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महिलाओं ने मांगा वरदान! सन्तान के लिए रखा व्रत, ऐसी है हलछठ की मान्यता...
गांव की महिलाओं ने पूजा स्थल पर बने गंगासागर से अपने बेटों के चेहरों को धुला और पीठ पर हल्दी से सने हाथ के पंजे की छापा लगाकर लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया।
ज्ञानपुर, भदोही: पुत्रों की लंबी उम्र के लिए माताओं ने रविवार को ललई छठ (हलषष्ठी) का व्रत रखकर पूजा-अर्चना की। घर के आंगन में कुश और ढाक लगाकर महिलाओं ने पूड़ी, दही, पसड़ी के चावल से गौर-गणेश की विधि-विधान से पूजा कर लाल के सलामत रहने की कामना की। जनपद के शहरी और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने रविवार सुबह से ही पकवान बनाने के बाद दोपहर में पूजा-अर्चना को अंतिम रूप दिया।
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मंगलगीत प्रस्तुत कर खुशी का इजहार किया
गांव की महिलाओं ने पूजा स्थल पर बने गंगासागर से अपने बेटों के चेहरों को धुला और पीठ पर हल्दी से सने हाथ के पंजे की छापा लगाकर लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया। माताओं ने उनके दीघार्यु होने के लिए गंगाजल का छिड़काव भी किया। अधिकांश स्थानों पर महिलाओं ने सामूहिक रूप से पूजा कर पूजन का महत्व बताया। इस मौके पर महिलाओं ने मंगलगीत प्रस्तुत कर खुशी का इजहार किया।
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बताते चलें कि ललई छठ यानी हलषष्ठी पर्व आज 9 अगस्त रविवार को मनाया गया। यह त्योहार हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इस पर्व को हरछठ के अलावा कुछ पूर्वी भारत में ललई छठ के रुप में मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के अवतार में जन्म लिया था। यह पूजन सभी पुत्रवती महिलाएं करती हैं। यह व्रत पुत्रों की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं प्रति पुत्र के नाम से छह छोटे मिटटी या चीनी के वर्तनों में पांच या सात भुने हुए अनाज या मेवा भरतीं हैं।
रिपोर्ट: उमेश सिंह
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