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होली के रंग, भांग और मस्ती में फगुवाते माननीय

seema
Published on: 6 March 2020 1:03 PM IST
होली के रंग, भांग और मस्ती में फगुवाते माननीय
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लखनऊ। होली के त्यौहार से पहले प्रकृति अपना रंग बदलती है। ठंड खत्म होती है और गर्मी की शुरुआत होने के कारण मौसम भी खुशगवार रहता है। मौसम का यह रंग हर किसी को मस्ती के मूड में ला देता हैै। मौज-मस्ती के आलम में मनाये जाने वाले त्यौहार को होली के रंग और रंगीन बना देते हैं। होली में तमाम शरारतें भी होती हैं लेकिन कमोबेश सभी माफ होती हैं। हमारे कई माननीय भी खूब होली का मजा लेते हैं। अपने परिवार के अलावा, समर्थकों और कार्यकर्ताओं के साथ रंगों का त्योहार मनाते हैं। जानते हैं, कैसी होती है माननीयों की होली और इस बार क्या करेंगे खास। अपना भारत के मनीष श्रीवास्तव ने माननीयों से जाने उनके संस्मरण।

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साथियों ने पहले कीचड़ लगाया फिर निवस्त्र करते करते छोड़ा

अनिल राजभर (पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं दिव्यागंजन सशक्तिकरण मंत्री)

'हम सब लोग इस बात को स्वीकार करते है कि बचपन से अच्छा वक्त जीवन में और कोई नहीं होता है। जब हम लोग छोटे थे तब जो गांव की होली थी उसका कोई जवाब अब तक नहीं मिल पाया। अब समय के साथ-साथ होली का स्वरूप और रूप भी बदल रहा है। हम लोग उम्मीद करते हैं कि काश फिर से अपने भाइयों और साथियों के साथ उसी माहौल में होली खेलें। वह फाग, वह गंवई अंदाज और एक दूसरे के दरवाजे पर जाकर नाच-गाना करके बधाई देना, लोगों से मिलना जुलना और जाने-अनजाने में ठंडाई भी छानना.. ..। काश ऐसा वक्त फिर से आता और उसी रंग में फिर से रंगते तो कितना मजा आता। एक बार मैं छात्रसंघ भवन में बैठा था और हमारे साथियों ने रंग की होली की बजाए कीचड़ और गोबर की होली मेरे साथ खेली। मेरी बहुत विनती और प्रार्थना पर उन लोगों ने मुझे छोड़ा और मैं निवस्त्र होते-होते बचा। मुझे वह होली नहीं भूलती। हमारी अनेकता में एकता की झलक होली के बहाने देखने को मिलती है। होली इसी तरह से समृद्ध रहे, हम एक दूसरे के गले मिलें, मन की खटास व दूरियों को कम करें और एक अच्छे समाज का निर्माण करें। हम अपनी संस्कृति की रक्षा करें, यही हम उम्मीद करते हैं।

आडवाणी जी के घर तो हौदे में फेंक दिया था

चेतन चैहान (सैनिक कल्याण, होमगार्ड, प्रांतीय रक्षा दल एवं नागरिक सुरक्षा मंत्री)

'जब मैं इंडिया टीम में खेलता था तब अगर होली के दिन कोई मैच पड़ा तब खिलाड़ी मैच शुरू होने से पहले एक दूसरे को टीका लगा लेते थे। मैच के बाद गले मिलते थे। यदि होली के दौरान विदेश दौरे पर रहे तब तो रंग नहीं खेल पाते थे। लेकिन सूखी होली जरूर खेलते थे। बचपन में तो खूब होली खेलता था। कई बार तो तीन से चार दिन रंग छूटने में लगते थे। जब मैं राजनीति में आ गया तब रंग वाली असली होली आडवाणी जी के घर पर होती थी। एक बार जब मैं आडवाणी जी के घर होली पर पहुंचा तो वहां किनारे पर एक हौद बनी हुई थी, जिसमें पानी भरा था। मेरे वहां पहुंचते ही दो-तीन लोगों ने पकड़ कर मुझे सीधे हौद में फेंक दिया। अटल जी के यहां भी होली मनती थी लेकिन ह्लहां सूखी होली ही होती थी। बहुत ज्यादा रंग नहीं डाला जाता था। आडवाणी जी के यहां पूरी गीली होली होती थी। राजनाथ जी के यहां भी गीली होली होती है। हर बार होली पर मैं जरूर जाता था और बड़े बड़े नेताओं से मुलाकात होती थी। सुषमा जी और अरुण जी रंग से होली नहीं खेलते थे लेकिन प्यार से मिलते थे। जब मैं एमपी बना तो कभी अगर विदेश में रहा तो अलग बात है वरना मैं गजरौला में ही रहता था। वहां मेरा कागज का कारखाना है। उसमें बड़ा लॉन है जहां मैं होली से एक दो दिन पहले होली मिलन का कार्यक्रम रखता हूँ । डीजे आ जाता है और सभी लोग नाचते गाते हैं।

खेतों में छुप कर गुजारते थे होली का दिन

राजेन्द्र चौधरी (मुख्य प्रवक्ता, समाजवादी पार्टी)

