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ब्रेकथ्रू के कैफे टॉक चर्चा में महिला बाइकर ने लैंगिक भेदभाव के मुद्दे पर रखे विचार

समाज में एक लड़के और लड़की को ले कर कई स्तर पर भेदभाव किया जाता है। यह भेदभाव उनके पोषण, स्वास्थ्य, पढ़ाई, नौकरी जैसे मुद्दों को भी प्रभावित करता है। ऐसी ही कुछ बातें मानवाधिकार और महिला मुद्दों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा कैफ़े रेपेर्त्वा में आयोजित कैफे टॉक चर्चा कार्यक्रम में कही गईं।

Dharmendra kumar
Published on: 20 Aug 2019 3:13 PM GMT
ब्रेकथ्रू के कैफे टॉक चर्चा में महिला बाइकर ने लैंगिक भेदभाव के मुद्दे पर रखे विचार
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लखनऊ: समाज में एक लड़के और लड़की को ले कर कई स्तर पर भेदभाव किया जाता है। यह भेदभाव उनके पोषण, स्वास्थ्य, पढ़ाई, नौकरी जैसे मुद्दों को भी प्रभावित करता है। ऐसी ही कुछ बातें मानवाधिकार और महिला मुद्दों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा कैफ़े रेपेर्त्वा में आयोजित कैफे टॉक चर्चा कार्यक्रम में कही गईं। इस कार्यक्रम में महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाले लैंगिक भेदभाव के विषय पर बाइकर गरिमा और आयेशा ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन व समन्वय ब्रेकथ्रू के नदीम ने किया।

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रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से सम्मानित बाइकर गरिमा कपूर ने कहा कि बाइक राइडर बनने से पहले मैं गोताखोरी करती थी और इसे करने के दौरान एक बार मैं चोटिल हो गई और डाक्टरों ने मुझे इसे आगे करने से मना कर दिया। मैं हताश हो गई थी और कहीं ना कहीं मेरे दिल में यह बात रह गई थी की अब कुछ करना है।

उन्होंने कहा कि मैंने सोचा क्यों ना मैं खारदुन्गला पास जाने वाली सबसे कम उम्र की बाइकर बनूं और फिर मैंने यह कर भी दिखाया। जब मैनें बाइक चलाना शुरू किया तो उस वक्त मेरे आस-पास के लोगों ने कई बार कहा कि यह लड़कों का काम है। अगर बाइक से गिर कर चोट लग गई तो क्या करोगी, लेकिन मैंने अपने मन में ठान लिया था कि मैं एक अलग दिशा में चलूंगी ज़रूर। आज जब वही लोग मुझे बाइक चलाते हुए देखते हैं तो बहुत प्रोत्साहित करते हैं कि यह लड़की दखियानूसी विचारधारा को तोड़ रही है। आज उन्हीं लोगों के नज़रिए में बदलाव आ रहा है। अगर समाज में बदलाव लाना है तो हमें इस भेदभाव वाले नज़रिए को बदलना पड़ेगा।

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हिजाबी बाइकर के नाम से अपनी पहचान बनाने वाली बाइकर आयेशा अमीन ने बताया कि बचपन से वो अपने घर के लोगों को बाइक चलाते हुए देखती थीं, लेकिन कहीं ना कहीं डर था की क्या वाकई मैं इसे चला पाऊंगी। हालांकि मेरे परिवार ने इसमें मेरा पूरा साथ दिया। अपने परिवार के सहयोग से मैंने जो बाइकिंग करने का सपना देखा था वो आज काफ़ी हद तक पूरा हुआ है। जब मैंने हिजाब और बुर्के में राइड करना शुरू किया तो कई लोगों ने कहा की कोई ऐसा कैसे कर सकता है लेकिन मैं अपनी धुन में लगी रही और आज इस मुकाम पर हूं।

आयेशा ने बताया कि भविष्य में वो भारत से सुदूर मिडिल ईस्ट देशों की यात्रा अपने बाइक से करने का प्लान कर रही हैं और इस यात्रा को वो अकेले पूरा करेंगी। उन्होंने बताया कि अब जब मुझसे कोई भी लड़की यह बताती है कि उसके घरवाले अगर किसी बात पर राज़ी नहीं होते हैं तो मैं उन्हें यह सलाह देती हूं कि आप अपने परिवार से बात करें और उन्हें अपनी बातों से राज़ी करिए क्योंकि बात करने से ही बात बनती है।

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चर्चा के दौरान ब्रेकथ्रू की राज्य प्रमुख कृति प्रकाश ने बताया कि कई बार हमारे समाज में लड़कियों को बाइक राइडर बनने की तो आज़ादी दी जाती है लेकिन यह कहा जाता है कि समाज आपकी इस आज़ादी को नहीं अपनाएगा और आप पर कटाक्ष करता रहेगा। कहीं ना कहीं समाज में एक मानसिकता बनी है कि कुछ काम लड़कों के हैं तो कुछ काम लड़कियों के हैं, जो कि गलत है। हालांकि इस सोच में बदलाव आ रहा है लेकिन फ़िर भी इस दिशा में अभी बहुत कार्य करने की ज़रूरत है। इस कार्यक्रम में ब्रेकथ्रू से अभिषेक, सुप्रिया और काफ़ी संख्या में लोग शामिल रहे।

ब्रेकथ्रू एक मानवाधिकार संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है। कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागेदारी से हम लोगों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सकें।

Dharmendra kumar

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