TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

बिजली विभाग को करोड़ों का चूना लगा रहा अफ़सर

बिजली महकमे में तैनात आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार हों या आलोक सब के सब आर के जैन के काम के इतने क़ायल हैं कि जैन के बिना बिजली महकमे का काम नहीं बनता।

Shreya
Published on: 6 Aug 2020 11:23 AM IST
बिजली विभाग को करोड़ों का चूना लगा रहा अफ़सर
X
loss of electricity department

योगेश मिश्र

राज्य के बिजली महकमे का दुर्भाग्य यह है कि सरकार भले ही नामी गिरानी आईएएस अफ़सर तैनात करती हो, चेयरमैन और प्रबंध निदेशक के अध्यक्ष पद पर आईएएस अफ़सर बिठा देती हो पर महकमे और इन अफ़सरों को चलाने का काम इंजीनियर ही करते हैं। कभी इंजीनियर ए.पी. मिश्र पूरा बिजली विभाग चलाते थे। आज यह काम आर के जैन के हाथ लग गया है।

बिजली महकमे में तैनात आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार हों या आलोक सब के सब आर के जैन के काम के इतने क़ायल हैं कि जैन के बिना बिजली महकमे का काम नहीं बनता। जैन हैं उनके हर कार्यकाल में बिजली विभाग को चूना लग ही जाता है। हाल फ़िलहाल वह यूपीपीसीएल के चेयरमैन के स्टाफ़ आफिसर हैं।

यह भी पढ़ें: जल्द लाॅन्च होगी Mahindra की ये शानदार SUV, जानिए कीमत और फीचर्स

फ्लुएंट ग्रिड में टेक्निकल कमियाँ

बिजली महकमें में आरएमएस टेंडर बीते दो मार्च को जारी किया गया। इसके लिए एचसीएल टेक्नोलॉजी लिमिटेड के साथ क्वालीफ़ाई कार्प और फ्लूएंट ग्रिड के साथ टाटा पॉवर ने टेंडर डाला। टेक्निकल टेंडर बीते 27 अगस्त को खुला। फ्लुएंट ग्रिड में टेक्निकल कमियाँ थीं। 7 सिंतंबर को इस कंपनी को टेक्निकल कमियाँ पूरा करने का समय देते हुए कहा गया कि 21 सितंबर तक इसे ठीक कर लें। लेकिन सुधार के बाद भी महकमे द्वारा गठित समिति ने एचसीएल के प्रस्ताव को टेक्निकल स्केलिंग में 9 से अधिक अंक दिये गये।

यूपीपीसीएल के अफसरों ने बोली रद कराने के लिया किया ये काम

बीते दिसंबर माह में नये एमडी ने एक बार फिर दोनों बोली दाताओं से तकनीकी प्रस्तुति करवाई। यह सब एक्सरसाइज़ बिड डालने वाली दोनों कंपनियों को तकनीकी तौर पर बराबर करने के लिए की जा रही थी। ताकि पसंदीदा कंपनी को फ़ाइनेंशियल बिड तक पहुँचाया जा सके। लेकिन सफल न होने की स्थिति में यूपीपीसीएल के कुछ अफ़सर बोली रद कराने के लिए मूल्यांकन समिति को प्रभावित करने के काम को अंजाम देने में जुट गये।

फाइनेंसियल बीड खोले बिना रद करने का फ़ैसला

टेक्निकल बीड पूरी होने के बाद फाइनेंसियल बीड खोले बिना रद करने का फ़ैसला यह बताता है कि किस हद तक जा कर किसी कंपनी की मदद की जा रही है। वह भी ऐसी कंपनी की जिसके हाल फ़िलहाल करोड़ों के बिजली घोटाले में ज़िलाधिकारी प्रयागराज ने दोषी पाया हो। फ्लुएंट कंपनी का 88 लाख रूपये का भुगतान रोक दिया हो।

यह भी पढ़ें: बारिश से मचा हाहाकार: हर तरफ तबाही ही तबाही, आफतों से घिरा पूरा शहर

जैन के कार्यकाल में एक कंपनी विशेष को सपोर्ट

यही नहीं, किस तरह आर के जैन के कार्यकाल में एक कंपनी विशेष को सपोर्ट किया गया। जिसके चलते बिजली महकमे को करोड़ों की क्षति पहुंचने का ज़िक्र विभाग की आडिट टीम ने किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में क्लाउड बेस्ड ऑन लाइन बिलिंग सिस्टम के लिए 4 मार्च, 2015 को रिक्वेस्ट फ़ार प्रपोज़ल पत्र जारी किया गया। जिसमें केवल मेसर्स इनफिनिट कंप्यूटर सोल्यूशंस (इंडिया) लिमिटेड के प्रस्ताव के कंसोर्टियम को मंजूरी दी गई।

इस आधार पर 4.15 रूपये प्रति उपभोक्ता प्रति माह बिलिंग पर और 7583 रुपये प्रति लोकेशन प्रति माह पर नेटवर्क बैंडविद शुरुआत से लोकेशन के अंत तक के लिए मेसर्स फोनिक्स आईटी सोल्यूशंस लिमिटेड और मेसर्स सिफी टेक्नॉलॉजीज लिमिटेड (ओईएम पार्टनर) को दिया। इस तरह देखा जाये तो केवल एक ही टेंडर आया। बावजूद इसके इसी कंसोर्टियम को काम दे दिया गया।

