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जानिए क्या है महाभारत काल की सच्चाई, अब मिले ऐसे चौंकाने वाले साक्ष्य

राजधानी दिल्ली से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बसे उत्तरप्रदेश के बागपत जनपद में महाभारत काल की सच्चाई से पर्दा उठने जा रहा है। एएसआई से लेकर स्थानीय...

Deepak Raj
Published on: 24 Feb 2020 9:59 PM IST
जानिए क्या है महाभारत काल की सच्चाई, अब मिले ऐसे चौंकाने वाले साक्ष्य
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पारस जैन।

बागपत। राजधानी दिल्ली से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बसे उत्तरप्रदेश के बागपत जनपद में महाभारत काल की सच्चाई से पर्दा उठने जा रहा है । एएसआई से लेकर स्थानीय इतिहासकारो की जिस उत्खनन साइट पर सभी की नज़रे टिकी हुई थी उस साइट से प्राप्त अवशेषों की कार्बन डेटिंग (काल निर्धारण की विधि) जांच में इनके 3800 साल पुराने ( महाभारत कालीन) होने की पुष्टि हुई है।

इतिहास के पन्नों में नया अध्याय लिखने को तैयार है सिनौली

सिनौली की धरती एक बार फिर से इतिहास के पन्नों में नया अध्याय लिखने को तैयार है। आखिर सिनौली साइट से प्राप्त पुरावशेष इतने अत्यंत महत्वपूर्ण क्यो है । इस साइट से अभी तक क्या क्या प्राप्त हुआ । आइए आपको हमारे संवाददाता पारस जैन की इस खास रिपोर्ट में बताते है।

भारतीय उपमहाद्वीप में सादिकपुर सिनौली ही एकमात्र ऐसा गांव हैं जहां पर ऐसे प्रमाण/पुरा संपदा प्राप्त हुए जिसने इतिहास में संशोधन को बाध्य किया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा सिनौली में तीन बार उत्खनन कार्य कराया जा चुका है और तीनों ही बार यहां से जो मिला है।

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वह इतना अधिक महत्वपूर्ण है कि सारी दुनिया के पुरातत्वविदों, इतिहासकारों की नजरें सिनौली पर टिकी हुई हैं। विश्व के सबसे बड़े शवाधान पुरास्थल के रूप में विख्यात बागपत के सिनौली में दो साल तक खोदाई हुई है।

इसमें शाही ताबूत, दो ताबूतों के साथ रथ,धनुष बाण, ताम्र युक्त तलवार, युद्ध में पहना जाने वाले शिराष्र (हेलमेट) आदि ऐसी दुर्लभ चीजें मिली हैं जो ताबूतों में रखे शवों के योद्धाओं के होने की ओर इशारा करती हैं।

इन ताबूतों के साथ मिट्टी के बर्तनों में जले हुए कुछ अवशेष मिले थे। ये कितने पुराने हैं इनकी जांच के लिए एएसआइ ने इनके तीन सैंपल लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान को भेजे थे। जिनकी रिपोर्ट एएसआइ के पास आ गई है, जिसमें इन अवशेषों के 3800 साल पुराने होने की पुष्टि हुई है।

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सिनौली साइट की विशेषताएं:

1. महाभारतकालीन ‘युद्ध रथ’ और ‘ शाही ताबूत’ प्राप्त हुए।

2. युद्ध के दौरान यौद्धाओं के शौर्य का प्रतीक ‘धनुष’ सिनौली उत्खनन से प्राप्त हुआ।

3. महारानी/महाराज का बेशकीमती मनकों का हार प्राप्त हुआ।

4. शवों को रखने के लिए किया जाता था सूत से बनी ‘दरी’ का प्रयोग। बुनाई के बेहद दुर्लभ प्रमाण भी हुए प्राप्त।

5. ताम्र धातु से निर्मित इस मशाल हुई प्राप्त।

6. ताम्र निर्मित कंगन व दुर्लभ चिराग भी हुआ प्राप्त।

7. लगभग 5000 साल पुराना एक कंकाल ट्रेंच से बरामद हुआ है जिसके हाथ व पैर में स्वर्ण निधि भी मौजूद हैं।

