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मृतक मजदूरों के परिवार का छलका दर्द: कहीं बच्चे अनाथ, तो किसी मां की गोद सूनी

शनिवार को मध्य प्रदेश के सागर जिले के दलपतपुर में हुए सड़क हादसे में मुंबई से यूपी आ रहे 6 मजदूरों की जान चली गयी। Newstrack.Com मृतकों मजदूरों परिवारों तक पहुंचा और उनका दर्द जाना। 

Shivani Awasthi
Published on: 18 May 2020 10:01 PM IST
मृतक मजदूरों के परिवार का छलका दर्द: कहीं बच्चे अनाथ, तो किसी मां की गोद सूनी
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सिद्धार्थनगर: शनिवार को मध्य प्रदेश के सागर जिले के दलपतपुर में हुए सड़क हादसे में मुंबई से यूपी आ रहे 6 मजदूरों की जान चली गयी। मजदूरों को ले जा रहा ट्रक सेमरा पुल से गिर गया। यूपी आ रहे ये छह मजदूर सिद्धार्थनगर के निवासी थे। इनमें 3 महिलाएं, एक किशोरी व 2 पुरुष शामिल हैं। वहीं 18 लोग घायल हो गए। Newstrack.Com इनमे से 2 परिवारों के पास पहुंचा और परिजनों से उनका दर्द जाना।

पहली कहानी: हादसे में मां-बाप की मौत, अंतिम संस्कार भी हो गया, घायल बच्चों को पता ही नहीं

दोपहर लगभग 4 बजे के आसपास हम सिद्धार्थनगर जिले के अरनी गाँव हादसे में अपनी जान गंवाने वाले रामकरन के घर पहुंचे। बड़ा सा मकान और बरामदे के बाहर दालान में रामकरन की माँ भानमती दिखाई दी। जैसे ही हमने उनसे बात शुरू की उनकी आँखे छलक आई। उन्होंने बताया कि भैया कौन जानबूझ कर घर छोड़ कर जाता है। बच्चों के पिता की मौत हो चुकी है। खेती बाड़ी इतनी भी नहीं है कि तीनो भाई बाँट ले इसलिए तीनो भाई सालों पहले यहाँ से कमाने दूर चले गए।

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रामकरन शादी के बाद अपनी पत्नी भी लेकर चले गए। अब वहां क्या खाते कैसे रहते हम नहीं जानते हैं लेकिन ठीक रहे खुश रहे। बच्चे पढ्त रहे और का चाही। हमरे बाकी दो बेटे रामप्रसाद और रामगनी भी मुंबई कमाए गए रहे। कोई पेंटिंग तो कोई ग्रिल का काम करता है। कल दोपहर में खबर मिली कि रामकरन के एक्सीडेंट हो गया है और दोनों जने ख़त्म हो गए हैं तब रामप्रसाद का फोन मिलावा गए अब दोनों भाई वहां गए हैं। देखो कब लौटत हैं।

फोन पर मृतक रामकरन के पास गए छोटे भाई रामप्रसाद से बात की

फोन पर रामप्रसाद से बात हुई तो उन्होंने बताया, भैया रामकरन (मृतक) भाभी और बच्चों के साथ एक दिन पहले निकले थे। हम (रामप्रसाद) और सबसे बड़े भाई (रामगनी) उनके बाद मुंबई से निकले हैं। शनिवार को सुबह 11 बजे जब हम फोन किये थे तब भैया बताये थे कि हम लोग ठीक है छोटा सा एक्सीडेंट हुआ था मरने से बच गए। फिर शाम को फोन आया खत्म हो गए। पता नहीं क्या हो गया।

रविवार दोपहर 12 बजे हम यहाँ पहुंचे हैं। हम सीधे हॉस्पिटल गए बच्चों से मिलने दोनों सहमे हुए हैं। 10 साल की पूजा और 6 साल का कृष्णा सहमे हुए हैं। अस्पताल में लापरवाही इस तरह से है कि बच्चों के चेहरे पर खून का धब्बा लगा हुआ है लेकिन कोई पोछने वाला नहीं था। हमने रुमाल भिगाकर खून पोछा है। हालांकि किसी से कोई शिकायत भी नहीं की। शाम को भैया भाभी का अंतिम संस्कार कर दिया है लेकिन बच्चों को नहीं बताया। अभी कुछ देर पहले पूजा को बताया।

कृष्णा बार बार भाभी को याद कर रहा है। पूजा डर गयी है दोनों को सुला दिया है। सिद्धार्थनगर आने की बात पर रामकरन कहते हैं कि, आज बच्चों का कोरोना टेस्ट हुआ है कल तक रिपोर्ट आएगी तभी आ पाएंगे। उन्होंने बताया कि जिले से भी पुलिस वाले आ गए हैं अब बच्चों को उन्ही के साथ लेकर जायेंगे।

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-रामकरन कहते हैं कि भैया हमसे कहते थे कि बस से जा रहे हैं. यहाँ आकर पता चला कि ट्रक पर सवार थे. हम लोग भी मुंबई से ट्रक से आ रहे थे। ट्रक वाला 3 हजार रूपए जिले तक पहुँचाने का लिया था। वह भी बर्बाद हो गया। महाराष्ट्र में कोरोना लगातार बढ़ रहा है। अब हालत यह है कि वहां कोई नहीं बचेगा सबको कोरोना होगा। उसी के डर से हम लोग वहां से भागे थे। जो बचा के रखे थे वह दो महीने में ख़त्म हो गया। अब कुछ बचा भी नहीं था।

