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शहनाई बजने के दिन आ गए, बारात कहां ठहराएगा लौटन

नदियां जीवनदायिनी हैं, पर कभी कभी जीवन का रंग छीन भी लेती हैं। बहराइच के वेहला बेहरौली के तटबंध ने हजारों चेहरे की मुस्कान को फीका कर दिया है। कहने वाले वाले तो अब यहां तक कह रहे हैं कि घाघरा ने सिर्फ इनकी भूमि को नहीं काटा है, इनका सुख और सामर्थ्य भी भूमि के साथ कट कर बह गया है।

Anoop Ojha
Published on: 9 March 2019 12:39 PM GMT
शहनाई बजने के दिन आ गए, बारात कहां ठहराएगा लौटन
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बहराइच: नदियां जीवनदायिनी हैं, पर कभी कभी जीवन का रंग छीन भी लेती हैं। बहराइच के वेहला बेहरौली के तटबंध ने हजारों चेहरे की मुस्कान को फीका कर दिया है। कहने वाले वाले तो अब यहां तक कह रहे हैं कि घाघरा ने सिर्फ इनकी भूमि को नहीं काटा है, इनका सुख और सामर्थ्य भी भूमि के साथ कट कर बह गया है। ये घाघरा की कटान यहां के लोगों को आशा निराशा की चक्की में पीस कर बे-दम कर दिया है। देखते ही देखते दरवाजे पर शहनाई बजने के दिन आ गए, लेकिन पुर्नवास फाइलों से बाहर न निकला।

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वेहला बेहरौली के तटबंध पर शरण लिए उन परिवारों की राम कहानी दिनोें दिन गाढ़ी होती चली गई। 16 साल पहले घाघरा के कटान का अभिशाप झेलते लौटन की तो चार बीघा जमीन ही बह गई। बद्री की लौटन से एक बीघा कम यानी कि तीन बीघा जमीन बह गई। सुकईपुर मगरवल के रामप्रताप अवस्थी की तो 20 बीघा जमीन इस कटान में हाथ से चली गई।ये सभी लोग तटबंध पर झुग्गी झोपड़ी बना कर गुजर बसर कर रहे हैं। इन सबको एक ही समस्या सताए जा रही है, बेटी की शादी।

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दरअसल लगभग 95 किमी लंबे तटबंध पर शरण लिए तकरीबन दो हजार परिवारों के जनकल्याण की योजनाएं बेमानी सबित हो रही हैं। ये विस्थापित वादों और आश्वासनों की छांव तले आपना दिन काट रहे हैं। इनमें से कईयों को पंद्रह साल से अधिक हो गए पर हालात पंद्रह प्रतिशत भी नहीं सुधरे। 14अगस्त 2017 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महसी तहसील के बलभद्रसिंह इंटर कालेज में आए थे एक हजार पीएम और 75 सीएम आवास कटान पीड़ितों दे गए थे पर लौटन की किस्मत अभी भी रूठी हुई है। दरवाजे पर बारात की चिंता ने लौटन नीद हर ली है।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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