होली हमारी पुरातन सांस्कृतिक विरासत है। इसमें गांव, फसल, मौसम का बदलना, यह सब शामिल है। किसानों के लिए विशेष तौर पर यह त्यौहार महत्व रखता है। लेकिन इधर इसका स्वरूप बदलने की कोशिश की जा रही है। लोग शराब पीने लगे हैं। इस दिन को सद्भाव की बजाए उद्दंडता का एक अवसर मानते हैं। हमें अपनी सांस्कृातिक विरासत को समेट कर रखना चाहिए। एक स्वस्थ्य परम्परा कायम रखनी चाहिए। मैं तो कभी ऐसे कार्यक्रम में शामिल नहीं होता। जब मैं पढ़ता था तो रंग खेलने वाले दिन किताब ले कर खेतों में छुप जाता था और वहीं पर पढ़ता था। दोपहर में मैं मटर भून कर खा लेता था और शाम को वापस आ जाता था। यह एक अच्छा पर्व है लेकिन इसमें शराब नहीं पीना चाहिए। हमें अपनी भारतीय संस्कृति को संजो कर रखना चाहिए।

होली पर ढोलक बजाते और फाग गाते थे

हदयनारायण दीक्षित (विधानसभा अध्यक्ष)

होली में १९८५ से पहले हम गांव में रहते थे। गांव में लोगों से मिलजुल कर रंग भी खेलते थे, फाग में ढोलक बजाते थे। अगर हमसे ज्यादा कोई काबिल आ जाता था तो वह बजाता था। देहातों में लोग एक दूसरे के यहां मिलने जाते थे। एक गांव से 40 - 50 लोग दूसरे गांव के लोगों से मिलने जाते थे। मेरा मानना था कि इसमें समय बर्बाद होता है सो होली के रंग के बाद मैं किताबें लेकर अपने किसी मुस्लिम मित्र के यहां रुक जाता था और चार पांच दिन वहीं भोजन और पठन पाठन किया करता था। मुस्लिम बस्ती वाले होली के पहले के महीने में कहते थे कि अगले महीने होली है और पंडित जी तो यहीं रहेंगे। जब मैं विधायक हो गया तो तय किया कि अब गांव की होली में नहीं रहा करूंगा। जब विधानपरिषद में आया तो होली वाले दिन भी पठन पाठन करता और जो किताबें लिखते थे उनकी जांच करता था।

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भांग की पकौड़ी व मिठाइयां खिलाईं और फिर नहर में फेंका

दीपक सिंह (एमएलसी कांग्रेस एवं नेता कांग्रेस विधान परिषद दल )

बचपन में लड़ाइयां होती थीं लेकिन होली के समय आपस में रंग खेल कर हम लोग मित्रता बढ़ा लेते थे। तब की होली में और आज की होली में फर्क इतना आ गया कि आज की होली में राजनीतिक रंग है जबकि पहले की होली में प्रेम के रंग हुआ करते थे। दुश्मनियां खत्म होती थीं, मोहब्बत व प्यार बढ़ता था। अब राजनीतिक ढंग से होली खेलते हैं। मुझे लगता है कि इससे सम्बन्ध बढ़ते नहीं बल्कि घटते हैं। होली का रंग भी वायरस की तरह राजनीतिक हो गया है और प्रेम का रंग भी नहीं बचा है। पहले लोग बड़े बड़े ड्रम रखते थे और उसमें रंग भरते थे। रंग का अभाव हुआ तो कालिख, कीचड और गंदगी में होली खेलते थे। आज सम्पन्नता के बाद भी फिर भी रंगों में खुशियां नहीं हैं। एक वाकया याद आता है। हमारे गांव के पास एक गांव है कुण्डा निवादा। वहां हमारे मित्र तिवारी जी भांग की पकौडिय़ां और भांग की मिठाई बनवाते थे और सबको खिला खिलाकर पास की नहर में फेंकते थे और नहर में एक साइड से रंग डालते थे। यह परंपरा आज भी है। एमएलसी बनने के बाद भी मुझे और मेरे मित्रों को होली का इंतजार रहता है।

चंदा वसूली पर दादाजी ने की बहुत पिटाई

सतीश महाना (औद्योगिक विकास मंत्री )

हमारे कानपुर में सबसे अलग टाइप की होली होती है। बहुत ही फक्कड़ टाइप की होली होती है। वहां गंगा मेला भी लगता हैै। मुझे याद है कि विधायक बनने के बाद पहली बार कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचा तो वे इतने उत्साहित हो गए कि मुझे बुरी तरह तर-बतर कर दिया। कार्यकर्ताओं ने पराकाष्ठा कर दी थी और रंग के कई कोट चढ़ा दिए थे। उस वाकये को आज भी नहीं भूला हूं। उस होली के बाद से कार्यकर्ताओं के साथ मेरा एक मजबूत रिश्ता बन गया। इससे यह समझ में आया कि जब किसी को प्रिवलेज मिल जाता है तो वह और करीब आ जाता हैै। होली का त्यौहार लोगों से नजदीकी बढ़ाने का एक अवसर होता है। हर बार की तरह इस बार भी मैं होली अपने क्षेत्र में अपने कार्यकर्ताओं के साथ मनाऊंगा। इसके अलावा मुझे होली से जुड़ी बचपन की एक घटना नहीं भूलती है जब हम लोग होली का चंदा लेते थे। मैं करीब 11-12 साल का था तब हम बच्चों की टोली बिजली के तार पर कटिया डाल देते थे और लोगों का अंगोछा खीच लेते थे। दस-बीस पैसे चंदा लेने के बाद अंगोछा वापस कर देते थे। एक बार मेरे दादा जी ने हम लोगों की इस हरकत को देख लिया। उसके बाद हमारी बहुत पिटाई हुई। दादा जी ने कहा कि किसी गरीब को तंग करके उससे पैसे लेनके की अनुमति हमारा त्यौहार नहीं देता। उसके बाद से यह चंदा वसूली की परम्परा खत्म हो गई। हालांकि यह पुराने जमाने की बात है आजकल इसे आजमाया नहीं जा सकता।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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