×

चकों में भटकते यूपी के गांव, इतने सालों बाद भी नहीं पूरी हुई चकबंदी

seema
Published on: 9 Aug 2019 7:09 AM GMT
चकों में भटकते यूपी के गांव, इतने सालों बाद भी नहीं पूरी हुई चकबंदी
X
चकों में भटकते यूपी के गांव, इतने सालों बाद भी नहीं पूरी हुई चकबंदी

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ : बहुचर्चित और बहुत ही कामयाब मानी जाने वाली फिल्म मदर इंडिया का किरदार सुक्खी लाला भले ही मर गया हो, लेकिन आज उत्तर प्रदेश में हजारों सुक्खी लाला मौजूद हैं जो गरीबों की जमीन पर कब्जा कर रहे है। इसका कारण यह है कि चकबंदी विभाग बनने के 65 साल बाद आज भी लाखों ऐसे राजस्व गांव है जहां चकबंदी नही हो पाई है। वर्ष 1954 में उत्तर प्रदेश में सबसे पहले मुजफ्फरनगर जिले में और अब शामली जिले में आ चुकी कैराना तहसील में चकबंदी की शुरुआत हुई थी। उसी कैराना तहसील के किसान चकबंदी की मांग लंबे समय से करते रहे हैं, लेकिन उनकी मांगों को माना नहीं जा रहा है।

स्थिति यह है कि जिले के आधा दर्जन से अधिक गांवों के लोग लखनऊ से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट तक चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सैकड़ों बीघा जमीन पर अवैध कब्जा है। चकबंदी न होने का खामियाजा सबसे ज्यादा छोटे किसानों को उठाना पड़ रहा है। यहां के गावों की हजारों बीघा सरकारी, ग्राम समाज,पट्टों, तालाबों और किसानों की जमीन पर भूमाफिया काबिज हैं। चकबंदी नहीं होने से गांवों के अधिकतर तालाब सिर्फ सरकारी रिकार्ड में ही बचे हैं। सैकड़ों बीघा चारागाह, तालाब और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे हैं। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के थानों के रजिस्टर जमीनी विवादों के मामलों से भरे पड़े हैं। गरीब की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है।

यह भी पढ़ें : मुख्यमंत्री योगी के इम्तिहान में फेल हो गए यूपी के इन 24 जिलों के डीएम

चकबंदी विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां 1962 से ही चकबंदी की प्रक्रिया चालू है, लेकिन आज तक लंबित है। उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में चकबंदी के विरोध और समर्थन में जिलाधिकारी कार्यालयों में धरना-प्रदर्शन रोज का काम हो गया हैं। सिर्फ यूपी की तहसीलों में 1 लाख 728 मामले चकबंदी प्रक्रिया में धांधली को लेकर चल रहे हैं। जौनपुर जिले खुटहन ब्लाक के बीरमपुर गांव में 1997 में चकबंदी प्रक्रिया शुरू की गई थी। चकबंदी में जमीनों का सही मूल्यांकन न होने से बहुत से किसान भूमिहीन हो गए हैं। इसलिए चकबंदी प्रक्रिया दोबारा शुरू करने की मांग हो रही है।

दौड़भाग से टूट जाता है किसान

चकबंदी में सबसे अहम भूमिका लेखपाल की होती है। लेखपाल ही इन किसानों की जमीनों की पैमाइश करता है। लेखपाल की जाने या अनजाने में की गयी लापरवाही गरीब किसान को उसके हिस्से की जमीन के एक बड़े हिस्से से उसे बेदखल कर देती है। लेखपाल के फैसले से संतुष्ट न होने पर गरीब किसान सहायक चकबंदी अधिकारी, चकबंदी अधिकारी, बंदोबस्त अधिकारी, उपसंचालक चकबंदी जैसे अधिकारियों से और यहां भी संतुष्ट न होने पर उच्च न्यायालय में अपनी शिकायत कर सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया इतनी लंबी है कि गरीब किसान रोज-रोज की दौड़भाग से टूट जाता है और उसकी जमीन पर किसी और की फसल लहलहा रही होती है। कहीं-कहीं जब गरीब किसानों का सब्र टूट जाता है तो भट्टा परसौल व टप्पल जैसी घटनाएं हो जाती है।

यह भी पढ़ें : अयोध्या मामला: SC में सुनवाई शुरू होने के बाद अब सब साफ होने की उम्मीद

कोर्ट के भी चक्कर काट रहे किसान

कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्यशैली के कारण हजारों गांवों में चकबंदी के इंतजार में तीन पीढिय़ा गुजर गईं, लेकिन चकबंदी का काम पूरा नहीं हुआ। चकबंदी के चक्कर में दादा जी भी जीवन भर परेशान रहे और अब नाती-पोते भी परेशान हैं। परेशान किसान शासन-प्रशासन से लगातार गुहार लगाते आ रहे हैं। वहीं कुछ किसान उच्च न्यायालय में भी गुहार लगा चुके है, लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात। हालत यह है कि कई गांवों की तो आज स्थिति ही बदल चुकी है। कई गांव ऐसे हैं जिनकी जमीन की मालियत कृषि भूमि के तौर पर की गयी, लेकिन चकबंदी में हुई देरी के कारण अब विवाद सामने आ रहे हैं।

