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भगवतीचरण वर्मा की जयंती: चित्रलेखा कहानी किसकी भाग्य लक्ष्मी बन गई?
प्रख्यात लेखक भगवतीचरण वर्मा की जयंती पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में भगवतीचरण वर्मा जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया।
लखनऊ: प्रख्यात लेखक भगवतीचरण वर्मा की जयंती पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के तत्वावधान में भगवतीचरण वर्मा जयन्ती समारोह का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे उदय प्रताप सिंह, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष,उप्र. हिन्दी संस्थान ने अपने उद्बोधन में कहा भगवतीरचण वर्मा जी लखनऊ के ही नहीं हिन्दुस्तान के व साहित्य जगत के गौरव हैं।
साहित्य समाज का दर्पण है। उनकी रचनाओं में समाज में व्याप्त विसंगतियों पर प्रकाश डाला गया है। कवि की सारी कठिनाई की केवल वही कहानी है वे कवि, लेखक महान साहित्यिकार के रूप में हम सबके प्रेरणा स्रोत हैं, सदैव रहेंगे।
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अन्य वक्ताओं में डाॅ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में , विशिष्ठ अतिथि के रूप में गोपाल चतुर्वेदी, पूर्व अध्यक्ष, उ0प्र0भाषा संस्थान, मुख्य वक्ता के रूप में डाॅ0 उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय एवं वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार धीरेन्द्र वर्मा, भगवतीचरण वर्मा की कहानी पाठ के लिए गोपाल सिन्हा भगवतीचरण वर्मा की कविताओं के पाठ के लिए चन्द्रशेखर वर्मा उपस्थिति थे।
दूरदर्शन के माध्यम से साहित्य की महान सेवा की
भगवतीचरण वर्मा के व्यक्तित्व पर धीरेन्द्र वर्मा अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा वे कवि कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार थे, आकाशवाणी दूरदर्शन के माध्यम से साहित्य की महान सेवा की।
वे बहुआयामी व्यक्तित्व के थे। वे छन्दबद्ध कविता के सर्मथक थे। वे विश्व में प्रकाशित अन्य पुस्तकों का भी अध्ययन करते थे। चित्रलेखा में उनकी आत्मा बसती थी। चित्रलेखा उपन्यास उनकी भाग्य लक्ष्मी बन गईं। विकास का क्रम व भाग्यवाद उनकी रचनाओं में दिखता है।
मुख्य वक्ता के रूप में पधारीं डाॅ. उषा सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन मेें कहा-‘वे लखनऊ की साहित्यिक त्रिवेणी के यशस्वी यशपाल अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा साहित्यकार थे।
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भगवती बाबू का साहित्य जीवंत है
वे स्वाभिमानी व दृढ़ निश्चयी, सर्जनात्मक साहित्य के शब्द शिल्पी सम्पूर्ण साहित्यकार व सफल सम्पादक थे। भगवती बाबू का साहित्य जीवंत है। उनकी साहित्य यात्रा कविता से प्रारम्भ होकर कविता में ही समाप्त होती है। उनकी कविता में प्रेम व उल्लास मिलता है।
उनके साहित्य में नियतिवाद व भाग्यवाद मिलता है। उनकी रचनाओं में मानवतावाद भी मुखरित हुआ है। उन्हें तुकान्त व अतुकान्त कविताएँ भी लिखीं।
इस अवसर पर गोपाल सिन्हा ने भगवतीचरण वर्मा की कहानी ‘दो बाँके‘ का पाठ किया चन्द्रशेखर वर्मा ने भगवतीचरण वर्मा की कविताओं मैं कब से ढूँढ रहा हूँ, अपने प्रकाश की रेखा. इस दुनिया में बड़ा कठिन है। हम दीवानों की हस्ती आज यहाँ, कल वहाँ चले मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले का सस्वर पाठ किया।
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