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नेपाल विवाद सुलझाने में, इस सीएम की हो सकती है बड़ी भूमिका

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में होने वाली हिंसा पर लगाम लगाना हो या यूपी जैसे बडे़ प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए दिन-रात जुटे रहने का।

Roshni Khan
Published on: 14 Jun 2020 12:26 PM GMT
नेपाल विवाद सुलझाने में, इस सीएम की हो सकती है बड़ी भूमिका
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लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में होने वाली हिंसा पर लगाम लगाना हो या यूपी जैसे बडे़ प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए दिन-रात जुटे रहने का। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ उनके धुर विरोधी सियासी नेता भी कर रहे है। इन बड़ी समस्याओं से मोर्चा लेने वाले जुझारू मुख्यमंत्री योगी को अब ताजा भारत-नेपाल विवाद का समाधान करने में भी बड़ी अहम भूमिका निभा सकते है। इसकी सबसे बड़ी वजह है गोरखपुर की गोरक्षपीठ की नेपाल में बड़े स्तर पर मान्यता। गोरक्षपीठ की नेपाल में जड़ें काफी गहरी हैं। इस पीठ की पहुंच और प्रभाव वहां की आम जनता तक है।

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दरअसल, नेपाल में गोरक्षपीठ के नाथपंथ से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। नाथ पंथ के प्रमुख होने के योगी आदित्यनाथ कारण अक्सर नेपाल जाया करते थे और वहां की जनता उन्हें भगवान गोरक्षनाथ के प्रतिनिधि के रूप में लेते हुए उनकी पूजा करती है। इस बीच जिस तरह से नेपाल में जमीन को लेकर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है, ऐसे में इस विवाद को हल करने में गोरक्षपीठ बड़ी भूमिका निभा सकती है क्योंकि वहां के आम लोग इस पीठ से जुड़े हैं। गोरक्षपीठ के मौजूदा गोरक्षपीठाधिश्वर उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, जिनकी बातों को नेपाल की जनता बहुत सम्मान देती है।

गोरखपुर की गोरक्षपीठ के गोरखनाथ मंदिर और नेपाल का संबंध सदियों से हैं। नेपाल का शाही परिवार गुरु गोरखनाथ को अपना राजगुरु मानता रहा है। नेपाल और नाथ पंथ एक-दूसरे में ऐसे रचे-बसे हैं कि शासक वर्ग भले कुछ भी कहे लेकिन नेपाल की जनता हमेशा भारत के स्वर में ही स्वर मिलाकर बोलती है। इतना ही नहीं वहां के राजनीतिक दलों के लोगों का भी मंदिर के प्रति आकर्षण रहा है। गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ अक्सर नेपाल जाया करते थे।

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दरअसल, नेपाल में मान्यता है कि नेपाल राजवंश का उद्भव भगवान गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। जिसके बाद शाह परिवार पर भगवान गोरखनाथ का हमेशा आशीर्वाद रहा है। इसी कारण नेपाल राजवंश ने गुरु गोरखनाथ की चरण पादुका को अपने मुकुट पर बना रखा था, इतना ही नहीं नेपाल के सिक्कों पर गुरु गोरखनाथ का नाम लिखा है। गुरु गोरक्षनाथ के गुरु मक्षयेन्द्रनाथ के नाम पर आज भी नेपाल में उत्सव मनाया जाता है। राजपरिवार अब भी गुरु गोरखनाथ को अपना राजगुरु मानता है। मकर संक्राति के दिन भगवान गोरखनाथ को पहली खिचड़ी गोरक्षपीठाधीश्वर चढ़ाते हैं तो दूसरी खिचड़ी आज भी नेपाल नरेश की तरफ से चढ़ाई जाती है।

गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी के मुताबिक कई बार नेपाल नरेश खुद खिचड़ी चढ़ाने यहां आ पाए तो उनका कोई न कोई प्रतिनिधि यहां पर खिचड़ी चढ़ाने जरूर आता है। उसको यहां से नेपाल की सुख शांति के लिए महारोट का प्रसाद दिया जाता है। महारोट एक स्पेशल प्रसाद होता है जिसे गोरक्षनाथ मंदिर में मौजूद योगी ही बनाते हैं। मकर संक्राति में बड़ी संख्या में नेपाली श्रद्धालु गोरखपुर आकर गोरखनाथ भगवान को खिचड़ी अर्पित करते हैं, नेपाल में बड़ी संख्या में लोग गोरखनाथ भगवान की पूजा करते हैं। उनकी गोरखनाथ में विशेष आस्था है। नेपाल में कई जगह भगवान गोरखनाथ के मंदिर हैं। इतना ही नहीं पशुपतिनाथ मंदिर में भी गोरखनाथ भगवान का मंदिर है, वहां मुक्तिनाथ धाम नाथ संप्रदाय का ही है। वैसे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामलें में दखल दे भी चुके है।

उन्होंने नेपाल के साथ सीमा विवाद के मुद्दे पर नेपाली सरकार को आगाह करते हुए कहा कि उसे अपने देश की राजनीतिक सीमाएं तय करने से पहले परिणामों के बारे में भी सोच लेना चाहिए। उन्हें यह भी याद करना चाहिए कि तिब्बत का क्या हश्र हुआ।मुख्यमंत्री ने नेपाल के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक रिश्ते का हवाला दिया और कहा कि भारत और नेपाल भले ही दो देश हों लेकिन यह एक ही आत्मा हैं। दोनों देशों के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक रिश्ते हैं, जो सीमाओं के बंधन से तय नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि नेपाल की सरकार को हमारे रिश्तों के आधार पर ही कोई फैसला करना चाहिए। अगर वह नहीं चेता तो उसे तिब्बत का हश्र याद रखना चाहिए।

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भारत और नेपाल का मौजूदा विवाद नेपाली कैबिनेट की ओर से पास नये राजनीतिक नक्शे को लेकर है। इसमें भारतीय क्षेत्र लिपुलेख, कालापानी व लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है। भारत के उत्तराखंड राज्य के बॉर्डर पर नेपाल-भारत और तिब्बत के ट्राई जंक्शन पर स्थित कालापानी करीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भारत का कहना है कि करीब 35 वर्ग किलोमीटर का यह इलाका उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है। जबकि नेपाल सरकार का कहना है कि यह इलाका उसके दारचुला जिले में आता है। नेपाल के इस फैसले में चीन का दखल माना जा रहा है। दोनों देश मामले को बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश में हैं।

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