TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

आरक्षण के नाम पर दी दलील, देश के सभी IIM ने सरकार से की ये मांग...

देश 20 आईआईएम संस्थान ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से पत्र लिखकर मांग की है कि उन्हें ‘इंस्टीट्यूशंस ऑफ़ एक्सिलेंस’ का दर्जा दिया जाए। यह दर्जा इन शीर्ष प्रबंध संस्थानों को सम्मान दिलाने या छात्र-छात्राओं या देश के हित को देखते हुए नहीं मांगा गया है

suman
Published on: 2 Jan 2020 10:49 AM IST
आरक्षण के नाम पर दी दलील, देश के सभी IIM ने सरकार से की ये मांग...
X

अहमदाबाद: देश 20 आईआईएम संस्थान ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से पत्र लिखकर मांग की है कि उन्हें ‘इंस्टीट्यूशंस ऑफ़ एक्सिलेंस’ का दर्जा दिया जाए। यह दर्जा इन शीर्ष प्रबंध संस्थानों को सम्मान दिलाने या छात्र-छात्राओं या देश के हित को देखते हुए नहीं मांगा गया है, बल्कि इसका मक़सद संस्थानों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) कोटे के माध्यमों से प्रोफ़ेसरों की भर्तियां नहीं करना है।

एक ख़बर के मुताबिक़ इन आईआईएम ने कहा है कि छूट दिए जाने का पहले से उदाहरण है, इसलिए आईआईएम ने भी ऐसा अनुरोध किया है कि संस्थान की भर्ती प्रक्रिया साफ़ सुथरी है और संस्थान यह कवायद करता है कि वंचित तबक़े को भी इसी प्रक्रिया के तहत प्रवेश दिया जाए। लेकिन आरक्षण ग्लोबली प्रतिस्पर्धा करने का रास्ता नहीं हो सकता है।

यह पढ़ें...संकट में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी: कुलपति समेत कई प्रोफेसरों ने दिया इस्तीफा, ये है वजह…

बता दें कि अभी 9 जुलाई 2019 को ही केंद्र सरकार के राजपत्र में केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में अध्यापक की श्रेणी में आरक्षण का नियम दिया गया है। इस एक्ट की धारा 4 के अनुसार आरक्षण के प्रावधान इंस्टिट्यूशन ऑफ़ एक्सिलेंस, रिसर्च इंस्टिट्यूशंस, राष्ट्रीय और रणनीतिक महत्व के संस्थानों में लागू नहीं होंगे। इस श्रेणी में गज़ट में 8 संस्थान रखे गए- होमी भाभा नेशनल इंस्टिट्यूट (इसके तहत आने वाले 10 संस्थान भी) मुंबई, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च, नॉर्थ ईस्टर्न इंदिरा गाँधी रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ एंड मेडिकल साइंस, शिलांग, नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर मानेसर, गुड़गाँव, जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलूरु, फ़िजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद, स्पेस फ़िजिक्स लेबोरेटरी, तिरुवनंतपुरम और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ रिमोट सेंसिंग को शामिल किया गया था।

अब आईआईएम इस श्रेणी में ही रहना चाहते हैं ताकि उनके टीचिंग स्टाफ़ आरक्षण के माध्यम से न आ सकें। देश भर के तमाम विश्वविद्यालयों, डिग्री कॉलेजों और अन्य सरकारी संस्थानों में जिस तरह से आरक्षण किया गया, विश्वविद्यालयों में ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग से जुड़े लोगों ने प्रदर्शन किए। सरकार ने संसद से लेकर मीडिया तक में ढेरों आश्वासन दिए कि वंचित तबक़े के हक की हर तरह से रक्षा की जाएगी। लेकिन हक़िक़त यह है कि अभी भी शिक्षण संस्थानों में भर्ती, अन्य सरकारी विभागों की नौकरियों में भर्ती को लेकर बेइमानियां हो रही हैं। आरक्षित कोटे के मुताबिक़ वैकेंसी नहीं आती है और तमाम मामलों में जब परिणाम आता है तो ओबीसी की मेरिट सामान्य से ऊपर चली जाती है क्योंकि क़रीब 60 प्रतिशत ओबीसी आबादी को महज कुछ आरक्षित सीटों में समेट दिया जाता है।

यह पढ़ें...CAA के सारे सवालों के जवाब देबी BJP, जेपी नड्डा आज शुरू करेंगे जन जागरण

इस समय देश के 20 आईआईएम में तैनात कुल फैकल्टी सदस्यों में 90 प्रतिशत से ज़्यादा सामान्य श्रेणी के हैं। सरकार ने इस मसले पर हंगामे को देखते हुए नवंबर 2019 में सरकार ने सभी भारतीय प्रबंध संस्थानों को निर्देश जारी कर कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमज़ोर तबक़े के अभ्यर्थियों को फैकल्टी में आरक्षण की व्यवस्था की जाए। सरकार ने इसके पहले भी कई बार आईआईएम को सलाह दी थी कि वह आरक्षित वर्ग के लोगों की नियुक्तियां करे।

यह विवाद 1970 के दशक से चल रहा है जब साइंटिफिक और टेक्निकल पदों को आरक्षण से मुक्त किया गया था। आईआईएम उसी आधार पर आरक्षण से मुक्ति मांगते रहे हैं। उस समय ओबीसी आरक्षण नहीं हुआ करता था, लेकिन एससी-एसटी को आरक्षण मिलता था। केंद्र सरकार ने जब इस साल नई अधिसूचना निकाली तो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (ओबीसी) को भी उसमें शामिल किया गया है और संस्थानों के नाम भी गिनाए गए हैं कि किन संस्थानों को आरक्षण से मुक्त रखना है।



\
suman

suman

Next Story