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स्वतंत्रता सेनानी ने अपने पुत्र के जन्मदिन पर किया ऐसा कार्य, करेंगे तारीफ
इस सुरंग में लोग बताते हैं एक बरात घूमने निकली थी जो इसी सुरंग के अंदर गई फिर उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला जिसके बाद इस रास्ते को ईंट से बंद करवा दिया।
हमीरपुर: जनपद से करीब 50 किलोमीटर दूर पर मुस्करा विकास खंड क्षेत्र के गहरौली गांव में करीब 150 वर्ष पूर्व बना बांके बिहारी जू मंदिर की दशा बेहद जर्जर होती जा रही हैं। किसी समय पर स्वतंत्रता सेनानी गांव के इस मंदिर पर बैठ कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाया करते हैं। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार करने व संघर्ष को प्रोत्साहित करने वाला क्रांति कारी समाचार पत्र बुंदेलखंड केसरी गुप्त रुप से यही से प्रकाशित होता था।
आपको बता दें कि धनीराम गुरुदेव ने अपने अनुज पं. उधवराम के पुत्र प्रागदत्त के जन्मोत्सव पर 1929 में मंदिर का निर्माण कराया था। चूना मिंट्टी और कंकरीले पत्थरों से निर्मित बांके-बिहारी का मंदिर भारतीय शिल्प कला का अनूठा उदाहरण है। मंदिर की छत से सटे कंगूरे, प्रमुख द्वार से लेकर बांके बिहारी महाराज के विराजमान स्थल तक फूलपत्ती, तैल चित्र और सनातनी देवी देवताओं की प्रतिमाएं अंकित है।
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भगवान का श्रंगार सोने चांदी से निर्मित
भगवान का श्रंगार सोने चांदी से निर्मित है। मंदिर का शिखर 50 मीटर ऊंचा है। मंदिर में लगे लकड़ी के दरवाजे की नक्काशी कलात्मक है। इस मंदिर की भव्यता कलात्मकता और आध्यात्मिक शक्ति बेमिसाल है। वर्तमान महंत राजा भैया दीक्षित ने बताया कि हमारे पूर्वजों के द्वारा बांके बिहारी जूं मंदिर की निरंतर सेवा व पूजा अर्चन निरंतर करते चले आ रहे है। मंदिर शिल्प कला पूरी तरह से जर्जर होती जा रही शासन प्रशासन की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
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1936 में श्रीगुरुदेव ने कांग्रेस का पहला जनपदीय अधिवेशन कराया
ग्रामीण लोगों का मानना हैं कि गांव में स्थित डेढ़ सौ वर्ष पुराने बांके बिहारी जू मंदिर में गांव एवं आसपास के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रात में एकत्र होकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रणनीति बनाते थे। इसी मंदिर में स्वर्गीय सेनानी मन्नीलाल गुरुदेव की देखरेख में रामगोपाल गुप्ता मौदहा बुंदेलखंड केसरी अखबार टाइप राइटर पर टाइप करके निकालते थे। इस अखबार को बांटने की जिम्मेदारी प्रमुख रूप से बैजनाथ पांडेय, नत्थू वर्मा, जगरूप सिंह टेढ़ा मंदिर के गुप्त रास्ते के जरिए की जाती थी। 1936 में श्रीगुरुदेव ने कांग्रेस का पहला जनपदीय अधिवेशन भी कराया था। जिसमें जवाहर लाल नेहरू भी मौजूद थे।
स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्री मंत्री श्री मती इंदिरा गांधी ने यह ताम्रपत्र भेंट किए थे।मौजूदा समय में इस मंदिर की दशा बेहद जर्जर है। शासन प्रशासन की ओर से इसके जीर्णोद्धार का प्रयास नहीं हो रहा है। ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटन विभाग में शामिल करके सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। गांव के बुजुर्ग श्रीप्रकाश पांडेय, विनोदचंद्र सक्सेना आदि का कहना है कि पहले के लोग देश के लिए जान तक न्यौछावर कर देते थे।
मगर आज निजी स्वार्थ के चलते हत्या जैसा जघन्य अपराध करते हैं। पूर्व प्रधान विमलचंद्र गुरुदेव व छेदीलाल शिवहरे का कहना है कि तब के लोग देश को आजाद कराने के लिए अपना धन देते थे। अब आजाद देश के नेता व अधिकारी जनता के धन से अपने घरों की तिजोरियां व विदेशी बैंक भरने में लगे हुए है।
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दर्जनो सेनानी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बनाते थे रणनीति
आजादी के लिए अग्रणी भूमिका निभाने वाले गांव के एक दर्जन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गांव के बांके बिहारी जू मंदिर में बैठकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाप रणनीति बनाते थे। साथ यहीं से बुंदेलखंड केसरी नाम का अखबार प्रकाशित होता था। ये अखबार भोर होने से पहले ही लोगों के पास पहुंच जाता था और लोगों को जागरूक करता था। आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस मंदिर की मौजूदा समय में उपेक्षा की जा रही है।
सुरंग का रहस्य
इस सुरंग में लोग बताते हैं एक बरात घूमने निकली थी जो इसी सुरंग के अंदर गई फिर उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला जिसके बाद इस रास्ते को ईंट से बंद करवा दिया।
रिपोर्टर- रविन्द्र सिंह, हमीरपुर
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