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वेस्ट में हाईकोर्ट बेंच की मांग ने फिर जोर पकड़ा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले कई दशकों से चली आ रही हाईकोर्ट बेंच की मांग एक फिर से जोर पकड़ने लगी है। विपक्षी दल इसको लेकर भाजपा सरकार पर हमलावर हो गए हैं।

Roshni Khan
Published on: 18 Dec 2019 9:20 AM GMT
वेस्ट में हाईकोर्ट बेंच की मांग ने फिर जोर पकड़ा
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मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले कई दशकों से चली आ रही हाईकोर्ट बेंच की मांग एक फिर से जोर पकड़ने लगी है। विपक्षी दल इसको लेकर भाजपा सरकार पर हमलावर हो गए हैं। उनका कहना है कि चुनाव के दौरान पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच का गठन कराने का दावा करने वाली भाजपा कभी केंद्र में न होने तो कभी प्रदेश में न होने का बहाना बना कर जनता को बहलाती रही लेकिन पिछले करीब दो साल से प्रदेश व केंद्र में भाजपा सत्तासीन है।

मेरठ, मुजफ्फरनगर के चार सांसदों द्वारा वेस्ट में बेंच की जबरदस्त वकालत करने और संसद में यह मुद्दा उठाए जाने के बावजूद हाथ अभी भी खाली ही हैं। मेरठ से इलाहाबाद हाईकोर्ट की दूरी तो पड़ोसी देश पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट से भी ज्यादा बैठती है। क्षेत्रफल के नजरिये से भी देखें तो पश्चिमी यूपी का क्षेत्रफल 98,933 वर्ग किमी है, जो पूरे प्रदेश का 33.61 फीसदी है।

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आरोप-प्रत्यारोप

प्रदेश कांग्रेस के पूर्व सचिव एवं एडवोकेट चौधरी यशपाल सिंह कहते हैं कि देश के कानून मंत्री संसद में कहते हैं कि नई खंडपीठ बनाने के लिए कुछ औपचारिकताएं राज्य सरकार और हाईकोर्ट की मुख्य पीठ से पूरी करनी जरूरी होती हैं जो अभी तक नहीं हुई हैं। केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार है सो कानून मंत्री के इस तरह के बयान से साफ है कि वे हाईकोर्ट बेंच की स्थापना को लटकाने की कोशिश कर रहे हैं।

राष्ट्रीय लोकदल के वेस्ट यूपी के प्रभारी डॉ. राज कुमार सांगवान कहते हैं कि दूसरे मामलों में तो भाजपा सरकार एक झटके में निर्णय ले लेती है। लेकिन वेस्ट यूपी के लोगों की वर्षों पुरानी मांग को इधर-उधर की बातें कर लटकाने में लगी है। आने वाले चुनावों में क्षेत्र की जनता भाजपा को सबक सिखा देगी।

मेरठ-हापुड़ के भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल विपक्ष के आरोपों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। सांसद का कहना है कि किसी भी प्रदेश में हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित करना वर्तमान व्यवस्थाओं के तहत बहुत कठिन है। संबधित उच्च न्यायालय की संस्तुति तथा संबंधित प्रदेश सरकार की स्वीकृति के बिना यह संभव नहीं है। उनका कहना है कि भाजपा इस मुद्दे को लेकर काफी गंभीर है। अग्रवाल का कहना है कि वे खुद कई बार इस मांग को संसद में भी उठा चुके हैं।

राजेन्द्र अग्रवाल कहते हैं, ‘पिछले दिनों इस मुद्दे को लेकर मैं प्रधानमंत्री से भी मिल कर उन्हें मांगपत्र भी सौंप चुका हूं। सांसद के अनुसार अपने मांग पत्र में उन्होंने मेरठ के साथ ही आगरा व गोरखपुर में भी खंडपीठ स्थापना की वकालत की है। राजेंद्र अग्रवाल मानते हैं कि बढ़ती हुई जनसंख्या के बावजूद कहीं भी उच्च न्यायालयों की खंडपीठ स्थापित नहीं हो पा रही है तथा लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में भारत के न्यायालयों में कुल साढ़े तीन करोड़ मामले लंबित हैं। जिनमें 46 लाख उच्च न्यायालयों में तथा तीन करोड़ से भी अधिक अधीनस्थ न्यायालयों में हैं। सर्वोच्च न्यायालय में भी 59 हजार मामले लंबित हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सात लाख से भी अधिक वाद लंबित हैं।

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पूरब और पश्चिम का झगड़ा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग को लेकर अधिवक्ता करीब 40 सालों से अधिक समय से आंदोलन कर रहे हैं। हर शनिवार को बेंच की मांग को लेकर मेरठ समेत पश्चिमी उप्र के 22 जिलों के अधिवक्ता हड़ताल पर रहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश बेंच संघर्ष समिति के अनिल शर्मा, एडवोकेट कहते हैं कि मेरठ की अगुवाई में 22 जिलों के वकील 1980 से लगातार आंदोलनरत हैं। रेल रोकने, मेरठ बंद, संसद मार्च, धरना, प्रदर्शन के साथ शनिवार को लंबे समय से कचहरी बंद करने जैसे कई कदम उठाए गए लेकिन सफलता अब तक न मिल सकी।

