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झांसी में नहीं मिल रहा योजनाओं का लाभ, आखिर कौन करायेगा श्रम कानूनों का पालन
महानगर झांसी में जेडीए द्वारा बनवाये जा रहे अटल एकता पार्क में मजदूरों की दशा बहुत खराब है। यहां लगभग किसी भी मजदूर का श्रम विभाग में पंजीकरण नहीं कराया गया है।
झांसी: किसी भी सरकारी या गैर सरकारी निर्माण कार्य में काम करने वाले मजदूरों का पंजीकरण कराना अनिवार्य है जिससे उसे श्रम विभाग द्वारा चलाई जा रही तमाम योजनाओं का लाभ और उचित मजदूरी मिल सके, ताकि उसके हित सुरक्षित हों, जिससे उसके परिवार का भरण पोषण हो सके। लेकिन यह सब कागजी बातें हैं धरातल पर यह दिखाई नहीं देतीं। इसकी वजह है कि महानगर झांसी में ज्यादातर सरकारी निर्माण कार्यों में श्रम विभाग के कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है। यहां न तो मजदूरों का श्रम विभाग में पंजीकरण कराया जाता है और न ही उन्हें वह तमाम सुविधाएं ठेकेदार या सम्बंधित विभाग के अधिकारी उपलब्ध कराते हैं जिन्हें सरकार अनिवार्य मानती है।
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अटल एकता पार्क में मजदूरों की दशा बहुत खराब है
महानगर झांसी में जेडीए द्वारा बनवाये जा रहे अटल एकता पार्क में मजदूरों की दशा बहुत खराब है। यहां लगभग किसी भी मजदूर का श्रम विभाग में पंजीकरण नहीं कराया गया है। मजदूरों को सरकार द्वारा चलाई जा रही किसी भी श्रमिक हित की योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। छोटी-छोटी पॉलिथीन की तंग झोपड़ियों में मजदूरों परिवार रहने को मजबूर हैं। इन झोपड़ियों में न तो स्वच्छ ताजी हवा जाती है और न ही रोशनी ही आती है। सर्दियों में भीषण ठंड में मजदूर ठिठुरते हैं तो गर्मियों में इनमें तापमान जब ज्यादा हो जाता है तो सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
झंडा बुलंद करने वाली संस्थाओं ने ध्यान दिया
ऐसे में श्रमिकों का परिवार इन झोपड़ियों में कैसे गुजर-बसर करता होगा इसकी सुध न तो निर्माण कार्य की देखरेख कर रहे अधिकारियों ने ली और न ही श्रमिकों को हितों का झंडा बुलंद करने वाली संस्थाओं ने ध्यान दिया। लॉकडाउन के समय इन मजदूरों की हालत बहुत खराब रही। यहां महिलाओं को नहाने व शौच के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं है। खुले में चूल्हे में लकड़ियां जलाकर रोटी पकाती हैं। बच्चों का बुरा हाल है। बच्चों के माता-पिता जब मजदूरी कार्य करते हैं तब बच्चे लगभग लावारिस हालात में होते हैं, यहां उन्हें पढ़ाने या खेलने-कूदने की कोई व्यवस्था नहीं है।
क्या हैं श्रमिकों के हित-
कार्यदायी संस्था या ठेकेदार द्वारा मजदूरों के लिये आवास की व्यवस्था की जानी चाहिये जहां बिजली, पानी और हवा की व्यवस्था हो। मजदूरों का स्वास्थ्य सही रहे इसके लिए उनके स्वास्थ्य सम्बंधी चैकअप, दवाइयां आदि की व्यवस्था हो। बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था के साथ उनके खेलने का स्थान हो। गर्भवती महिला श्रमिकों के लिये पौष्टिक आहार की सम्बंधित आंगनबाड़ी केंद्र से व्यवस्था हो। मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिले। इसके साथ सबसे महत्वपूर्ण श्रम विभाग में मजदूरों का पंजीकरण कराना है, ताकि उन्हें श्रमिक दुर्घटना बीमा,बेटियों की शादी, छात्रवृत्ति आदि का लाभ मिल सके।
क्या कहते हैं मजदूर-
आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां काम करने वाले अधिकांश मजदूर दूसरे जनपदों से लाये गये हैं। मौके पर मौजूद मजदूरों का कहना है कि उनका श्रम विभाग में पंजीकरण नहीं कराया गया है, उन्हें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। उन्हें 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जा रही है। उन्हें यहां आवास की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गयी है ऐसे में वह लोग छोटी-छोटी झोपड़ियां बनाकर रह रहे हैं। यहीं खुले में नहा लेते हैं और चूल्हा बनाकर रोटी बना लेते हैं। बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं है।
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क्या कहते हैं अवर अभियंता-
जेडीए के अवर अभियंता घनश्याम तिवारी का कहना है कि मजदूरों का पंजीकरण करना श्रम विभाग और ठेकेदार की जिम्मेदारी है साथ ही उन्हें तमाम सुविधाएं मिलें यह भी सुनिश्चित करना होता है। वैसे श्रम विभाग में पंजीकृत ठेकेदार अपने दस श्रमिकों का पंजीकरण कराता है, अब मौके पर काम कर रहे मजदूर पंजीकृत हैं या नहीं यह तो श्रम विभाग को देखना है। मजदूरों के बच्चों की दशा देखकर मुझे भी दुख होता है,इस सम्बंध में ठेकेदार को कहा भी जाता है परंतु अनुपालन तो श्रम विभाग को ही कराना है।
रिपोर्ट- बी.के.कुशवाहा
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