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मजदूरों को बड़ी राहत: अब ये योजना बनी इन सभी का सहारा, दूर होगी समस्या

बुन्देलखण्ड में मनरेगा के तहत मई और जून के महिने में अंधिकाश काम चाहने वाले मजदूरों को 30-50 दिन का काम मिला है। जल जन जोडो अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. संजय सिंह ने कही हैं।

Newstrack
Published on: 7 July 2020 2:24 PM IST
मजदूरों को बड़ी राहत: अब ये योजना बनी इन सभी का सहारा, दूर होगी समस्या
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झाँसी। लॉकडाउन के बाद बुन्देलखण्ड में बडी तादात में प्रवासीय मजदूर वापिस अपने गांव की तरफ आये है, एक आंकडे के अनुसार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में 9 लाख प्रवासीय मजदूरों से अधिक का आंकडा मिलता है। इनमें से उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में लगभग 4 लाख प्रवासीय मजदूरों के आने का अनुमान है। अचानक हुए लॉकडाउन के कारण गांव वापिस आये हुए मजदूरों के के सामने आजीविका का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया है। जब वह गांव आये तब मजदूरी ना मिलने से इनकी आर्थिक स्थिति अत्यधिक दयनीय थी।

रबी की फसल की कटाई भी लगभग हो गयी थी, जिसके कारण उनके मन में बडी निराशा थी। लेकिन बुन्देलखण्ड में मनरेगा के तहत मई और जून के महिने में अंधिकाश काम चाहने वाले मजदूरों को 30-50 दिन का काम मिला है। जल जन जोडो अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. संजय सिंह ने कही हैं।

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20 से 50 दिन का काम मनरेगा के तहत मिला

परमार्थ संस्था द्वारा बुन्देलखण्ड में किये गये एक अध्ययन के अनुसार प्रत्येक ग्राम पंचायत में मनरेगा के अन्तर्गत काम कराये गये है, पहले की अपेक्षा इस बार भुगतान भी समय से सुनिश्चित हुये है। अच्छी बात यह कि मनरेगा के अन्तर्गत सबसे अधिक जल संरक्षण के काम कराये गये है, जिनमें तालाबों की सिल्ट सफाई, पानी आने की निकासी, चैकडेमों की सफाई, नाला खुदाई, मेढ बंधान आदि कार्य प्रमुख है।

झांसी के बबीना ब्लॉक के गांव सरवां, खजुराहा बुजूर्ग, नयाखेडा, मानपुर, जैसे गांव में कार्डधारको ने बताया कि 20 से 50 दिन का काम मनरेगा के तहत मिला है। इसी तरह से ललितपुर के रामपुर कठवर, बादीवर, उदगुवां, कडेसरा कला आदि गांव की जल सहेलियों ने बताया कि उनके गांव में मनरेगा के तहत पर्याप्त काम मिला है। सामाजिक कार्यकर्ता सिद्धगोपाल ने बताया कि तालाबेहट ब्लॉक में 9 हजार प्रवासीय मजदूरों को जून के महिने में काम मिला है जिसके तहत परिसम्मत्ति सृजन का काम बडे पैमाने पर हुआ है। सामाजिक कार्यकर्ता राजेश कुमार ने बताया कि मनरेगा के तहत जो लोग काम कर रहे थे उनको 20 से 25 दिन में मजदूरी का भुगतान भी प्राप्त हो गया है।

जल जन जोडो अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. संजय सिंह कहते है कि कोरोना काल में बुन्देलखण्ड में मनरेगा मजदूरों के लिए एक सहारा बनी है, जिससे मजदूरों को काम मिला और प्राप्त मजदूरी से उन्होंने अपनी जरूरतों को पूरा किया, साथ ही खरीफ की फसल जुताई और बीज क इन्तिजाम करने में सहायक हुये।

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सरकार को महिला मेट बनाने चाहिए

बुन्देलखण्ड में मनरेगा महिला मजदूरों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता ममता गुप्ता कहती है, कि जालौन के रमपुरा, कुठौद, महेबा ब्लॉक में जहां महिलाओं ने काम चाहा उन्हें काम प्राप्त हुआ है। यह एक अच्छी बात है सरकार को महिला मेट बनाने चाहिए ताकि अधिक से अधिक महिलाऐं इस काम में आगे आ सके।

मनरेगा वरदान साबित हुआ

बुन्देलखण्ड विश्वविघालय में समाजकार्य विभाग के प्राध्यपक डॉ. नईम कहते है कि मनरेगा से ना केवल मजदूरी ही जा सकती है बल्कि मनरेगा के बेहतर क्रियान्वयक से गरीबी एवं भुखमरी को दूर किया जा सकता है। बुन्देलखण्ड में जब-जब आजीविका का संकट हुआ है तब-तब मनरेगा यहां के लिए वरदान साबित हुयी है।

मनरेगा में सोशल ऑडिट के काम से जुडे सामाजिक कार्यकर्ता श्रीकृष्ण बताते है कि जिस तरह से पिछले दो महिने मे मनरेगा के क्रियान्वयन में सरकार ने रूचि दिखायी है, यदि इसी तरह से सरकार का ध्यान बना रहा तो निश्चित तौर से प्रवासीय मजदूरों को आजीविका संकट का सामना नहीं करना पडेगा।

रिपोर्टर- बी के कुशवाहा, झाँसी

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