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मंत्री का खेलाः कोरोना काल में भी साल बीतता रहा, इस विभाग को नहीं मिला नियमित निदेशक

साल बीतने को है पर होम्योपैथी विभाग में कोई नियमित निदेशक की तैनाती नहीं हो पायी। हद तो यह है कि कार्यकारी निदेशक भी ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि मंत्री धर्म सिंह सैनी ने अपने चहेते व वरिष्ठता क्रम में चौथे नंबर के डॉक्टर को निदेशक बनाने के लिए विभाग में यह उठा पटक मचा रखी है।

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Published on: 10 Sep 2020 2:00 PM GMT
मंत्री का खेलाः कोरोना काल में भी साल बीतता रहा, इस विभाग को नहीं मिला नियमित निदेशक
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मंत्री के चलते होम्योपैथिक विभाग को नहीं मिल सका पूर्णकालिक निदेशक

योगेश मिश्र

लखनऊ। कोविड-19 को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की गंभीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि तक़रीबन एक साल बीतने को है पर होम्योपैथी विभाग में कोई नियमित निदेशक की तैनाती नहीं हो पायी। हद तो यह है कि कार्यकारी निदेशक भी ताश के पत्तों की तरह फेंटे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि मंत्री धर्म सिंह सैनी ने अपने चहेते व वरिष्ठता क्रम में चौथे नंबर के डॉक्टर को निदेशक बनाने के लिए विभाग में यह उठा पटक मचा रखी है।

डॉ. वी. के. विमल होम्योपैथी विभाग के अंतिम नियमित निदेशक थे। उन्हें बीते दिसंबर में सेवानिवृत्त होना था। पर इससे दो माह पहले ही वह मंत्री की पसंद नहीं रह गये । नतीजतन, उन्हें सेवानिवृत्ति के पहले ही पद से हटना पड़ा।

इसके बाद डॉ. आनंद चतुर्वेदी को प्रभार सौंपा गया, क्योंकि वह वरिष्ठता में सबसे ऊपर थे। लेकिन इनके पास भी निदेशक का प्रभार कुछ ही समय रहा। वैसे डॉ. चतुर्वेदी कानपुर कॉलेज के प्रिंसिपल हैं।

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इसके बाद विभाग के विशेष सचिव राजकमल यादव के पास निदेशक होमियोपैथी का चार्ज रहा। नेशनल कॉलेज, लखनऊ के प्राचार्य डॉ. अरविंद वर्मा के पास भी कुछ समय तक चार्ज रहा।

इनके लिए कर डाली सारी कसरत

यह खेल मंत्री धर्म सिंह सैनी सिर्फ़ इसलिए खेल रहे थे क्योंकि यदि किसी का एक साल तक प्राचार्य का चार्ज भी दे कर रखा गया तब जिसे वह निदेशक बनाना चाहते हैं उसके राह में एक और रोड़ा आकर खड़ा हो सकता है। जिस डॉ. मनोज यादव को धर्म सिंह सैनी मंत्री बनाना चाहते है। वह वरिष्ठता में चौथे स्थान पर हैं। उनको निदेशक बनाने के लिए बाक़ायदा विभागीय प्रोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक बुलाई जा रही है।

इस बैठक में लोक सेवा आयोग से चुनकर प्राचार्य बन कर आई डॉ. हेमलता को नहीं बुलाया गया है। डॉ. हेमलता इलाहाबाद में प्राचार्य हैं। यही नहीं , डॉ. यादव ने उच्च न्यायालय में कैवियेट भी दाखिल कर रखा है। ताकि उनके डीपीसी की बैठक में कोई व्यवधान न उत्पन्न हो सके।

अनिवार्यता भी कर दी दरकिनार

ग़ौरतलब है कि डॉ. मनोज यादव की सभी प्रविष्टियाँ ठीक हैं। नीचे से अगर कभी किसी काल खंड में किसी अधिकारी ने प्रविष्टि कमजोर दी भी तो ऊपर से वह उत्कृष्ट में तब्दील हो गयी। इनके रसूख का ही परिणाम है कि विभाग में प्रवक्ता के लिए तीन साल का शैक्षणिक अनुभव अनिवार्य होता है, जबकि इनके मामले में इस अनिवार्यता को दरकिनार कर दिया गया।

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यही नहीं, होम्योपैथी कॉलेज के प्राचार्यों की सिनियारिटी लिस्ट 2012 के बाद बनी ही नहीं। यानि यह सूची अपडेट ही नहीं की गयी। जबकि 2012 के बाद कई प्राचार्य बने हैं। ऐसा महज़ इसलिए किया गया ताकि अपर निदेशक पद पर तैनात डॉ. मनोज यादव के रास्ते में कोई अवरोध न रह जाये।

जबकि नियम के मुताबिक़ डीपीसी करने से पहले सिनियारिटी लिस्ट अपडेट की जानी चाहिए । धर्म सिंह सैनी बसपा से भाजपा में आये हैं। नियमित निदेशक न होने की वजह से होम्योपैथी विभाग कोरोना काल में दूसरे तमाम राज्यों के विभागों की तरह काम नहीं कर पाया।

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