8. अति दुर्लभतम मनकें/बीड्स भी हुए प्राप्त।

9. स्वर्ण निर्मित पांच रिंग्स/छल्ले हुए प्राप्त।

10. एक शाही ताबूत पर आठ मानवाकृतियां प्राप्त हुई जो भगवान पशुपतिनाथ की थी।

11. 5000 साल पुरानी ताम्र निर्मित तलवार, ढाल, शिराश्र भी हुआ प्राप्त।

12. पहली बार प्राप्त हुए दुर्लभतम ताम्र निर्मित लघु पात्र।

13. वैदिक संस्कृति के मिले प्रमाण: पात्रों में रखे जाते थे घी, दही, शराब व अन्य खाद्य सामग्री।

14. चार धातु गलन भट्टियां हुई प्राप्त

15. 117 मानव कंकाल भी हुए थे प्राप्त

वर्ष 2005 में सिनौली में वरिष्ठ पुरातत्वविद डॉ. डीवी शर्मा के निर्देशन में एएसआई द्वारा प्रथम चरण की खुदाई कराई थी। इस दौरान यहां पर 177 मानव कंकाल, सोने के कंगन, मनके, तलवार के साथ-साथ एक विशाल शवाधान केंद्र की पुष्टि हुई थी।

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इसके बाद 15 फरवरी 2018 को सिनौली साइट पर एएसआई लालकिला संस्थान के निदेशक डॉ. संजय मंजुल के निर्देशन में उत्खनन कार्य शुरू किया गया था। लगभग साढे तीन माह की अवधि तक यहां पर किए गए उत्खनन कार्य के दौरान आठ मानव कंकाल, तीन एंटीना शॉर्ड (तलवारें), काफी संख्या में मृदभांड, विभिन्न दुर्लभ पत्थरों के मनकें व सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राप्ति के रूप में 5000 वर्ष प्राचीन मानव यौद्धाओं के तीन ताबूत जोकि तांबे से सुसज्जित किए गए हैं।

भारतीय यौद्धाओं के तीन रथ भी प्राप्त हुए हैं जोकि विश्व इतिहास की एक दुर्लभतम घटना साबित हुई। सिनौली साइट से यौद्धाओं की तलवारें, उनका शिराश्र (हेलमेट), कवच, ढाल, मशाल भी प्राप्त होना 5000 वर्ष प्राचीन युद्धकला का स्पष्ट उदाहरण हैं।

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13 जून को यहां पर उत्खनन कार्य का ‘दी ऐंड’ कर एएसआई की पूरी टीम प्राप्त सभी दुर्लभ पुरावशेषों को लेकर दिल्ली के लिए रवाना हो गई थी।

1.प्रथम चरण का उत्खनन: सितंबर 2005-06 में वरिष्ठ पुरातत्वविद डा. डीवी शर्मा के निर्देशन में पहली बार सिनौली में लगभग ढाई बीघा परिक्षेत्र में उत्खनन कार्य कराया गया। यह उत्खनन तीन माह तक किया गया था। इस कार्य के लिए 64 लाख रुपया एएसआई से स्वीकृत हुआ था।

2. द्वितीय चरण: 15 फरवरी 2018 को डा. संजय मंजुल, डा. अरविन मंजुल के निर्देशन में द्वितीय चरण का उत्खनन कार्य 600 गज परिवक्षेत्र में शुरू हुआ। 12 जून को यहां से रथ एवं ताबूत को ले जाने के बाद कार्य समाप्त कर दिया। यानि इस बार उत्खनन कार्य चार माह की अवधि तक चलाया गया।

3.तृतीय चरण: 15 जनवरी 2019 को तीसरे चरण के उत्खनन कार्य का आगाज एक बीघा परिक्षेत्र में डा. संजय मंजुल के निर्देशन में शुरू हुआ। 10 मई को विधिवत रूप से उत्खनन कार्य समाप्त कर सारा सामान समेट टीम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गई।

सिनौली से क्या हुआ हासिल?