ऐसे शुरू हुई देश में चकबंदी

देश में चकबंदी आजादी से पहले 1925 में सहकारी समिति के माध्यम से पंजाब में शुरू हुई थी। 1939 में संयुक्त प्रांत जोत चकबंदी अधिनियम बनाकर 6004 गांवों में चकबंदी हुई। आजादी के बाद 1954 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की कैराना तहसील और सुल्तानपुर जिले की मुसाफिरखाना तहसील में प्रयोग के तौर पर इसकी शुरुआत की गई थी। 1958 में इसे पूरे प्रदेश में लागू करने के साथ ही चकबंदी योजना के संचालन के लिए चकबंदी विभाग का गठन किया गया।

चकबंदी न होने से कानून व्यवस्था की समस्या

गोरखपुर जिले के गोला तहसील के बड़हलगंज ब्लाक के तहत खड़ेसरी ग्राम पंचायत में चकबंदी की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 1995 में खड़ेसरी गांव की मालियत कृषि भूमि के आधार पर निर्धारित की गयी, लेकिन अब नगर पंचायत बड़हलगंज का विस्तार होने से अब यह खड़ेसरी गांव के नजदीक आ गया है और अब इस गांव में मेडिकल कालेज भी शुरू हो गया है और फोरलेन सड़क भी प्रस्तावित है। चकबंदी अधिकारी ने चक्र निर्धारण की प्रक्रिया में इसकी मालियत 1995 के आधार पर ली तो किसान विरोध पर उतर आए। प्रदेश के चकबंदी आयुक्त भगेलू राम भी स्वीकार करते हैं कि चकबंदी प्रक्रिया पूरी न हो पाने से ग्रामीण क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था की समस्याएं आती हैं।

चकबंदी निदेशालय उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में दो चरण की चकबंदी प्रक्रिया चलने के बाद भी 1,10,299 राजस्व गांवों में आज तक चकबंदी नहीं हो पाई है। प्रदेश के करीब 3500 गांवों में पिछले पांच साल से चकबंदी चल रही है, लेकिन आए दिन हंगामे और झगड़े के कारण चकबंदी अधिकारियों के न्यायालयों में हर दिन दर्जनों मामले आ रहे हैं। प्रदेश सरकार ने बीते मानसून सत्र में एक सवाल के जवाब में यह माना कि पांच साल बीतने के बाद भी 1545 गांवों की चकबंदी ही हो पाई है।

आखिर क्या है चकबंदी

चंकबंदी आयुक्त कार्यालय के सामान्य प्रशासन विभाग में कार्यरत सत्यनारायण बताते हैं कि चकबंदी में गांव में किसान के मौजूद कई छोटे खेतों को यानी चकों को मिलाकर एक या दो चक बनाया जाता है। आजकल जमीन बंटवारे के कारण छोटे-छोटे चक होने से खेती के लिए जरूरी सुविधाएं जुटाने में मुश्किल हो रही है। ऐसे में चकबंदी के दौरान सभी खेतों तक जाने के लिए रास्ते की सुविधा मिल जाती है। इसके अलावा गांव में सार्वजनिक हित के काम जैसे स्कूल, अस्पताल, खेल का मैदान, श्मशान और सामुदायिक भवन के लिए जमीन मुहैया हो जाती है।

चकबंदी का उद्देश्य

चकबंदी के पीछे मकसद यह है कि इससे किसानों के जगह-जगह बिखरे हुए जोतों को एक स्थान पर करके बड़ा चक बना दिया जाता है जिससे चकों की संख्या कम होती है और किसानों को खेती करने में आसानी होती है। चकबंदी हो जाने से किसान एक ही बड़े जोत में अपने संसाधन का समुचित उपयोग कर पाते हैं जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है। माना जाता है कि चकबंदी होने से गांवों में जमीन को लेकर झगड़े कम होते हैं। इसके साथ ही गांव की सार्वजनिक भूमि पर जो लोग अवैध रूप से काबिज हैं, उनसे उस भूमि को मुक्त करा लिया जाता है। चकबंदी के दौरान खेतों की सिंचाई के लिए प्रत्येक चक को नाली और आवागमन की सुविधा के लिए चकमार्ग यानी चकरोड से जोड़ दिया जाता है। चकबंदी से पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है क्योंकि चकबंदी में गांवों में वृक्षारोपण के लिए भी जमीन आरक्षित कर दी जाती है।

खाद्यान्न उत्पादन घटने का भी खतरा

देश के जाने-माने कृषि अर्थशास्त्री डा.समर सेन के नेतृत्व में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से गठित कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि चकबंदी नहीं होने से खाद्यान्न उत्पादन घटेगा। उन्होंने चकबंदी की प्रक्रिया को तेज करने की अपील की थी। डा.सेन ने जमीन के टुकड़ों में बंटने को एक प्रमुख समस्या करार दिया था। उन्होंने चकबंदी की प्रक्रिया को तेज करने का कहा था।

seema

seema

सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

Next Story