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दिखी योगी की सादगी: आंवले के पेड़ के नीचे किया भोजन, रवि किशन भी रहे मौजूद

योगी आदित्यनाथ अपनी सादगी को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। उनकी सादगी गुरुवार को गोरखनाथ मंदिर में दिखी। जब उन्होंने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन किया। मुख्यमंत्री के साथ सांसद रविकिशन और आला अधिकारियों ने जमीन पर बैठकर आंवले के पेड़ के नीचे भोजन किया।

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Published on: 26 Nov 2020 1:36 PM GMT
दिखी योगी की सादगी: आंवले के पेड़ के नीचे किया भोजन, रवि किशन भी रहे मौजूद
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योगी आदित्यनाथ अपनी सादगी को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। उनकी सादगी गुरुवार को गोरखनाथ मंदिर में दिखी। जब उन्होंने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन किया।

गोरखपुर। यूपी के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ अपनी सादगी को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। उनकी सादगी गुरुवार को गोरखनाथ मंदिर में दिखी। जब उन्होंने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन किया। मुख्यमंत्री के साथ सांसद रविकिशन और आला अधिकारियों ने जमीन पर बैठकर आंवले के पेड़ के नीचे भोजन किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गुरुवार को दो दिवसीय दौरे पर गोरखपुर आए। उन्होंने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष कुलपति प्रो. यूपी सिंह के आवास पर जाकर उनका हाल जाना।

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गोरखनाथ मंदिर की परंपरा

साथ ही गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित आवंला वृक्ष के नीचे प्रसाद ग्रहण किया। इससे पहले सीएम योगी ने गुरु गोरखनाथ के दर्शन के साथ ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की समाधि स्थल पर जाकर पूजा की। दरअसल, गोरखनाथ मंदिर की परंपरा है कि एकादशी का पारन भक्त आंवले के पेड़ के नीचे बने भोजन से करते हैं।

yogi फोटो-सोशल मीडिया

मंदिर के कर्मचारी और साधु-संत एक साथ आंवले के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं। मुख्यमंत्री के साथ सांसद रवि किशन शुक्ल, विधायक विपिन सिंह समेत मंदिर परिवार के सदस्यों एवं श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर के बगीचे में आंवले के पेड़ के नीचे पारण किया।

रोगों का नाश होता है आंवले के नीचे बैठक कर भोजन करने से

yogi

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मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। मंदिर के प्रधान पुजारी द्वारिका तिवारी बताते हैं कि आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके नीचे बैठकर भोजन करने की प्रथा की शुरूआत माता लक्ष्मी ने किया था। कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आई। उनकी रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई।

लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है। बेल शिव को।

इसलिए आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आवले के वृक्ष के नीचे भोजन बना कर विष्णु और भगवान शिव को खिलाया। उसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी, उस दिन काíतक शुक्ल नवमी थी। तभी से यह परम्परा बनी हुई है।

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रिपोर्ट- गोरखपुर से पूर्णिमा श्रीवास्तव

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