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सड़क हादसों में मजदूरों की मौत, भाकपा ने सरकार से की ये मांग
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने मुजफ्फर नगर और मध्य प्रदेश के गुना में कल सड़क हादसों में 14 मजदूरों की दर्दनाक मौत पर दुख व्यक्त किया है।
लखनऊ: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने मुजफ्फर नगर और मध्य प्रदेश के गुना में कल सड़क हादसों में 14 मजदूरों की दर्दनाक मौत पर गहरा दुख व्यक्त किया है। भाकपा ने शुक्रवार को भी फिर उत्तर प्रदेश के ही विभिन्न स्थानों पर सड़क हादसों में मजदूरों की मौतों की खबरों को अंदर तक हिला देने वाली बताया है। भाकपा ने इन हादसों के लिये सीधे राज्य और केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी ने केन्द्र और राज्य सरकार के मुखियाओं से इन मौतों की नैतिक जिम्मेदारी लेने की मांग की है।
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मजदूरों का धैर्य टूट चुका है
भाकपा राज्य सचिव डा. गिरीश ने शुक्रवार को कहा कि अनियोजित लॉकडाउन में मिल रही यातनाओं से पीड़ित और उन्हें समय पर घरों तक पहुंचाने में केन्द्र और राज्य सरकारों की असफलताओं से प्रवासी मजदूरों का धैर्य टूट चुका है और वे अपनी जान हथेली पर रख कर घरों को निकल रहे हैं।
मजदूरों को प्रताड़ित किया जा रहा है
अब सड़कों पर न निकलने की सत्ताधारियों की अपील और रेल- बसों से पहुंचाने के उनके बयानों का उनके लिये कोई महत्व नहीं रह गया है। ‘अब मरता क्या न करता’ की स्थिति में निकले देश के इन कर्णधारों और पूंजी के निर्माताओं को उनके रास्तों में रोका जा रहा है, उनकी बची खुची पूंजी उनसे छीनी जा रही है, उन्हें लाठी- डंडों से खदेड़ा जा रहा है, अपने खर्चे से जुटाये यातायात के साधन उनसे छीने जा रहे हैं, उन्हें शारीरिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। उनमें से अनेक भूख-प्यास, बीमारी और थकान से जानें गंवा चुके हैं।
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...हम सबको मुंह चिड़ाने लगा है
हर रोज तमाम लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवा रहे हैं। हर दर्दनाक मंजर पर उत्तर प्रदेश सरकार का एक जैसा बयान “ मुख्यमंत्री ने घटना का संज्ञान लिया है, घटना पर दुख व्यक्त किया है, घटना की जांच के आदेश दे दिये गये हैं, म्रतको व घायलों को मुआबजे का ऐलान कर दिया गया है” आदि अब पीड़ितों को ही नहीं हम सबको मुंह चिड़ाने लगा है। गत तीन सालों में हुयी हजारों घटनाओं की कथित जांच का परिणाम भी आज तक अज्ञात है।
भाकपा साफतौर पर कहना चाहती है कि सड़कों पर निकल पड़े इन मजबूर मजदूरों को अब सत्ताधारियों के उपदेशों और सहानुभूति की जरूरत नहीं है। उनकी पहली जरूरत है उन्हें जो जहां है वहाँ से पिकअप कर घरों तक पहुंचाया जाये। इन तीन सालों में तीन-तीन कांवड़ यात्राओं और अर्धकुंभ को, कुंभ से भी बेहतर तरीके से आयोजित करने का श्रेय उत्तर प्रदेश सरकार लेती रही है। फिर इन कुछ लाख मजदूरों की यह जानलेवा उपेक्षा किसी की भी समझ से परे है।
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इन असहाय मजदूरों की मौतों पर मुआवजे की मांग तो की जाती रही है और की जानी ही चाहिये, लेकिन आज हम सरकारों से एक ही मांग कर रहे हैं कि ‘जो भी मजदूर सड़क पर दिखे उसे उचित संसाधन से सुरक्षित घर पहुंचाया जाये। यह सरकार का कर्तव्य है और नैतिक दायित्व भी।
रिपोर्ट: मनीष श्रीवास्तव
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