प्रथम चरण: सितंबर 2005 में शुरू हुए प्रथम चरण की खुदाई में 117 मानव कंकाल, दो तांबें की तलवारें, एक तांबे की म्यान, चार सोने के कंगन, एक सोने से बना मनके का हार, एक सोने की लघु मानवाकृति, सैंकड़ों मनकें, समेत अन्य पुरावशेष प्राप्त हुए थे।

इसके अलावा एक 15-16 साल की लड़की का कंकाल बरामद हुआ था। इस कंकाल के हाथ-पैर में स्वर्णाभूषण (कडे़), गले में एक हसली की तरह ता स्वर्ण हार जो कि तांबे के मोटे तार पर लिपटा हुआ था, बरामद हुआ था। साथ ही दो से ढाई इंच के कार्लेनियन पत्थर भी बरामद हुए थे।

द्वितीय चरण: फरवरी 2018 में हुए द्वितीय चरण के उत्खनन कार्य में ताम्रयुगीन सभ्यता की तलवारें, करीब 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता के शवाधान केंद्र जोकि दुर्लभतम श्रेणी में रखा जाएगा, प्राप्त हुआ।

आठ मानव कंकाल एवं उन्हीं के साथ दैनिक उपयोग की खाद्य सामग्री से भरे मृदभांड, उनके अस्त्र-शस्त्र, औजार एवं बहुमूल्य मनकों के साथ-साथ अभी तक की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में महाभारत कालीन युद्ध रथ, यौद्धाओं के शाही ताबूत, कंकाल, ताम्र निर्मित तलवारें, ढाल, यौद्धा का कवच, हेलमेट, मशाल आदि पुरा संपदा यहां से प्राप्त हुए।

वैसे तो राखीगढ़ी, कालीबंगन और लोथल से पहले भी कई कब्रगाह खुदाई के दौरान मिलें हैं लेकिन ये पहली बार है जब कब्रगाह के साथ रथ भी मिला है।

तृतीय चरण: दो शाही ताबूत, एक शाही ताबूत के चैंबर में राजशाही परिवार की किसी राजकुमारी का कंकाल, इसी ताबूत के नीचे श्रृंगारदान जिसमें शीशा, सींग से बना एक कंघा व अन्य श्रृंगार की सामग्री भी प्राप्त हुई।

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युद्ध में प्रयोग किया जाने वाले धनुष के अति दुर्लभ प्रमाण, घोड़े का कंकाल, राजकुमारी के कंकाल के साथ सोने के आभूषण, दैनिक चर्या में प्रयोग होने वाले ताम्र बर्तन, दाह संस्कार के प्रयोग में लाए जाने वाला बडी ईंटों का चबूतरा, मनकों का हार समेत अन्य दुर्लभ पुरा संपदा प्राप्त हुई। इसके अलावा दूसरे खेत में चार धातु गलन भट्टियां जिनका प्रयोग धातु को गलाने में किया जाता था। यह पहला अवसर था जब सिनौली से ताबूत के नीचे एक विशेष प्रकार का चैंबर प्राप्त हुआ हो जिसमें शव को सुरक्षित रखा जाता था।

राजकुमारी के कंकाल के साथ युद्ध धनुष भी प्राप्त हुआ

इन सब पुरा संपदा के साथ इसी राजकुमारी के कंकाल के साथ युद्ध धनुष भी प्राप्त हुआ। लकड़ी का बना होने के कारण इस धनुष की काष्ठ खत्म हो चुकी थी, लेकिन शेप अभी भी वैसी ही बरकार है। धनुष की आंतरिक व बाहरी मिट्टी को अलग करने के लिए कैमिकल यानि रासायनिक प्रक्रियाओं से सुरक्षित किया गया था।

इसके अलावा धनुष का भीतरी हिस्सा पूरी तरह से सुरक्षित रहे इसके लिए आंतरिक मिट्टी को ऑलपिन/छोटी धातु से पिरोया जा रहा है ताकि आंतरिक मिट्टी धनुष को बाहर निकालते समय बाहरी मिट्टी में टूटकर मिल ना जाए।



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