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गधे भेज कर पाकिस्तान कमाता है करोड़ों, चीन देता है इतने पैसे

अभी कुछ दिन पूर्व ही पाकिस्तान में आर्थिक मामलों के सलाहकार अब्दुल हफीज शेख ने बताया कि देश में गधों की आबादी 55 लाख से ज्यादा हो जायेगी।

Aradhya Tripathi
Published on: 14 Jun 2020 11:42 AM GMT
गधे भेज कर पाकिस्तान कमाता है करोड़ों, चीन देता है इतने पैसे
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क्या आप कभी सोच सकते हैं कि गधे भी किसी के ककाम आ सकते हैं। या गधे आपको करोड़ों रूपए दिला सकते हैं। लेकिन ऐसा है। गधे की भी जरुरत है। अभी कुछ दिन पूर्व ही पाकिस्तान में आर्थिक मामलों के सलाहकार अब्दुल हफीज शेख ने बताया कि देश में गधों की आबादी 55 लाख से ज्यादा हो जायेगी। इसे कोरोना के कारण खस्ताहाल पाकिस्तान के लिए अच्छी खबर माना जा रहा है। वो इसलिए क्योंकि पाकिस्तान चीन को हर साल 80 हजार गधे भेजता है। जिसके बदले उसे मोटी कीमत मिलती है।

चीन में बनती है गधे की दवा

गधों की संख्या और बढ़े, इसके लिए चीन की कंपनियों ने पाकिस्तान में भारी इनवेस्टमेंट किया है। ट्रेडिनशनल दवाओं पर काफी यकीन करने वाले चीन में गधे के मांस से दवा बनाई जाती है। जो काफी लोकप्रिय है। दरअसल चीन में गधों के चमड़े से बनने वाले जिलेटिन यानी गोंदनुमा पदार्थ से एजियाओ नाम की दवा बनाई जाती है। Traditional Chinese Medicine (TCM) के तहत आने वाली ये दवा शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दी जाती है। इसके अलावा जोड़ों के दर्द में भी ये कारगर दवा मानी जाती है।

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रिप्रोडक्टिव समस्या में भी गधे की चमड़ी से बना जिलेटिन दवा की तरह लेते हैं और साथ में गधे का मांस भी खाया जाता है। चीन में इस दवा की भारी मांग है। इसका कारोबार लगभग 130 बिलियन डॉलर का माना जाता है। TCM के तहत आने वाली दूसरी दवाएं भी जानवरों से तैयार होती हैं। दावा किया जाता है कि सांप, बिच्छू, मकड़ी और कॉक्रोच जैसे जीव-जंतुओं से बनने वाली इन दवाओं से कैंसर, स्ट्रोक, पर्किंसन, हार्ट डिसीज और अस्थमा तक का इलाज होता है।

पाकिस्तान, अफ्रीका और ब्राजील भेजते हैं गधे

चीन में गधों की इसी मांग के कारण कई देश उसे गधों की सप्लाई कर रहे हैं। गधों पर काम करने वाली ब्रिटिश संस्था The Donkey Sanctuary के अनुसार चीन में हर साल इसी दवा के लिए 50 लाख से ज्यादा गधों की जरूरत होती है। इसी जरूरत को पूरा पाकिस्तान और अफ्रीका जैसे कई देश चीन को गधे भेज रहे हैं। बीते 6 सालों में इसकी जरूरत बढ़ी है और इसके साथ ही गधों की तस्करी भी बढ़ी। चीन में साल 1992 के बाद से गधा पालन उद्योग में कमी आई। इसकी वजह थी यहां लगातार बढ़ता इंडस्ट्रिअलाजेशन।

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इस वजह से खेती और पशुपालन करने वाले भी इंडस्ट्री के काम से जुड़ने लगे और दूसरे पशुओं की तरह गधों की संख्या भी घटने लगी। चीन में अब गधों की संख्या काफी काम हो गई है। जिसके कारण अब चीन गधों के लिए सिर्फ दुसरे देशों पर ही निर्भर है। ऐसे में आज कल पाकिस्तान और अफ्रीका के साथ-साथ ब्राजील से भी चीन में गधे भेजे जा रहे हैं। अकेले ब्राजील में ही साल 2007 में गधों की आबादी में लगभग 30 फीसदी तक कमी आ गई। माना जा रहा है कि इसके बाद से यहां भारी संख्या में गधों की तस्करी की जाने लगी।

Register of Chinese Herbal मेडिसिन ने की रोक लगाने की कोशिश

गधे सिर्फ दवा बनाने के दौरान नहीं मारे जाते। एक से दूसरे देश की कई दिनों के समुद्री सफर के दौरान 20 फीसदी से ज्यादा गधों की मौत हो जाती है। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की मांग को पूरा करने के लिए गर्भवती गधे, और यहां तक कि बच्चे गधे और बीमार जानवरों को भी सीमा पार कराई जा रही है। दूसरी ओर गधों के प्रजनन की दर दूसरे जानवरों से कम है और गधे के बच्चे को मैच्योर होने और प्रजनन लायक होने में भी काफी वक्त लगता है।

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यही वजह है कि इसकी संख्या चीन में बढ़ती दवा की लोकप्रियता के साथ बड़ी तेजी से घटी है। गधों के साथ हो रही बर्बरता को देखते हुए चीन में ट्रेडिशनल दवाओं पर काम कर रही संस्था Register of Chinese Herbal Medicine (RCHM) ने इसपर रोक लगाने की भी कोशिश की। संस्था का मानना है कि बीफ, पोर्क या चिकन के जिलेटिन को भी दवा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही शाकाहारी लोगों के लिए दवा में पेड़ों का जिलेटिन लिया जा सकता है।

Aradhya Tripathi

Aradhya Tripathi

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