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लखनऊ के नॉन वेज रेस्तराओं में ताले, बवाल के बाद से बैरे-कारीगर नदारद

नागरिकता संशोधन कानून को ले कर राजधानी में हुए बवाल के बाद अब शान्ति है और जिंदगी नॉर्मल हो चुकी है। लेकिन एक बदलाव भी है जो सबको नजर नहीं आ रहा। वो ये कि शहर के खाने पीने के तमाम अड्डे बंद पड़े हैं।

Shivakant Shukla
Published on: 30 Dec 2019 3:20 PM IST
लखनऊ के नॉन वेज रेस्तराओं में ताले, बवाल के बाद से बैरे-कारीगर नदारद
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लखनऊ: नागरिकता संशोधन कानून को ले कर राजधानी में हुए बवाल के बाद अब शान्ति है और जिंदगी नॉर्मल हो चुकी है। लेकिन एक बदलाव भी है जो सबको नजर नहीं आ रहा। वो ये कि शहर के खाने पीने के तमाम अड्डे बंद पड़े हैं।

खाने का मज़ा लेने वालों को इधर उधर भटकना पड़ रहा

जबरदस्त सर्दी के इस जोरदार मौसम में शाम-रात को गर्मागर्म कबाब, पराठे, तंदूरी चिकन, मटन स्टू आदि खाने का मज़ा लेने वालों को इधर उधर भटकना पड़ रहा है और रेस्तराओं में सीट खाली होने का घंटे-घंटे भर तक इंतजार करना पड़ रहा है। ये हाल लालबाग, नॉवेल्टी चौराहा, अलीगंज, तुलसी थिएटर के आस पास, निशातगंज वगैरह इलाकों में खासतौर ज्यादा नजर आ रहा है। इन इलाकों में दस्तरखान, नौशेजान, मिलन, प्रेम, उत्तम, चिकन कार्नर, वगैरह नॉन वेज की ढेरों दुकानें, रेस्तरां हैं। जहां हर समय ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है, खासकर सर्दी के मौसम में। अब यहां अनेकों दुकानें बंद पड़ी हैं, जो चंद खुली हैं वहां ग्राहकों का मेला लगा है।

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नॉन वेज के इन रेस्तरां में पड़ताल करने पर पता चला है कि नागरिकता कानून के विरोध में हुए बवाल के बाद रेस्तराओं के खानसामे, बैरे और अन्य कर्मचारी भाग गए हैं। अब आलम ये है जो रेस्तरां खुले हैं वहां के मालिक और मैनेजर खुद बैरे का काम कर रहे हैं। कई रेस्तराओं में तो सिर्फ पैकिंग आर्डर लिए जा रहे हैं क्योंकि बैरे हैं ही नहीं। सो, खाना पैक कराइये और घर जा कर खाइये।

ज्यादातर कर्मचारी बांग्ला भाषी हैं

पड़ताल करने से दो बातें निकल कर आईं। पहली ये कि ऐसे नॉनवेज रेस्तरां में कुक और कर्मचारी ज्यादातर ऐसे लोग रहे हैं जो बांग्ला भाषी हैं। ये लोग अपने को बंगाल और खासकर माल्दा का रहने वाला बताते हैं। कई तो अपने को असम का निवासी बताते हैं। सबके पास आधार कार्ड भी है। लेकिन इन सभी के बांग्लादेशी होने का शक किया जाता है। यही लोग अधिकतर मध्यम और छोटे रेस्तराओं में खानसामे का काम करते हैं। कम मजदूरी, हर काम करने को राजी, नॉन वेज बनाने में दक्ष ऐसे श्रमिक आसानी से उपलब्ध रहते हैं सो रेस्तराओं में इन्हीं के भरोसे काम चलता है।

बवाल के बाद कारीगर-मजदूर भाग गए हैं

तुलसी थिएटर के पास उत्तम रेस्तरां के मालिक बताते हैं कि लोकल लोग तो मेहनत से कतराते हैं, यहां काम करने वाले लोग मिलते ही नहीं हैं सो ‘बंगाल’ से आए कारीगरों को काम पर रखते हैं। ये सब काम करते हैं, नॉन वेज बनाने में एक्सपर्ट भी होते हैं। उन्होंने बताया कि बवाल के बाद पुलिस रेस्तरां इस इलाके में काम करने वाले कुछ लोगों को पकड़ कर ले गई। तबसे सब कारीगर-मजदूर भाग गए हैं।

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बताया जाता है कि परिवर्तन चौक के बवाल में जो तत्व शामिल थे उनमें ऐसे लोगों की खासी तादाद थी। या तो पुलिस की धरपकड़ से डर से ऐसे लोग भाग गए हैं या अवैध घुसपैठियों की पहचान के डर से कहीं और चले गए हैं। बहरहाल, इससे पता चलता है कि शहर में एक के बाद एक खुलते नॉन वेज रेस्तराओं में किन कारीगरों के भरोसे काम चल रहा है। वैसे, ये हाल सिर्फ लखनऊ का ही नहीं होगा बल्कि तमाम अन्य शहरों का है।

Shivakant Shukla

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