा ने उसका जवाब देने के लिए कमंडल मुद्दे को गरमा दिया।

आडवाणी की रथयात्रा से गरमाई सियासत

1990 में तो देश का सियासी माहौल पूरी तरह रामामय हो गया और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा पर निकल पड़े। हालांकि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव उनकी इस यात्रा की राह में दीवार बनकर खड़े हो गए मगर भाजपा इसे रथयात्रा के जरिए मंदिर मुद्दे को देशभर में गरमाने में कामयाब रही।

1992 दिल्ली में प्रधानमंत्री के रूप में पी वी नरसिंह राव थे तो उत्तर प्रदेश की सत्ता कल्याण सिंह के हाथ में थी। इसी साल 6 दिसंबर को ऐसी घटना हुई जिसमें देश की सियासत में आमूलचूल बदलाव ला दिया। कारसेवकों की अनियंत्रित भीड़ ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ढहा दिया।

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विपक्षी हुए कमजोर,भाजपा हुई मजबूत

इस मुद्दे के गरमाने के साथ ही भाजपा की ताकत भी लगातार बढ़ती रही और अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में राजग की सरकार बन गई। बाजपेयी सरकार के कार्यकाल में तो यह मामला ज्यादा तूल नहीं पकड़ सका मगर मोदी सरकार के आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में तेजी से सुनवाई हुई और आखिरकार फैसला रामलला विराजमान के हक में गया। इस पूरे प्रकरण के दौरान भाजपा अपनी सियासी जमीन को और मजबूत करने में कामयाब हुई जबकि विपक्ष की राजनीतिक धार लगातार कुंद होती चली गई।

भारतीय जनमानस में राम की गहरी पैठ

भारतीय जनमानस राम की ताकत का एहसास अब कांग्रेस को भी होने लगा है। यही कारण है कि अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन के मौके पर कांग्रेस के नेता भी राममय में होते दिख रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने राम की महत्ता बताते हुए राम मंदिर के पक्ष में बयान जारी किया है तो मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हनुमान चालीसा पढ़ने को मजबूर हो गए हैं। अयोध्या में भूमि पूजन के मौके पर कोरोना संकट काल में भी पूरे देश में उल्लास का माहौल दिखना इस बात का पक्का सबूत है कि भारतीय जनमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की कितनी गहरी पैठ है।

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