इन आईटी कंपनियों ने निविदा में दिखाई अपनी रुचि

जबकि तीन प्रमुख आई टी कंपनियों ने इस निविदा में अपनी रुचि दिखाई। जिसमें मेसर्स टेक महिन्द्रा, मेसर्स असेनचर और मेसर्स सैप इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शामिल थीं। तीनों कंपनियों ने निविदा की तिथि जून माह तक बढ़ाने का आग्रह किया। इसमें टेक महिंद्रा 27 जून, 2015 तक, मेसर्स असेनचर ने 20 जून, 2015 तक और मेसर्स सैप ने 10 जून, 2015 तक बढ़ाने की बात कही थी।

यह भी पढ़ें: लालू यादव का बदला ठिकाना: रिम्स से यहां हुए शिफ्ट, BJP ने खड़े किए सवाल

UPPCL

UPPCL ने अंतिम तिथि को बढ़ाने की दी अनुमति

लेकिन यूपीपीसीएल ने कार्य की तात्कालिकता को आधार बनाते हुए अंतिम तिथि केवल 20.05.2015 से 02.06.2015 तक बढ़ाने की अनुमति दी। 02.06.2015 तक केवल मेसर्स इनफिनिट कम्प्यूटर सोल्यूशंस (इंडिया) लिमिटेड की ही बोली आई थी। इस आधार पर इसी कंपनी को काम दिया गया।

पर हैरतअंगेज़ यह है कि जिस काम के लिए तात्कालिकता का हवाला देते हुए पंद्रह बीस दिन निविदा तिथि बढ़ाने से मना कर दिया गया । वह काम बोली खुलने के 248 दिन बाद दिया गया। तीनों कंपनियों को समय मिलता तो अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य पर बिड हासिल की जा सकती।

यह भी पढ़ें: दहला पाकिस्तान: भारत के खिलाफ निकाल रहे रैली पर हमला, मची भगदड़

कंपनी को महाराष्ट्र सरकार कर चुकी थी ब्लैकलिस्टेड

निविदा प्रपत्र पर अंकित अर्हता में कहा गया है कि बोलीकर्ता या कोई कंसोर्टियम/ओईएम पार्टनर किसी सरकारी विभाग द्वारा या बीते समय में किसी एजेंसी से सार्वजनिक रूप से ब्लैकलिस्टेड नहीं होने चाहिए। आडिट में यह पाया गया कि बोलीकर्ता ने ब्लैकलिस्टिंग के संबंध में कोई दस्तावेज दाखिल नहीं किये। यह पाया गया कि कंपनी मेसर्स सिफी टेक्नॉलॉजीज लिमिटेड को सितंबर 2013 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा ब्लैकलिस्टेड किया जा चुका था।

बोलीकर्ता की बोली निविदा पत्र के प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती

निविदा में सीएमएमआई का लेवल 5 प्रमाण पत्र मांगा गया था जबकि आडिट में यह भी सामने आया कि कंपनी का सीएमएमआई प्रमाण पत्र केवल जून 2014 तक वैद्य था। जबकि टेंडर की अवधि मार्च से जून 2015 के बीच थी। इस आधार पर बोलीकर्ता की बोली निविदा पत्र के प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती है।

यह भी पढ़ें: ऑनर किलिंग की वारदात से कांप उठी यूपी, प्रेमी युगल को आग में ज़िंदा फूंका

निविदा पत्र में क्या था प्रावधान?

निविदा पत्र में प्रावधान था कि न्यूनतम टेक्नीकल स्कोर 70 परसेंट से अधिक होना चाहिए। इसके अलावा प्रावधान यह भी कहते हैं कि एप्लीकेशन का पोर्टफोलियो और आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर आकार में हार्जेंटल या वर्टिकल स्केलेबल होना चाहिए। पैरा सात यह भी कहता है कि संबंधित डिस्कॉम को आईटी सोल्यूशन को यूपी में कहीं भी भेजने की आजादी रहेगी।

त्रिपक्षीय करार

बावजूद इसके आडिट में यह पाया गया कि अपने लंबे अनुभव के बावजूद कंपनी ने मार्च 2016 में मेसर्स इनफिनिट कम्प्यूटर सोल्यूशंस (इंडिया) लिमिटेड और फ्लूएंटग्रिड लिमिटेड के साथ त्रिपक्षीय करार कर लिया। लेखा विभाग ने अपने आडिट में पाया है कि कंपनी ने रिवेन्यू जनरेट करने का कोई प्रयास नहीं किया।

यह भी पढ़ें: 6 अगस्त राशिफल: इन राशियों के लिए आज होगा खराब, जानें बाकी का हाल

आर के जैन के कार्यकाल में ही UPPCL को लगा चूना

आडिट ने पाया कि यूपीपीलीएल द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्व बिलिंग के लिए मौजूदा प्रणाली का अन्वेषण नहीं किया गया। न ही अतिरिक्त बिलिंग प्रणाली को तैनात करने से पहले कोई लागत लाभ विश्लेषण किया। यूपीपीसीएल ने एक अपरिहार्य व्यय उठाना उचित समझा। इसके चलते वर्ष 2017 से 2019 तक के दो वित्तीय वर्ष में 106.48 करोड़ रूपये अतिरिक्त खर्च किया। जिसे बचाया जा सकता था।

ग़ौरतलब है कि यूपीपीएससीएल को चूना लगाने वाले ये सभी फ़ैसले आर के जैन के कार्यकाल में ही हुए हैं। वर्ष 2014-2017 के बीच वह बतौर सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर आरएपीडीआरपी कार्यक्रम के इंचार्ज थे।

यह भी पढ़ें: Twitter ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ की ये बड़ी कार्रवाई, मचा हड़कंप

देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।



\
Shreya

Shreya

Next Story