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कैंसर जागरुकता: ठीक नहीं मरीजों का मानसिक स्वास्थ्य, इलाज में प्रदेश सरकार जीरो

जागरुकता के चलते अब क्लीनिकों पर शुरुआती स्टेज के कैंसर मरीज ज्यादा आ रहे हैं। वह कहते हैं ज्यादातर मरीज नकारात्मक ऊर्जा के चलते भय के कारण बहुत जल्द डिप्रेशन में आ जाते हैं। इससे उनकी दिनचर्या बिगड़ जाती है।

Newstrack
Published on: 7 Nov 2020 9:29 AM GMT
कैंसर जागरुकता: ठीक नहीं मरीजों का मानसिक स्वास्थ्य, इलाज में प्रदेश सरकार जीरो
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कैंसर जागरुकता: ठीक नहीं मरीजों का मानसिक स्वास्थ्य, इलाज में प्रदेश सरकार जीरो

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊः कैंसर जागरुकता दिवस हर वर्ष 7 नवंबर को मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में हर साल दो लाख कैंसर मरीज निकल रहे हैं। लेकिन जागरुकता को लेकर प्रदेश में सरकारी स्तर पर जो प्रयास किये जाने चाहिए वह नगण्य क्या कहीं ठहरते ही नहीं हैं। वास्तव में कैंसर की जांच में कैंसर की पुष्टि होने के तत्काल बाद और कोई भी थिरेपी लेने से पहले और उसके बाद मरीज को साइको काउंसलर की सलाह अनिवार्य रूप से लेनी चाहिए ताकि उसमें नकारात्मक ऊर्जा का संचार न होने पाए और सकारात्मक ऊर्जा का सतत प्रवाह बना रहे। लेकिन उत्तर प्रदेश में ये सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।

कैंसर मरीजों में ये खतरा अधिक

किंग जार्ज मेडिकल कालेज की सुजिता कुमारी, मोनिका ठाकुर ने कैंसर मरीजों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। जबकि एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि आबादी का 0.9 प्रतिशत हिस्सा आत्महत्या के बड़े खतरे के बीच है। और यह खतरा 40 से 59 साल के बीच के लोगों में अधिक है। इनमें भी कैंसर मरीजों में ये खतरा अधिक है। अफसोस की बात ये है कि इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में फाइनेंशियल सपोर्ट और स्पॉन्सरशिप जीरो है।

कैंसर फाउंडेशन के कैंसर मरीजों हेल्पलाइन बंद चल रहे

इसी तरह से कैंसर फाउंडेशन के कैंसर मरीजों की हेल्पलाइन के दो लैंडलाइन नंबर बंद चल रहे हैं। कैंसर मरीज अहमदाबाद, बैंगलोर, बीकानेर, कालीकट, चंडीगढ़, चेन्नई, कोयम्बटूर, दिल्ली-एनसीआर, गोवा, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, पांडिचेरी, पुणे, त्रिशूर, त्रिवेंद्रम में तो काउंसर से मदद ले सकते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश इस कैंसर जागरूकता और कैंसर मरीजों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर मसले में कहीं ठहरता ही नहीं है।

Cancer Awareness Day-2

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भारतीय पुनर्वास परिषद कैंसर, टीबी आदि गंभीर बीमारियों के मरीजों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए कोर्स संचालित करती है जिसमें पीजी डिप्लोमा इन रिहैबिलिटेशन साइकोलाजी, एमफिल में रिहैबिलिटेशन साइकोलाजी पर कोर्स संचालित करती है।

कैंसर के मरीजों को मनोवैज्ञानिक सपोर्ट देना कितना जरूरी है ?

इस सवाल पर डा. अजय तिवारी बताते हैं कि कैंसर की पहचान होने के तत्काल बाद मरीजों को नकारात्मक ऊर्जा से बचाना बेहद जरूरी है क्योंकि ऐसे में स्थिति कैंसर की बजाय दिमागी रोगों से हालत ज्यादा बिगड़ती है। इस दौरान मनोवैज्ञानिक सपोर्ट की जरूरत सकारात्मक ऊर्जा का स्तर बढ़ाने के लिए पड़ती है। जैसे ऐसे रोगियों से रोजाना एक घंटे सकारात्मक बातें की जाएं तो शारीरिक व मानसिक तौर पर ठीक तो रहेगा ही साथ दवाएं भी 60 फीसदी अधिक असर करना शुरू कर देंगी। अब तो तमाम शोधों में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है। भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

कब कराएं काउंसलिंग

डा. अजय तिवारी कहते हैं कोई भी थिरेपी लेने से पहले और लेने के बाद काउंसलिंग होना जरूरी है। भय से असुरक्षा, असुरक्षा से अवसाद मनो सलाहकार कहते हैं कि कैंसर को लेकर लोगों के मन में तमाम भ्रम और भ्रांतियां हैं। व्यक्ति की आधी मौत तो यह सुनते ही हो जाती है। वह मान लेता है अब मरना तय है। लेकिन ऐसा नहीं है अब नई तकनीकों से अधिकतर कैंसर का इलाज संभव है।

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जागरुकता के चलते अब क्लीनिकों पर शुरुआती स्टेज के कैंसर मरीज ज्यादा आ रहे हैं। वह कहते हैं ज्यादातर मरीज नकारात्मक ऊर्जा के चलते भय के कारण बहुत जल्द डिप्रेशन में आ जाते हैं। इससे उनकी दिनचर्या बिगड़ जाती है। इस कारण दवा भी ठीक से असर नहीं करती। ऐसे में मरीज की काउंसलिंग निहायत जरूरी है।

Dr. Ajay Tiwari

मरीज के अन्दर भय से तनाव और फिर अवसाद

मनो सलाहकार कहते हैं एक तो कैंसर के कारण पहले से ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। फिर मरीज के भय से तनाव और फिर अवसाद की स्थिति बनने पर हार्मोंस का संतुलन बिगड़ने लगता है। मरीज को खाना न पचने की समस्या होती है व स्थिति बद से बदतर होती चली जाती है।

डा. तिवारी कहते हैं सबसे पहले मरीज को बताना चाहिए कैंसर कोई असाध्य बीमारी नहीं है। इस रोग का इलाज संभव है। उनसे बीते दिनों की अच्छी बातें व भविष्य की प्लानिंग पर चर्चा करें ताकि उनमें जीने की ललक बढ़े व अंदर से मजबूत हों। कैंसर का इलाज कराकर बीमारी मुक्त हो चुके लोगों के बारे में बताएं व इससे लड़कर जीवन पाने वाले लोगों की किताबें पढ़ने को दें। कुल मिलाकर प्रभावित व्यक्ति के मन में यह बात बैठ जानी चाहिए कि बहुत जल्द मै ठीक हो जाऊंगा।

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