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दशकों से बंद है बुन्देलखण्ड की इकलौती ग्लास फैक्ट्री, जानिए क्या है कारण
चित्रकूट जिले के बरगढ़ क्षेत्र में आती है जिसका शिलान्यास सन 1987 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कर कमलों द्वारा हुआ था । बुलेट प्रूफ कांच बनाने वाली बुन्देलखण्ड की इस इकलौती ग्लास फैक्ट्री बरगढ़ का निर्माण उप्र राज्य खनिज विकास निगम (यूपीएस एमडीसी) द्वारा सन 1988 में कुछ प्राइवेट सेक्टर के उद्योगपतियों के सहयोग से प्रारम्भ किया गया था ।
अनुज हनुमत
बरगढ़/चित्रकूट: देश का एक ऐसा हिस्सा जहां का प्रत्येक गांव हत्याओं की दुःख भरी कहानियों से भरा पड़ा है । बुन्देलखण्ड के विकास पर पानी की कमी , भूमि अनुपजाऊ और जनप्रतिनिधियों की असक्रियता तीनों एक साथ प्रहार करते आये हैं । ऐसी ही दशकों पुरानी एक कहानी बुन्देलखण्ड की इकलौती ग्लास फैक्ट्री की है जिसका शिलान्यास दशकों पहले कांग्रेस की सरकार में हुआ था लेकिन आज तक ये चालू नही हो पाई । जिससे पाठा सहित बुन्देलखण्ड के हजारों मजदूरों का नुकसान हुआ ।
बुलेट प्रूफ कांच बनाने कांच बनाने के लिए हुआ था इस फैक्ट्री का शिलान्यास
राज्य मिनरल्स डेवलपमेंट कार्पोरेशन के अंतर्गत आने वाली ये फैक्ट्री चित्रकूट जिले के बरगढ़ क्षेत्र में आती है जिसका शिलान्यास सन 1987 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कर कमलों द्वारा हुआ था । बुलेट प्रूफ कांच बनाने वाली बुन्देलखण्ड की इस इकलौती ग्लास फैक्ट्री बरगढ़ का निर्माण उप्र राज्य खनिज विकास निगम (यूपीएस एमडीसी) द्वारा सन 1988 में कुछ प्राइवेट सेक्टर के उद्योगपतियों के सहयोग से प्रारम्भ किया गया था । इस फैक्ट्री के निर्माण में प्राइवेट सेक्टर के कई लोगों ने अपना-अपना साझा पूंजी निवेश कर रखा था ।
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फैक्ट्री के निर्माण में प्रमुख शेयर होल्डर्स में से UPSMDC की 26% पूंजी , सऊदी अरब के शेख बंधुओ की 12% , सी.एल. वर्मा की 9% पूंजी ,लन्दन के एक उद्योगपति विल क्लिंटन ब्रदर्स की 4% पूंजी , आदित्य बिड़ला की 15% पूंजी , यूपी गवर्नमेंट की 33% पूंजी संयुक्त रूप से लगाने का एग्रीमेंट किया गया था । फैक्ट्री में तेजी से निर्माण कार्य कराते हुए सन 1991 तक 50% निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था ।
धन की कमी के कारण फैक्ट्री का अगला निर्माण कार्य हुआ बंद
लेकिन शेयर होल्डर्स की आपसी खींचतान के कारण फैक्ट्री के निर्माण में धन की कमी आने लगी और सन 1991 से ही निर्माण कार्य करा रहे ठेकेदारों का पैसा भुगतान बन्द होने लगा था । उन लोगों ने धन की कमी के कारण फैक्ट्री का अगला निर्माण कार्य कराना बंद करवा दिया । लगभग 50 हेक्टेयर में निर्माणाधीन बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री का निर्माण कार्य धनाभाव में बंद हो गया ।
बरगढ़ स्टेशन से फैक्ट्री तक रेल लाइन बिछाने का काम भी पूरा करा लिया गया था । लन्दन के कारोबारी विल क्लिंटन ब्रदर्स ने लन्दन में सन 1991 के सितम्बर अक्टूबर महीने में फ्लोट ग्लास बनाने की लगभग 2000 करोड़ रूपये कीमत की बडी बड़ी मशीने समुद्र के रास्ते भारत भिजवाया था ।
लंदन के क्लिंटन ब्रदर्स ने मशीनों को नीलामी में खरीद लिया था
मुम्बई बंदरगाह में ये मशीनें 1996 तक पड़ी रहीं । यूपी सरकार की लापरवाही से करोड़ो रूपये कीमत की ये मशीने मुम्बई बंदरगाह में ही रखी रह गई । कस्टम विभाग ने कस्टम चार्ज और जुर्माने की धनराशि सहित 12 12 हजार करोड़ रूपये में इन मशीनों को नीलाम करवा दिया । लंदन के क्लिंटन ब्रदर्स ने ही इन मशीनों को नीलामी में खरीद लिया था ।
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सन 2004 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में आदित्य बिरला इस फैक्ट्री को नीलामी में खरीदना चाहते थे लेकिन मुलायम सिंह से आदित्य की नह बनी । बाद में मायावती इस फैक्ट्री को 15% में बेंचना चाहती थी मगर आदित्य बिरला अब फैक्ट्री खरीदने के लिए राजी नही हुए । तब से आज तक बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री इन पूर्ववर्ती यूपी सरकारों की नाकामी पर इन्हें कोश रही है ।
इन नेताओं ने बुन्देलखण्ड को खूब ठगा है और देश तथा प्रदेश की जनता को भी खूब लूटा है । इनका कभी भला होने वाला नही है ।इस ग्लास फैक्ट्री के बन जाने से बुन्देलखण्ड के लगभग 20 हजार युवाओं को रोजगार मिलता लेकिन ऐसा हुआ ही नही ।
केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें एक साथ ध्यान नही देंगी तो इकलौती ग्लास फैक्ट्री यूंही बदहाल पड़ी रहेगी
जब तक इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें एक साथ ध्यान नही देंगी तब तक बुन्देलखण्ड की इकलौती ग्लास फैक्ट्री यूंही बदहाल पड़ी रहेगी । अभी हाल ही में हुए यूपी विधानसभा उपचुनावों में भाजपा को जीत मिली है और बुंदेली जनादेश ने भी पिछले लोकसभा चुनावों में भी बुन्देलखण्ड में प्रचंड जीत दिलाई थी।
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स्पष्ट है कि यहां की जनता अब अपने क्षेत्र का विकास चाहती है । ये तभी सम्भव होगा जब राज्य सरकार में यहाँ का प्रतिनिधित्व होगा । अगले पांच वर्ष बुन्देलखण्डवासियो के लिए बहुत अहम होने वाले हैं । मौजूदा सरकार की सबसे बड़ी चुनौती बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री को दोबारा चालू कराने की होगी !