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पितृत्व साबित करने के लिए डीएनए जांच से नहीं भाग सकता कथित पिता: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने डीएनए जांच न कराने के एक कथित पिता की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि डीएनए जांच से मामले के किसी भी पक्षकार के साथ पक्षपात की गुंजाइश नहीं होती है।

Aditya Mishra
Published on: 22 Nov 2019 3:17 PM GMT
पितृत्व साबित करने के लिए डीएनए जांच से नहीं भाग सकता कथित पिता: हाईकोर्ट
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इलाहाबाद हाईकोर्ट

विधि संवाददाता

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने डीएनए जांच न कराने के एक कथित पिता की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि डीएनए जांच से मामले के किसी भी पक्षकार के साथ पक्षपात की गुंजाइश नहीं होती है।

यह आदेश जस्टिस अनिरुद्ध सिंह की बेंच ने कथित पिता की याचिका पर पारित किया। याची की ओर से अपर सत्र न्यायाधीश, लखनऊ के 21 सितम्बर के आदेश को चुनौती दी गई थी। अपर सत्र न्यायाधीश ने याची की कथित पत्नी के मांग पर कथित पिता-पुत्र के डीएनए जांच के आदेश दिये गए थे।

दरअसल एक महिला ने निचली अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर याची पर आरोप लगाया कि उन दोनों का प्रेम विवाह हुआ था व उनके एक बच्चा भी है। लेकिन याची पहले से शादीशुदा था व उसके तीन बच्चे भी हैं, यह बात उसने शिकायतकर्ता से छिपाई।

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याची ने आरोपों से इंकार कर दिया व खुद को बच्चे का पिता न होना बताया।

इस पर शिकायतकर्ता कथित पत्नी ने निचली अदालत के समक्ष बच्चे व याची के डीएनए टेस्ट की मांग की जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया। लेकिन सेशन कोर्ट ने शिकायतकर्ता की मांग को स्वीकार कर लिया व याची और बच्चे के डीएनए जांच के आदेश दे दिये।

याची ने सेशन केार्ट के आदेश केा हाई केार्ट में चुनौती देते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय के अनुसार डीएनए जांच का आदेश उचित नहीं है।

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इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत के उक्त निर्णय में कहा गया है कि प्रथम दृष्टया यदि डीएनए टेस्ट का मजबूत केस बनता है और इसकी आवश्यकता है तो डीएनए टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता के पास अपना केस सिद्ध करने के लिए डीएनए टेस्ट के सिवा कोई और रास्ता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों को आधुनिक विज्ञान और तकनीकी के सहारे निर्णित किया जा सकता है।

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Aditya Mishra

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