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इन शैलियों पर खड़ा 'कौंसिल हाउस' कहलाता है 'विधानसभा भवन', जानें पूरी कहानी 

विधानसभा के इतिहास के बारे में अगर बात करें तो इसका असली नाम 'कौंसिल हाउस' है। इसे साल 1928 में सर हारकोर्ट बटलर ने बनवाया था। इसका नक्शा जैकब साहब ने सरदार हीरा सिंह के साथ बनाया था।

SK Gautam
Published on: 21 March 2020 6:07 PM IST
इन शैलियों पर खड़ा कौंसिल हाउस कहलाता है विधानसभा भवन, जानें पूरी कहानी 
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शाश्वत मिश्रा

रोज़ाना चलते हुए, सफर करते हुए, इधर-उधर टहलते या घूमते हुए हम किसी न किसी बाग, इमारत, महल, भवन या फिर वो सड़क ही, जिस पर हम चल रहे होते हैं। अपने आप में हजारों राज़ छुपाये हुए होती है या यूँ कहें कि इनका कुछ न कुछ इतिहास होता है। बात अगर उत्तर-प्रदेश की राजधानी लखनऊ शहर की करें तो यहाँ भी कई सारी ऐसी इमारतें हैं जिनकी कोई न कोई कहानी है।

शहर-ए-अदब के दिलगंज यानि 'हज़रतगंज' में स्थित है 'विधानसभा'

इसी में से एक भवन है 'विधानसभा'। यह भवन शहर-ए-अदब के दिलगंज यानि 'हज़रतगंज' में स्थित है। इस भवन से ही हिंदुस्तान का हृदय माना जाने वाला उत्तर-प्रदेश का भाग्य लिखा जाता है। तो आज जानते हैं इसका पूरा इतिहास...

विधानसभा के इतिहास के बारे में अगर बात करें तो इसका असली नाम 'कौंसिल हाउस' है। इसे साल 1928 में सर हारकोर्ट बटलर ने बनवाया था। इसका नक्शा जैकब साहब ने सरदार हीरा सिंह के साथ बनाया था। दारुलशफा और कोठी हयात बख़्श के बीच स्थित इस भवन को बनवाने के पीछे बड़ी कहानी है।

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दरअसल, ब्रिटिश अधिकारियों ने जब संयुक्त प्रांत आगरा और अवध की राजधानी इलाहाबाद को बदलकर लखनऊ को बनाया, तो उन्हें शहर-ए-अदब में एक कौंसिल हाउस के निर्माण का विचार आया। क्योंकि सर हारकोर्ट लखनऊ प्रेमी थे इसीलिए उनको ये भवन लखनऊ में ही बनवाना था।

इसके लिए उन्होंने राजा साहब महमूदाबाद से संपर्क साधा और कौंसिल हाउस बनवाने के बारे में अपनी इच्छा ज़ाहिर की। जिसके बाद राजा साहब की मदद से करीब 18 लाख रुपये की लागत से लगभग 6 वर्ष में यह कौंसिल चैंबर्स बनकर तैयार हुआ। इसका शिलान्यास सर हारकोर्ट ने साल 1922 में ही कर दिया था। इस भवन पर आए खर्च का अधिकांश हिस्सा तालुकेदारों द्वारा अदा किया गया।

गाथिक, यूनानी, इटैलियन और भारतीय शैली पर खड़ा है भवन

कौंसिल चैंबर्स की इमारत बींसवी सदी में बनवाये गये सुंदरतम भवनों में से एक है। इस अर्द्ध चंद्राकर में बने दो मंजिल के इस भवन के सामने का कुल भाग हल्के बादामी रंग के मिर्जापुरी पत्थर से बना हुआ है। भवन के बीच एक विशाल गुम्बद गाथिक शैली में बनवाया गया है जिसके ऊपर किरीट की तरह सुंदर छतरी का निर्माण किया गया है।

इस इमारत की सजावट में यूनानी तर्ज की अलौकिक मूर्तियाँ और विभिन्न प्रकार के समूह पत्थरों पर तराशें गये हैं, जो इटैलियन शैली की मेहराबों की शोभा बढ़ाते हैं। पूरा भवन मध्ययुगीन वेस्टर्न स्टाइल में बना है, सिवा इसके कि भीतरी स्तम्भों पर कुछ भारतीय शैली का प्रभाव है।

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भवन के भीतर बड़े विस्तार में कमरे, गैलरियां और बरामदे बने हुए हैं, जिन्हें पीछे नवनिर्मित इमारतों से जोड़ दिया गया है। मुख्य कक्ष बड़ा विशाल और गोलाकार है, जिसकी सजावट अपने युग का सुंदर नमूना आज भी प्रदर्शित करती है।

स्वतंत्रता बाद बदली 'तस्वीर'

जैसा कि आप सभी को पता है कि भारत देश की स्वतंत्रता के बाद अंग्रेजों द्वारा बनवाई गई इमारतों का रंग-ढंग बदलने की कवायद को शुरू किया गया था। इसी मुहिम की भेंट इस भवन को भी चढ़ना था और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मुख्य भवन के मस्तक पर सफेद पत्थर से बना हुआ उत्तर प्रदेश सरकार का मोनोग्राम जड़ दिया गया। इस राजकीय मुहर में धनुष-बाण, गंगा, यमुना, सरस्वती और मछलियों का जोड़ा दर्शाया गया है।

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जिसके बाद से ही इस भवन में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के दोनों सदनों की बैठक होने लगी और कौंसिल हाउस विधानसभा भवन के नाम में तब्दील हो गया। आज के समय इस भवन में अंदर जाने के लिए पास होना बहुत ज़रूरी है। इस भवन के बाहर और अंदर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम हैं। वर्किंग डेज में यहां गाड़ियों की आवाजाही मची रहती है, लोगों की आस भी इस भवन से जुड़ी होती है। लगभग सभी विभागों के काम इसी भवन में होते हैं। एक शब्द में कहा जाए तो ये भवन उत्तर प्रदेश के हर इंसान की ज़िंदगी में 'ज़िंदगी' जैसा ही है।



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