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हुआ बड़ा घोटाला: बिजली विभाग के चोर होंगे बेनकाब, अगर हुई CBI जांच
उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट की फिक्स्ड कॉस्ट तय होने के बाद बिजली उत्पादन की दर 9 रुपये प्रति यूनिट से भी ज्यादा आने की संभावना है।
लखनऊ। उप्र. राज्य विद्युत नियामक आयोग ने देश में पहली वीडियों कान्फ्रेसिंग सुनवाई में जीवीके ग्रुप की अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमटेड द्वारा स्थापित 300 मेगावाट उत्पादन इकाई श्रीनगर के कैपिटल कॉस्ट के सम्बन्ध में दाखिल याचिका पर सार्वजनिक सुनवाई में अनकनंदा को 2 हफ्ते में सभी आपत्तियों का जवाब देने का आदेश देते हुए फैसला सुरक्षित कर लिया है।
उपभोक्ता प्रतिनिधियो ने लिया भाग
नियामक आयोग चेयरमैन आरपी सिंह की अध्यक्षता व सदस्यों केके शर्मा व वीके श्रीवास्तव की मौजूदगी में हुई सार्वजनिक सुनवाई में पहली बार उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के उपभोक्तओ व उपभोक्ता प्रतिनिधियो ने भाग लिया। सभी उपभोक्ताओ ने अलकनंदा की बढ़ी कैपिटल कॉस्ट का विरोध किया। पावर कार्पोरेशन ने भी कैपिटल कॉस्ट व सिविल कॉस्ट सहित अनेको वित्तीय मानको का विरोध करते हुए इसे बहुत महंगा प्रोजेक्ट बताया।
225 प्रतिशत की हुई बढ़ोतरी
उत्तर प्रदेश के विद्युत उपभोक्तओ के तरफ से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भाग लेते हुए उप्र. राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि पहले अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमटेड ने प्रोजेक्ट की कांस्ट 1699 करोड रुपये आंकलित की थी और अब उसमे लगभग 225 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर के 5287 करोड़ रुपये कर दिया है। उन्होंने कहाँ कि प्रोजेक्ट की फिक्स्ड कॉस्ट तय होने के बाद बिजली उत्पादन की दर 9 रुपये प्रति यूनिट से भी ज्यादा आने की संभावना है।
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वर्मा ने कहाँ कि अलकनंदा हाइड्रो पावर ने अपने प्रोजेक्ट की कैपिटल कॉस्ट की तुलना देश के अन्य हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से करते हुए अपने प्रोजेक्ट की कैपिटल कॉस्ट को वाजिब बताया है, लेकिन देश में वर्ष 2014 से अब तक ज्यादातर प्रोजेक्ट की कैपिटल कॉस्ट रुपया 5.54 करोड़ प्रति मेगावाट से लेकर 10.65 करोड़ प्रति मेगावाट के बीच है।
बड़ा घोटाला आ सकता है सामने
केवल, पाकिस्तान द्वारा नदी विवाद को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में बाद दाखिल किए जाने के कारण 26 महीने तक रोके गए, किशनगंगा हाइड्रो प्रोजेक्ट की कैपिटल कॉस्ट 16.66 करोड़ प्रति मेगावाट आयी है। उन्होंने कहा कि अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमटेड ने प्रोजेक्ट में करीब 78 प्रतिशत सिविल कार्य बगैर टेण्डर के अपनी सिस्टर कंपनी से कराया है। वर्मा ने कहाँ कि जीवीके ग्रुप की सभी कंपनियों के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर एक ही है। उन्होंने कहाँ कि अगर इस मामलें की सीबीआई जांच हो तो बड़ा घोटाला सामने आयेगा।
रिपोर्टर- मनीष श्रीवास्तव, लखनऊ
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