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राममंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनने के ये रहे सबूत
विवादित इमारत के ठीक नीचे मिली इस इमारत का आकार 50 गुणे 30 मीटर उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम था। इसके 50 खंभों के आधार मिले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक खुदाई में 15 गुणे 15 मीटर का एक चबूतरा मिला है। इसमें एक गोलाकार गड्ढा है।
योगेश मिश्र
लखनऊ: संयोगों पर किसी का नियंत्रण-निर्देशन नहीं चलता है। वे अपनी गति और तरीके से घटित होते हैं। तकरीबन 70 सालों से विवाद का केंद्र बने रामजन्मभूमि प्रकरण में बीते बुधवार से जब सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की सभी कोशिशों के विफल होने के बाद सुनवाई शुरू की तो विवाद के पक्षकारों समेत हर किसी को लगने लगा कि अब चंद दिनों में वह सबकुछ साफ हो जाएगा, जिसने दो-तीन दशक से भारतीय राजनीति व सामाजिक ढांचे पर जबरदस्त असर डाला है।
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आज केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की दूसरी बार प्रचंड बहुमत की सरकार है। भाजपा सरकार जनसंघ के जमाने के अपने एजेंडे 370 के खात्मे और समान नागरिक संहिता की तरफ बढ़ निकली है। यह संयोग ही कहा जा सकता है कि इस मुद्दे पर सर्वोच्च अदालत इसी समय तेजी से सुनवाई कर रही है। हालांकि अदालती फैसलों का सरकार से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता। अदालतें स्वतंत्र और निष्पक्ष होती हैं। उसके कामकाज अपने गति और तरीके से चलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट को भी अजीब लगा फैसला
इसी मामले पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 15 सौ वर्ग फुट के भूखंड पर टाइटिल विवाद पर फैसला देने की जगह उसके तीन भाग करके तीनों याचिकाकर्ताओं को जिस तरह संतुष्ट करने की कोशिश की, वह बात सर्वोच्च अदालत को खुद रास नहीं आई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का यह फैसला कुछ अजीब सा है। हाईकोर्ट ने जमीन के बंटवारे का आदेश दे दिया, जबकि किसी ने बंटवारे का आग्रह ही नहीं किया था।
काबिलेगौर है तीनों जजों की टिप्पणियां
इसके बावजूद अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाले लखनऊ खंडपीठ के तीनों जजों की टिप्पणियां काबिलेगौर हो जाती हैं। जस्टिस सिबगतउल्ला खान ने लिखा, यह एक छोटा सा भूखंड है, जो बारूदी सुरंगों से भरा पड़ा है, हमसे कहा गया है कि इसे साफ किया जाए। तीनों पक्षों- हिंदुओं, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़े में से प्रत्येक को एक-एक तिहाई हिस्सा दिया जाता है।
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जबकि जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा, विनाश के समय न तो अस्तित्व था, न ही अनअस्तित्व। उस समय न तो लोक था, न तो अंतरिक्ष से परे कुछ था। परिसर का अंदर वाला हिस्सा दोनों ही समुदायों से संबंधित है क्योंकि हिंदू और मुसलमान इस परिसर का इस्तेमाल दशकों से कर रहे थे।
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बाहरी अहाते में आने वाला राम चबूतर, सीता की रसोई और भंडारा निर्मोही अखाड़े को दिया जाता है। जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा कि 1992 में मिले एक शिलालेख में बाबर से आने के बहुत पहले, गहड़वाल शासकों द्वारा ग्यारहवीं व बारहवीं शताब्दी के अयोध्या में विष्णु हरि मंदिर बनवाने का उल्लेख है।
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जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने कहा, वाद में शामिल की गई संपत्ति रामचंद्र की जन्मभूमि है। हिंदुओं को उनकी पूजा करने का अधिकार है। फैसले से पहले 16 हजार पन्नों के सबूतों का अध्ययन किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) रिपोर्ट को भी फैसले का आधार बनाया।
गजेटियर के विशेष अंश का उल्लेख
थार्नटन के गजेटियर में डॉ.बुकनॉन के हवाले से दर्ज है कि वहां स्थित खंडहर को लोग अब भी रामगढ़ या रामकिला मानते हैं। तीनों जजों ने गजेटियर के उस अंश का विशेष उल्लेख किया है जिसमें लिखा है कि विवादित परिसर में जमीन से पांच या छह इंच उठा एक चौकोर पत्थर है, जिसकी हिंदू तीर्थयात्री बहुत इज्जत करते हैं।
