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भारत ऐसे बन सकता है स्वावलंबी: इन्होने बताया तरीका, कोरोना संकट पर कही ये बात
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वाधान में पन्द्रह दिवसीय ई-कार्यशाला कोविड-19 के साथ जीवनरूस्वावलंबी भारत की रूपरेखा विषय पर आयोजित ई-कार्यशाला के नौवे दिन प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर आर.के.मिश्रा आचार्य राजनीति विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ ने कही।
मेरठ। स्वदेशी स्वराज एवं स्वधर्म को अपनाकर हम स्वावलंबी भारत बनने की ओर मार्ग अग्रसर कर सकते हैं। यह बात चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वाधान में पन्द्रह दिवसीय ई-कार्यशाला कोविड-19 के साथ जीवनरूस्वावलंबी भारत की रूपरेखा विषय पर आयोजित ई-कार्यशाला के नौवे दिन प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर आर.के.मिश्रा आचार्य राजनीति विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ ने कही।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में ई-कार्यशाला आयोजित
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जो व्यवस्थाएं वैश्विक स्तर पर चल रही है उन पर कहीं ना कहीं कुछ देशों का प्रभुत्व है। वैश्वीकरण की जो अवधारणा विश्व को ग्लोबल विलेज मानकर दी गई वह मुख्यतः अमरीका की एवं अन्य यूरोपीय देशों की नव साम्राज्यवादी नीति का परिणाम है। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के कारण ही आज पूरा विश्व कोविड-19 जैसी भयानक बीमारी से जूझ रहा है।
उन्होंने कहा कि इससे पहले भी बहुत सी महामारी एवं संकट उत्पन्न हुए हैं जो वैश्वीकरण के कारण उत्पन्न हुए। जब तक वैश्वीकरण की व्यवस्था नहीं थी तब तक जो भी क्षेत्रीय समस्या थी उनका प्रभाव एक सीमित क्षेत्र तक ही रह जाता था। ऐसा नहीं है कि वैश्वीकरण के लाभ नहीं हुए। लेकिन हमें वैश्वीकरण की हानियों को कम से कम करने के लिए भारतीय व्यवस्था को अपनाना होगा।
पश्चिम से मुंह मोडने के बजाय जो श्रेष्ठ है उसको ग्रहण करें: प्रो0 आरएन त्रिपाठी
द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर आरएन त्रिपाठी सदस्य उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग उत्तर प्रदेश एवं आचार्य समाजशास्त्र विभाग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सामाजिक दर्शन विषय पर बोलते हुए कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सामाजिक दर्शन समानता,समता एवं एकात्मता का दर्शन है।
उन्होंने कहा कि भारत को अगर स्वावलंबी बनना है तो इसके लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अर्थायाम को अपनाना होगा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे कि भारत की अपनी अर्थ संस्कृति है अर्थात भारत को ऐसी अर्थव्यवस्था की रचना करनी होगी जो भारतीय ज्ञान परंपरा भारतीय संसाधनों एवं भारतीय लोगों द्वारा निर्मित हो इसका अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है कि हमें पश्चिम के ज्ञान से मुंह मोड़ लेना है, बल्कि विश्व में जहां जो भी श्रेष्ठ है हमें उसको ग्रहण करना है।
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प्रोफेसर आरएन त्रिपाठी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्वदेशी पर बहुत जोर देते थे वह कहते थे कि हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए अर्थयुगानुकूल रचना को अपनाना होगा और समाज में सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का भी विकास करना होगा और उस तक सभी संसाधन सुचारू रूप से उपलब्ध कराने होंगे। जिससे संपूर्ण समाज का सर्वसमावेशी विकास हो सके।
उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन दृष्टि सभी को एकात्म मानती है हमारे यहां तो पेड़ पौधों नदियों पशु पक्षियों सभी की पूजा की जाती है एवं सभी के भरण-पोषण के लिए कुछ ना कुछ दिया जाता है। जिससे संपूर्ण चराचर एवं अचराचर जगत का कल्याण एवं विकास हो सके। उन्होंने भारतीय वेदों उपनिषदों पुराणों रामचरित्रमानस महाभारत आदि ग्रंथों के उद्धरणों से भारतीय जीवन दृष्टि एवं ज्ञान परंपरा को स्पष्ट किया।
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ई-कार्यशाला के संयोजक डॉ राजेंद्र कुमार पांडेय सहचार्य राजनीति विज्ञान विभाग ने कहा की इस वैश्वीकरण के दौर में भारत बहुत सी चुनौतियां एवं समस्याओं का सामना कर रहा है जैसे कि कोविड-19 महामारी भारत का चीन के साथ तनाव एवं प्राकृतिक आपदाओं का लगातार आघात इन जैसी परिस्थितियों में भारत किस प्रकार स्वावलंबी बन सकता है और उसकी क्या रूपरेखा हो सकती है, इसके बारे में हमें विस्तार से चर्चा करनी होगी और ऐसे मार्ग खोजने होंगे जिनको अपनाकर हम आत्मनिर्भर बन सकें।
उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन एवं विशेषतः पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन महत्वपूर्ण हो सकता है। मंच का संचालन भानु प्रताप ने किया। प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा, डॉक्टर भूपेंद्र प्रताप सिंह, डॉ सुषमा, डॉक्टर देवेंद्र उज्जवल, संतोष त्यागी, नितिन त्यागी आदि मौजूद रहे।
सुशील कुमार,मेरठ।
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