सब भाइयों का यही हाल था। इसलिए हमने सोचा यहाँ मरने से अच्छा है घर पर गरीबी में रहा जाए। अब इन बच्चों की भी हम भाइयों पर जिम्मेदारी है. जैसे सब बच्चे पलेंगे वैसे यह भी पल जायेंगे लेकिन इनकी माँ कहाँ से लाकर दूंगा

(इतना कहकर रामकरन फोन पर रोने लगते हैं और फोन डिस्कनेक्ट हो जाता है)

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दूसरी कहानी: बाप बेटी की मौत, माँ अनजान शहर में 5 बेटियों के साथ घायल पड़ी है

सिद्धार्थनगर के हतपरा गाँव में भी सन्नाटा पसरा हुआ है। यहाँ दो परिवारों में तीन की मौत हुई है जबकि 9 घायल हैं। हमारी मुलाकात हादसे में मृत मंसूर अली के पिता मोहम्मद अली से हुई। घर के अंदर महिलाएं शोक मना रही हैं। घर के बाहर लोग हालचाल के लिए आ रहे हैं। गुमसुम मोहम्मद अली से बातचीत शुरू हुई तो उन्होंने बताया कि हमारा बेटा मंसूर अली मुंबई के नालासुपाड़ा में रहता था। वहीँ वह मेहनत मजदूरी करता था। जो भी कमाई होती खुद का खर्च भी चलाता और हमें भी भेजता था उसके साथ उसकी पत्नी और 4 बेटियां और 2 बेटे भी रहते थे।

हादसे में एक 16 साल की बेटी की भी मौत हो गयी है। बाकी बहु वहां जिंदगी मौत से जंग लड़ रही है. बाकी बच्चे भी घायल हैं। हमें बताया गया है कि गाँव से कुछ लोग उन्हें यहाँ लाने के लिए गए हैं अल्लाह उन्हें महफूज तरीके से ले आये। मोहम्मद अली रोते हुए कहते कि बेटे और पोती को मिटटी देना भी नहीं नसीब हुआ दोनों को वहीँ दफना दिया गया है। हम ऐसी किस्मत का क्या करे।

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मोहम्मद अली ने बताया कि गुरूवार को बेटा परिवार के साथ चला था। तब सब खुश थे कि कम से कम कोरोना से बच कर परिवार यहाँ घर आ जायेगा तो सुकून की दो रोटी तो खायेंगे। ऊपर वाले ने ऐसा मंजर दिखाया कि आखिरी बार चेहरा भी देखना नसीब नहीं हुआ।

तीसरी कहानी: 5 साल की अल्फिया की कहानी, चाचा अतीकुर्रहमान की जुबानी

घटना में मृतक गुड़िया की दो संताने हैं, जिनमे एक अल्फिया है 5 साल की और एक 2 साल का बेटा है। दोनों ही बहुत बदकिस्मत है। माँ की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी। अंतिम समय मे बच्चे यहां तक मैं भी गुड़िया का मुंह भी नही देख सका। रविवार को मैं शाम 8 बजे यहां पहुंचा हूँ। उससे पहले दोपहर 2 बजे उसे दफना दिया गया था। अस्पताल जाकर बच्चों से मुलाकात की। दोनों का कोरोनॉ टेस्ट हुआ है।

सोमवार दोपहर तक रिपोर्ट आने को बोला है। देखिए कब निकलना होता है। गुड़िया के बारे में पूछने पर अतीकुर्रहमान बताते हैं कि हम तीन भाई है और तीनों मुंबई में स्क्रैप का काम करते थे। 4 महीने पहले गुड़िया के पति वासिउर्रह्मान की बीमारी की वजह से ही मुंबई में मौत हो गयी थी। उसे वहीं दफना दिया गया था लेकिन गुड़िया मुंबई से गांव नही लौटी। उसका वहां मन लग गया था। हम लोगों के साथ ही रहती थी।

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लॉक डाउन से पहले मैं गांव आया था और यहीं रह गया था अब जब वहां कोरोना फैला तो गुड़िया वहां से निकली। गांव के कुछ लोग भी साथ थे। हम लोग भी निश्चिन्त थे लेकिन ये हादसा हो गया। अब ये बच्चे हमारी जिम्मेदारी हैं लेकिन बच्चों को समझाना बहुत मुश्किल है। जब से हमसे मिले हैं रो रो कर बुरा हाल है।

चौथी कहानी: पत्नी की मौत हो गयी पति और छोटे-छोटे बच्चे घायल हैं

हादसे में अब्दुल कदीर की पत्नी सलमा खातून की भी मौत हुई है। सिद्धार्थनगर से उनके गांव हतपरा के प्रधान सागर जिले की ओर कल ही रवाना हो चुके हैं। उन्होंने फोन पर बताया- "अन्य लोगों की तरह अब्दुल भी मुंबई में मेहनत मजदूरी करता था। सबके साथ वह भी अपने परिवार समेत वापस लौट रहा था। हादसे में सलमा की मौत हो गई, अब्दुल घायल हो गया है। वह ठीक से बोल भी नहीं पा रहा है।

बच्चों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। वह अलग अस्पताल में एडमिट है। पता चला है कि सलमा का शव दफना दिया गया है। अब बच्चों और उसके पति को घर लाने की जिम्मेदारी है। सभी का कोरोना टेस्ट हुआ है, जैसे ही रिपोर्ट आएगी, यहां से गांव के लिए निकल जाएंगे।

रिपोर्टर- इंतज़ार हैदर

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