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UP News: पुरानी फाइल से!अल्पसंख्यक हितों की रक्षा के लिए आयोग के पास संसाधनों का अभाव
National Commission for Minorities: अल्पसंख्यक हितों की रक्षा के लिए आयोग के पास संसाधनों की कमी होने की खबरें आ रही हैं। अल्पसंख्यकों के हकों की रक्षा के लिए संविधान द्वारा एक विशेष आयोग गठित किया गया है, लेकिन इसके पास अपने काम के लिए काफी कम संसाधन हैं।
National Commission for Minorities: नई दिल्ली, 16 जुलाई, 2000, अल्पसंख्यक आयोग का मानना है कि अल्पसंख्यकों के हितों की प्रभावी रक्षा के लिए उसके पास अधिकारों और संसाधनों का अभाव हैं। आयोग को किसी भी घटना की तह तक पहुंचने के लिए राज्य सरकार की रिपोर्टों पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि कभी किसी घटना स्थल का वह दौरा भी करता है तो घटना के काफी दिनों बाद तब काफी तथ्य समाप्त हो चुके होते हैं। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मुहम्मद शमीम ने दैनिक जागरण से अल्पसंख्यक हितों केा लेकर हुई बातचीत में बताया कि आयोग को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मानवाधिकार आयोग की तरह स्वायत्तता और अधिकार दरकार है। प्रस्तुत हे इस बातचीत के प्रमुख अंश-
अल्पसंख्यक आयोग के अधिकारों और कार्यप्रणाली से आप कितने संतुष्ट हैं?
पहले लोग आयोग पर टूथलेस होने का आरोप लगाते थे। मगर यह पूरी तरह सही नहीं है। हां, इतना जरुर सच है कि आयोग के पास कोई ठोस अधिकार नहीं है। उसे किसी भी जांच के लिए राज्य सरकार की रिपोर्ट पर निर्भर रहना पड़ता है। कई बार हूमारी टीम घटनास्थल का दौरा भी करती है । लेकिन उस समय तक काफी तथ्य समाप्त हो चुके होते हैं। यदि मौका मुआयना के दौरान पीड़ित पक्ष अपनी बात रखता भी है तो दोषियों के खिलाफ कार्यवाई करने के लिए राज्य सरकार को सिफारिश करने के सिवाय कोई चारा नहीं रहता। राज्य सरकारें घटनाओं की अपनी जांच के दौरान जिस पक्ष को दोषी मान चुकी हेाती हैं। उसके खिलाफ कोई नया निष्कर्ष स्वीकार करना उसके लिए कठिन हेाता है। आयोग सरकार से यह मांग कर रहा है उसे भी मानवाधिकार और संरचना प्रदान की जाए।
अकसर यह देखा गया है कि राज्यों के अल्पसंख्यक आयोग राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज कर देते हैं। इसकी कया वजह है?
राज्य अल्पसंख्यक आयोग एक स्वतंत्र इकाई होते है। हमारा इन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। यदि राज्य अल्पसंख्यक आयोग की इच्छा हेाती है तब वह हमसे पत्राचार करता है। जिन राज्यों में आयोग नहीं है, मात्र वही राज्य हमारे क्षेत्राधिकार में है। हम राज्य सरकारों पर यह दबाव जरुर बना सकते हैं कि वह अपने यहां आयोग का गठन करें।
आपको यह नहीं लगता कि अल्पसंख्यक आयोग महज मुसलिम अल्पसंख्यक हितों का पैरवीकार बन कर रह गया है?
यह सही नहीं है। हां, देश के अल्पसंख्यकों में सर्वाधिक तादाद मुसलिमों की है। इसलिए सबसे अधिक दिक्कतें इसी समुदाय के सामने आना लाजिमी है।
क्या हर राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय व संप्रदाय के लागों के हितों की देखभाल आयोग के दायरे में आनी चाहिए?
केंद्र सरकार ने इस बार आयोग का गठन करते हुए पहली दफा का पूरी तरह ध्यान रखा है। लंबे समय से जम्मू एवं कश्मीर में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक कश्मीरी पंडित को आयोग का सदस्य मनोनीत किया है। वैसे देश के किसी भी हिस्से से किसी भी अल्पसंख्यक को कोई भी शिकायत मिलती है तो घटना स्थल का दौराकर दोषियों के खिलाफ प्रभावी कार्यवाई के लिए संबंधित राज्य सरकार को लिखता है।
आयोग की सक्रियता तभी दिखाई देती है जब कहीं कोई वारदात हो जाती है। आयोग ने क्या कभी अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थितिसुधारने के लिए कोई पहल की है?
यह सही है कि आज के पहले इस दिशा में आयोग ने क्या, हमने भी कभी हुछ नहीं सोचा।यह सुझाव अच्छा है। अब मैं कोशिश करुंग कि आयोग इस दिशा में पहल करे लेकिन इसमें कई तरह की दिक्कतें भी हैं। मसलन, अल्पसंख्यकों को आर्थिक सहायता मुहैया कराने के लिए गठित अल्पसंख्यक वित्तीय निगम भी महज कागजी संस्थान बन कर रह गया है। इसको सक्रिय किए बिना इस दिशा में कोई सार्थक पहल कर पाना संभव नहीं है।
अल्पसंख्यकों में शिक्षा का स्तर काफी गिरा है। फिर भी मदरसा शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाए जाने का विरोध जारी है। क्या वर्तमान मदरसा शिक्षा व्यवस्था में पढ़े-लिखे छात्र आधुनिक तकनीकी से प्रशिक्षित छात्रों से प्रतियोगिता कर पाएंगे। मदरसा शिक्षा व्यवस्था में तब्दीली के लिए आयोग कोई पहल करेगा?
वैसे तो यह आयोग के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है । लेकिन इस दिशा में पहल तो की ही जानी चहिए।
ईसाई समुदाय के साथ पिछले दिनों हुई घटनाओं को आप किस नजरिये से देखते हैं। इससे उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए आयोग की प्रभावी क्या है?
आयोग के सदस्यों ने मथुरा और केासी सहित कई स्थानों का दौरा किया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी है। आयोग इसे कानून व व्यवस्था की खामी मानता है। इस संदर्भ में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल के प्रतिनिधियों से बात हो चुकी है। त्रिवेंद्रम स्थित ईसाई समुदाय के आर्च बिशप और कई अन्य बिशप आयोग से अलग-अलग मिल चुके हैं।उनसे बातें हुई। हमारी कोशिश है कि दोनों संप्रदाय के प्रतिनिधियों को अपने-सामने बैठाकर इस विवाद का हल निकाला जाए । लेकिन ईसाई समुदाय के प्रतिनिधि आपस में मिल-बैठ कर तय नहीं रक पर रहे हैं कि उन्हें क्या करना है। फिर भी विश्वास है कि आयोग शीघ्र ही इसका हल निकालने में कामयाब हो सकेगा।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक- 17 जुलाई, 2000 को प्रकाशित)