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इसे विष्णु के सातवें अवतार राम के जन्म का स्थान/पालना माना जाता है। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक सोलहवीं शताब्दी में मुगल बादशाह बाबर ने वहीं मस्जिद बनवाई जो परंपरागत रूप से राम जन्म स्थान माना जाता था और जहां एक पुराना राम जन्मभूमि मंदिर स्थित था।
खंभे मिले तो इंदिरा ने बंद कराई खुदाई
अयोध्या में 1968 और 1975 में भी एएसआई की खुदाई हो चुकी है। प्रो.बीबी लाल और एसपी गुप्ता के निर्देशन में हुई खुदाई के निष्कर्ष महज इतना ही बता पाए थे कि अयोध्या की प्राचीनता छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व की है। पुरातत्ववेत्ता डॉ. एसपी गुप्ता ने कहा है कि पश्चिम के तरफ दो खंभे मिले तो इंदिरा गांधी ने खुदाई बंद करा दी।
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डॉ.गुप्ता इंदिरा गांधी के जमाने के शिक्षा मंत्री नूरुल हुसन के निर्देश पर अयोध्या के उत्खनन कार्य में जुटे थे। जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ खंडपीठ के निर्देश पर वर्ष 2003 में खुदाई करने वाले प्रो.बीबी लाल की रिपोर्ट बताती है कि सबसे नीचे के स्तर पर सात सौ ईसा पूर्व के अवशेष हैं।
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ऊपर तेरहवीं, चौदहवीं और पंद्रहवी शताब्दी के अवशेष हैं। इसमें कुषाण और शुंग काल से लेकर गुप्त काल और प्रारंभिक मध्य युग तक के अवशेष हैं। वहां मंदिर था, नीचे पिलर बेस है। गोलाकार मंदिर दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया है।
16वीं शताब्दी में बनी विवादित इमारत
इसके बाद प्रारंभिक मध्य युग 11वीं, 12वीं शताब्दी की 50 मीटर उत्तर-दक्षिण इमारत का ढांचा मिला जो ज्यादा समय तक नहीं रहा। इस ढांचे के ऊपर एक और विशाल इमारत का ढांचा है, जिसकी फर्श तीन बार में बनी। इसी इमारत के भग्नावशेष के ऊपर वह विवादित इमारत (मस्जिद) 16वीं शताब्दी में बनी।
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विवादित इमारत के ठीक नीचे मिली इस इमारत का आकार 50 गुणे 30 मीटर उत्तर-दक्षिण और पूरब-पश्चिम था। इसके 50 खंभों के आधार मिले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक खुदाई में 15 गुणे 15 मीटर का एक चबूतरा मिला है। इसमें एक गोलाकार गड्ढा है। ऐसा लगता है कि वहां कोई महत्वपूर्ण वस्तु रखी गई थी।
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इमारतों के 184 भग्नावशेष हैं। इनमें सजावटी ईंटें, दैवीय युगल, आमलक, द्वार, चौखट, ईंटों का गोलाकार मंदिर, जलनिकास का परनाला और एक विशाल इमारत से जुड़े 50 खंभे शामिल हैं। दैवीय युगल की तुलना शिव-पार्वती से की गई है। खुदाई के दौरान सिक्के व टेराकोटा की कई टूटी-फूटी आकृतियां भी मिलीं।
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के-4 ट्रेंच में चार सूत गोलाई का छेद वाला मूंगा और इसी आकार का मनका मिला। के-6 ट्रेंच में तीन इंच चौड़ी लाल मिट्टी की बनी दाहिने पैर की चरणपादुका मिली। के-7 ट्रेंच में एक इंच लंबा पत्थर का टुकड़ा, तांबे के टुकड़े और दो अदद मिट्टी की नाव मिली।
इस पुस्तक में भी मिलता है उल्लेख
यह भी हैरतअंगेज है कि राम मंदिर की गूंज सबसे पहले 1785 में आस्ट्रिया के पादरी टीफेनथेलर की रचना हिस्ट्री एंड ज्योग्राफी ऑफ इंडिया में सुनाई पड़ती है, जिसमें लिखा है कि बाबर ने राम जन्म स्थान ध्वस्त कर उसके स्तंभों के उपयोग से मस्जिद का निर्माण कराया। टीफेनथेलर ने हिंदुओं द्वारा वेदी यानी राम जन्म स्थान की पूजा, परिक्रमा व साष्टांग दंडवत का हवाला दिया है।
जगी जल्द समाधान की उम्मीद
खुदाई से पहले एएसआई की ओर से टोजो विकास इंटरनेशनल कंपनी से जीपीआरएस सर्वेक्षण भी कराया गया था। हालांकि इस खुदाई पर भी दोनों पक्षों ने आपत्ति जताई और दोबारा खुदाई की बात कही। लेकिन अदालत ने कह दिया कि इलाके की इतनी गहरी खुदाई हो गई है कि दोबारा खुदाई के लिए कोई नया आयोग बनाना अव्यवहारिक है।
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हालांकि 2003 की खुदाई का लक्ष्य स्वामित्व विवाद का हल करना नहीं था। आज निर्मोही अखाड़े के पास डकैती में दस्तावेज खो जाने का तर्क है। बाकी दोनों पक्षों के तर्क आने बाकी हैं। बावजूद इसके इस समस्या के जल्द समाधान की उम्मीद का जगना स्वाभाविक है क्योंकि निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत तक इसके समाधान की हर कोशिश अदालत के बाहर हो चुकी है।