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कांग्रेसियों ने हार से लिया सीख! ये काम करके अमेठी में बना रहे राहुल गांधी की जमीन
2019 में अपने लीडर राहुल गांधी की हार से सबक सीखते हुए कांग्रेसियों को उन दबे कुचलों की याद फिर से आ गई है जिनके बीच जाना कांग्रेसी अपनी तौहीन समझते थे।
असगर
अमेठी: हार कर सीख मिलती है। काफी पुराना ये तर्क है। मौजूदा समय में अमेठी कांग्रेस के नेताओं पर ये दुरूस्त बैठता है। 2019 में अपने लीडर राहुल गांधी की हार से सबक सीखते हुए कांग्रेसियों को उन दबे कुचलों की याद फिर से आ गई है जिनके बीच जाना कांग्रेसी अपनी तौहीन समझते थे। बीते वर्ष दिसम्बर माह के अंत से नए वर्ष की शुरुआत पर कांग्रेसियों ने राहुल गांधी की ओर से भेजे गए कंबल बांट कर राहुल गांधी की अमेठी में जमीन बनाना शुरू कर दिया है।
स्मृति के पैटर्न पर राहुल, समाज के आखरी आदमी तक पहुंचने के लिए अपनाई ये ट्रिक
हार के बाद से वो अमेठी एक ही बार आए। यानी 7 महीने में एक बार। ये वही दूरी ही थी के जिस अमेठी में गांधी परिवार का सिक्का चलता था वहां वो अर्श से हाशिए पर आ गए। ख़ैर इस खाई को पाटने के लिए उन्होंने स्मृति ईरानी वाली ट्रिक अपनाई। हार के बाद स्मृति ईरानी भले ही दिल्ली में होतीं थीं लेकिन उनके द्वारा सर्दी से बचाव के सामान, गर्मी में आग से तबाह हुए परिवार के लिए मदद और त्योहारों पर उपहार। ठीक इसी पैटर्न पर राहुल गांधी ने भी अमेठी के आख़री आदमी तक के लिए सोचा।
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हाल ही में पड़ी कड़ाके की ठंड में उनके द्वारा अमेठी के गरीबो के लिए कंबल भेजे गए। जिसे अलग-अलग इलाकों में जाकर कांग्रेस जिलाध्यक्ष समेत अन्य पदाधिकारियों ने बांटा। इस क्रम में जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल ने 25 दिसम्बर से बराबर जिले में निकलकर जरूरतमंदों को कम्बल बांटे। उनके द्वारा बहादुरपुर मंडी में पल्लेदारों को, जगदीशपुर बाज़ार और सलोन बाजार में कंबल वितरण किया गया।
जिलाध्यक्ष बदलने के बाद से कांग्रेसी कुर्सी छोड़ सड़क पर लगे दिखने
अमेठी कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल ने हाल ही में कांग्रेस हाईकमान के रिक्मेण्ट पर मनोनीत किए गए हैं। जिले में पार्टी की कमान उनके हाथों में आने के बाद कांग्रेसी सड़कों पर दिखाई देना शुरू हुए। यानी समाज के आख़री आदमी तक कांग्रेस वर्कर्स ने मिलना शुरू किया। दरअस्ल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेसी वर्कर्स गौरीगंज स्थित पार्टी के केंद्रीय कार्यालय तक सिमट कर रह गए थें। सुबह पार्टी दफ्तर की कुर्सियों पर कांग्रेसी आकर बैठ जाते, दो चार चाय, इधर-उधर की राजनैतिक बातें और शाम होते फिर घर को चल देते।
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15 साल के सांसद 50 हजार वोटों से हुए थे पराजित
दूसरी तरफ बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार कर भी स्मृति ईरानी अमेठी में डटी रहीं। इससे उनके और पार्टी वर्कर्स का मनोबल टूटने के बजाए दिन दुना और रात चौगुना बढ़ता गया। स्मृति और उनके कार्यकर्ता लोगों के सुख-दुःख में शामिल होते, लोगों की बात को सुनते, समस्यात्मक मामलों से सम्बंधित शिकायती पत्र रद्दी की टोकरी में डालने के बजाए उस पर अमल करते। आम आदमी और समाज के दबे हुए आदमी ने इस बात को क़रीब से महसूस किया। नतीजा ये हुआ के 2019 में पासा पलटा 15 साल के सांसद 50 हजार वोटों से पराजित हुए।