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आतंकियों पर हवाई हमला: 25 के उड़े ​चीथड़े, दनादन दागे गए राॅकेट

अमेरिकी सेना की ओर से जारी बयान के मुताबिक उसने इराक और सीरिया में काताइब हिजबुल्ला के पांच ठिकानों पर हमला किया था और कुछ घंटों बाद ही अमेरिकी सैन्य अड्डे पर हमला किया गया। हालांकि इस हमले में किसी के हताहत होने की जानकारी नहीं है।

Shivakant Shukla
Published on: 30 Dec 2019 12:19 PM IST
आतंकियों पर हवाई हमला: 25 के उड़े ​चीथड़े, दनादन दागे गए राॅकेट
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बगदाद: इराक ने एक बार फिर अमेरिका से पंगा लिया है। दरअसल, इराक की राजधानी बगदाद के पास अमेरिकी सैन्य अड्डे पर चार राॅकेट हमले किये गये हैं। इराक के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि बगदाद से करीब 30 किलोमीटर दूर अल-ताजी में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर रविवार की शाम ये हमले किये गये।

अमेरिकी सेना की ओर से जारी बयान के मुताबिक उसने इराक और सीरिया में काताइब हिजबुल्ला के पांच ठिकानों पर हमला किया था और कुछ घंटों बाद ही अमेरिकी सैन्य अड्डे पर हमला किया गया। हालांकि इस हमले में किसी के हताहत होने की जानकारी नहीं है।

इराक- सीरिया में हिजबुल्ला के ठिकानों पर अमेरिका का बड़ा हमला, 25 मरे, 51 घायल

बताते चलें कि रविवार को अमेरिका ने इराक और सीरिया में सक्रिय चरमपंथी संगठन कताएब हिजबुल्ला के पांच ठिकानों पर हमला किया था। इस हमले में मारे गए लोगों की संख्या बढ़कर 25 हो गई है, जबकि 51 अन्य लोग घायल हो गए हैं।

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इराकी ज्वाइंट आपरेशंस कमांड के मीडिया कार्यालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक अमेरिकी सेना ने सीरिया की सीमा से सटे अल-कैम के समीप हश्द शाबी की 45वीं ब्रिगेड के मुख्यालय को लक्ष्य कर तीन हवाई हमले किये थे। इस हमले में हश्द साबी के डिप्टी कमांडर समेत चार सदस्य मारे गये थे।

क्या है अमेरिका और ईराक का आंतरिक मामला

बताते चलें कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान की ओर से किसी भी तरह की उकसावे की कार्रवाई से ‘‘पूरी ताकत’’ से निपटने की धमकी दी थी। ट्रंप ने कहा था कि अगर वे कुछ करते हैं तो उससे पूरी ताकत से निपटा जाएगा, लेकिन हमें इस तरह का कोई संकेत नहीं मिला है कि वे ऐसा कुछ करेंगे।

ईरान पर न्यूक्लियर हथियार बनाने का आरोप

जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने ईरान, इराक और उत्तर कोरिया को ऐक्सिस ऑफ ईविल घोषित कर दिया जिसका ईरान में काफी विरोध हुआ। साल 2002 में ही पता चला कि ईरान न्यूक्लियर फसलिटी डेवलप कर रहा है जिसमें एक यूरेनियम प्लांट और एक हेवी वॉटर रियेक्टर शामिल थे। अमेरिका ने ईरान में चोरी-छिपे न्यूक्लियर हथियार बनाने का आरोप लगाया। हालांकि, ईरान ने इसका खंडन किया।

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संयुक्त राष्ट्र (UN) के सामने ईरान अपना पक्ष रखता रहा। साल 2006 से 2010 के बीच UN ने न्यूक्लियर मुद्दे पर ईरान पर चार बार बैन लगाया। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने भी ईरान पर कई बैन लगाए। यहां तक कि साल 2012 में फाइनेंशियल सेक्टर को भी शामिल कर लिया गया। इसमें कई और देश भी शामिल हुए।

साल 2007 में UN सिक्यॉरिटी काउंसिल ने ईरान से हथियारों के निर्यात पर बैन लगा दिया। वहीं, ईरान के इस्लामिक रिवल्यूशन गार्ड कॉर्प्स से जुड़े 20 संगठनों को अमेरिका के फाइनेंशियल सिस्टम और तीन बैकों से बैन कर दिया गया। अमेरिका ने इसके पीछे आतंकियों को सहारा दिए जाने की बात कही। ईरान के बैंकों और ईरान के कार्गो प्लेन्स को मॉनिटर किया जाने लगा।

2015 में हुआ समझौता

साल 2015 में चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और यूके ने ईरान के साथ जॉइंट कंप्रिहेन्सिव प्लान ऑफ ऐक्शन (JCPOA) पर साइन किया। इसके तहत ईरान ने अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम में बदलाव करने को सहमति दी और आश्वासन दिया कि वह शांति बनाए रखेगा। इसके बदले संयुक्त राष्ट्र, EU और अमेरिका उसके खिलाफ बैन हटाएंगे।

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ट्रंप ने तोड़ा समझौता

हालांकि, साल 2016 में अमेरिका के राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रंप शुरुआत से ही ईरान पर प्रतिबंध लगे रहने के पक्षधर थे। उन्होंने JCPOA से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया है। इसी के साथ एक बार फिर वह ईरान पर बैन लगाने के लिए तैयार हैं। बाकी देशों ने अमेरिका के इस कदम का साथ नहीं दिया है।

ईरान और अमेरिका के बीच सऊदी अरब बड़ा खिलाड़ी

माना जाता है कि मध्य एशिया में अमेरिका का सबसे बड़ा साथी सऊदी अरब है। वहीं, सऊदी सुन्नी बहुल देश है जबकि ईरान शिया बहुल। दोनों के बीच धार्मिक लड़ाई लंबे समय से चली आ रही है। इसके अलावा तेल की उपलब्धता भी दोनों के बीच एक बड़ी भूमिका निभाती है। माना जाता है कि प्रभुत्व की इस प्रतिस्पर्धा में सऊदी का साथ देने के कारण अमेरिका ईरान पर सख्त रवैया अपनाता है।



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Shivakant Shukla

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