जानकार लोग चार दशक पुरानी मांग पूरी नहीं होने के पीछे की वजह पूरब की लॉबी को बताते हैं। उनका कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रसूख वाला कोई नहीं है जो पूरब के दबाव को कम कर सके या यहां की जनता की मांगों का दबाव लखनऊ से दिल्ली के बीच बना सके। पूरब और पश्चिम का यह झगड़ा पुराना है। 1980 में जब आंदोलन तेज हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जसवंत सिंह की अध्यक्षता में आयोग का गठन कर दिया।

अप्रैल 1985 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में आयोग ने सुझाया कि पीठ तो बननी चाहिए, लेकिन मेरठ नहीं आगरा में। इसको लेकर मेरठ और आगरा के वकीलों के बीच विवाद की स्थिति बनी। हालांकि हाईकोर्ट बेंच केन्द्रीय संघर्ष समिति के संयोजक नरेश दत्त शर्मा इस बात से इंकार करते हैं कि बेंच कहां बने इसको लेकर मेरठ और आगरा के वकीलों के बीच में किसी तरह का कोई विवाद है। नरेश दत्त शर्मा कहते हैं कि जसवंतसिंह आयोग की रिपोर्ट बहुत पुरानी बात हो चुकी है। हमारी मांग बस इतनी है कि वेस्ट में हाईकोर्ट बेंच बननी चाहिए। कहां बने इसको लेकर कोई विवाद ना पहले था और ना अब है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में २२ लाख मुकदमे पश्चिम के

पश्चिमी उप्र के वकीलों के दावों के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट में करीब 22 लाख मुकदमे अकेले पश्चिमी यूपी के हैं। 22 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के लिए एक हाईकोर्ट इलाहाबाद में और खंडपीठ केवल लखनऊ में है जबकि कई अन्य राज्यों में कम जनसंख्या व क्षेत्रफल के बावजूद हाईकोर्ट की अधिक बेंच हैं। मध्य प्रदेश बिहार और महाराष्ट्र की आबादी करीब 12 करोड़ के आसपास है फिर भी वहां दो-दो खंडपीठ हैं। महाराष्ट्र को तो कोल्हापुर के रूप में तीसरी खंडपीठ भी पिछले साल मिल गई है। पश्चिम बंगाल में भी अब तीसरी बेंच जलपाईगुड़ी में दे दी गई है।

सपा के अलावा सभी सरकारों ने जताई सहमति

उत्तर प्रदेश की सरकारें भी आमतौर पर पश्चिमी यूपी में बेंच की स्थापना की मांग से सहमत रही हैं। आजादी के बाद राज्य पुनर्गठन के समय उत्तर प्रदेश के विभाजन की मांग को नकारते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच स्थापित की जाएगी। इसके बाद डॉ. सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश में बेंच की स्थापना के लिए नियमानुसार प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया। वर्ष 1976 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी ने दुबारा बेंच की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया।

जनता पार्टी के शासन में राम नरेश यादव की सरकार ने भी इस मांग पर मुहर लगाई। यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। इसके बाद बनारसीदास एवं मायावती के कार्यकाल में भी एक प्रस्ताव पारित कर हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग को संस्तुति प्रदान की गई तथा प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा। केवल सपा सरकार बेंच के पक्ष में नही रही।

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पश्चिमी यूपी में प्रभाव रखने वाला राष्ट्रीय लोकदल इस अंचल में हरित प्रदेश की मांग को लेकर समय-समय पर आंदोलन चलाता रहा है। पार्टी के पश्चिमी यूपी प्रभारी डॉ. राज कुमार सांगवान कहते हैं कि हरित प्रदेश बनने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को बेंच ही नहीं बल्कि पूरा हाईकोर्ट ही मिल जाएगा। इसलिए वकीलों को हरित प्रदेश आंदोलन को धार देनी चाहिए।

प्रयागराज से पश्चिमी यूपी के जिला मुख्यालयों की दूरी

दूरी किमी में

मेरठ - 637

मुजफ्फरनगर - 693

सहारनपुर - 752

बागपत - 670

गाजियाबाद - 607

बिजनौर- 692

गौतमबुद्धनगर - 650

शामली- 771

हापुड़ - 600

बुलन्दशहर -567

हाथरस- 520

रामपुर- 526

मुरादाबाद- 547

अलीगढ़- 531

मथुरा- 527

आगरा- 478

एटा- 471

मैनपुरी- 401

संभल -553

अमरोहा- 605

Roshni Khan

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