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आखिर जीत गया प्यार: खौफनाक रास्तों से भरा सफर, 7 साल बाद चेहरे पर आई खुशी
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से सामने आया है। यहां रहने वाले प्रेमी जोड़े को एक होने के लिए अपने प्यार का साथ निभाने के लिए संघर्ष की तमाम हदों को पार करना पड़ा था। लड़की लता सिंह जोकि राजपूत जाति से संबंध रखती है और लड़का बी.एन. गुप्ता जो बनिया जाति से हैं, वो एक ही गांव फर्रुखाबाद के रहने वाले हैं।
फर्रुखाबाद: प्यार की जीत होती है, ये सिर्फ किस्से-कहानियों में सुनने को मिलता है। ऐसा ही एक वाकया उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से सामने आया है। यहां रहने वाले प्रेमी जोड़े को एक होने के लिए अपने प्यार का साथ निभाने के लिए संघर्ष की तमाम हदों को पार करना पड़ा था। जिसके बीच 7 सालों का लंबा सफर वो भी दर्द, डर, एक दूसरे की जिंदगी की फ्रिक और खौफ के रास्तों को पार करने के बाद सन् 2006 में आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में जाकर उन्हें किसी राहत मिल पाई है।
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कोई चीज बाधा बनी तो वो है जाति
ऐसे में अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए महिला के संवैधानिक अधिकार का ऐतिहासिक फैसला दिया गया। लेकिन इन सबके बीच अगर कोई चीज बाधा बनी तो वो है जाति की।
लड़की लता सिंह जोकि राजपूत जाति से संबंध रखती है और लड़का बी.एन. गुप्ता जो बनिया जाति से हैं, वो एक ही गांव फर्रुखाबाद के रहने वाले हैं। इन दोनों में प्यार हुआ और साल 2000 में उन दोनों ने शादी कर ली। लेकिन राजपूत बिरादरी वाले लता के भाइयों को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। जिसके बाद उन्होंने गुप्ता और परिवार पर बहन के अपहरण का आरोप लगा दिया।
तभी लता और बी.एन. गुप्ता दिल्ली चले गए। क्योंकि उन्हें पता था कि लता के भाई और संबंधी देखते ही उन्हें मौत के घाट उतार देंगे। इसके बाद उन्हें खोजते हुए लड़की के भाई दिल्ली तक पहुंच भी गए।
फिर दोनों ने कमरे में छिपकर किसी तरह अपनी जान बचाई और फिर हिमाचल प्रदेश के लिए निकल गए। इसके बाद हिमाचल में वे करीब 6 महीने तक रहे। लता के साथ बी. एन. गुप्ता किसी तरह छोटा-मोटा काम करके किसी तरह अपना गुजारा करते रहे। इधर उनके घर पर परिवार के सदस्य जेल की सलाखों के पीछे थे।
फोटो-सोशल मीडिया
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भाइयों ने मानसिक विक्षिप्त होने का आरोप
इस बारे में लता ने बताया, 'हमने जयपुर जाकर महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया। साथ ही यूपी में जाने के खतरे को देखते हुए महिला आयोग अध्यक्षा अपर्णा सहाय ने लखनऊ एसएसपी को लेटर लिखा, जिन्होंने जयपुर आकर बयान दर्ज किया। फिर मेरे भाइयों ने मानसिक विक्षिप्त होने का आरोप लगाया, जिस वजह से मुझे मेंटल हॉस्पिटल में बोर्ड का सामना करना पड़ा।'
आगे उन्होंने बताया कि कानूनी सहायता लेना भी काफी चुनौतीपूर्ण रहा। कई बार कोर्ट में हमले का प्रयास भी हुआ। ऐसे में एक बार हमारा ही वकील जाकर सारी बात की जानकारी देता रहा। लेकिन इस बीच 2004 में बच्चे का जन्म भी हो गया।
तभी किसी तरह मुसीबतों का सामना करते हुए साकेश कुमार नाम के वकील ने हमारी मदद की। जिससे ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। औऱ जहां 2006 में जाकर पक्ष में फैसला आया। पर चुनौतियां तो अभी जारी है क्योंकि लता के भाई ने गुप्ता के परिवार पर झूठे केस कर रखे हैं, जिसका मामला अभी भी इलाहाबाद कोर्ट में चल रहा है। लेकिन अब पहले से उनकी कुछ मुश्किलें कम हुई है।
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