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'अब हमें पता चल रहा असल में हमारे दोस्त कौन हैं'

seema
Published on: 13 March 2020 3:46 PM IST
अब हमें पता चल रहा असल में हमारे दोस्त कौन हैं
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लखनऊ: भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल में कहा कि 'हमें पता चल रहा है कि असल में हमारे दोस्त कौन हैं।' जयशंकर का ये बयान दिल्ली के दंगे के बारे में ईरान की तीखी प्रतिक्रिया पर था। दरअसल, ईरान इधर काफी समय से भारत विरोधी तेवर अपनाए हुए है। इसके पीछे कई तरह की राजनीति है। भारत और ईरान के बीच करीबी संबंध हैं लेकिन अलग-अलग कारणों से ईरान नई पैंतरेबाजी में जुटा हुआ है।

ये राजनीति क्या है ये जानने से पहले जरा हाल के घटनाक्रम पर नजर डालते हैं- ईरान ने दिल्ली में हुए दंगों की दो मर्तबा निंदा की है। २ मार्च को ईरानी विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने 'भारतीय मुसलमानों के खिलाफ संगठित हिंसा की लहर' के बारे में ट्वीट किया था और भारत सरकार से आग्रह किया था कि वह 'मूर्खतापूर्ण गुंडागर्दी को हावी नहीं होने दे।' इसके अगले ही दिन भारत ने नई दिल्ली में ईरानी राजदूत अली छेगानी को बुला कर कड़ा विरोध दर्ज कराया था।

5 मार्च को ईरान को सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खेमनई ने भारत की निंदा की। खेमनई ने कहा, 'भारत में मुलसमानों के संहार पर पूरी दुनिया के मुसलमानों के दिल शोक में डूबे हुए हैं। भारत की सरकार को अतिवादी हिन्दुओं और उनके दलों का सामना करना चाहिये और मुलसमानों का नरसंहार रोकना चाहिये ताकि भारत को इस्लामी विश्व में अलगाव की स्थिति में पहुंचने से रोका जा सके।Ó खेमनई के बयान पर भारत ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। खेमनई ने अनुच्छेद ३७० हटाए जाने पर कहा था कि 'भारत से उम्मीद की जाती है कि वह कश्मीर के लोगों के प्रति न्यायोचित नीति अख्तियार करेगा और इस क्षेत्र के मुसलमानों का दमन होने से रोकेगा।'

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बनते-बिगड़ते रिश्ते

भारत और ईरान के बीच रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। लेकिन २०२० पहले से अलग है। ईरान को पिछले छह साल में भारत की अमेरिका और इजरायल से नजदीकियां बहुत खल रही हैं। इजरायल और अमेरिका दोनों ही ईरान के कट्टïर दुश्मन हैं। सबसे तकलीफ ईरान को इस बात से है कि भारत ने उससे तेल खरीदना बंद कर दिया है। वैसे, ये खरीदारी अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने की धमकी के बाद ही बंद की गई है। इस वित्तीय वर्ष में भारत और ईरान के बीच व्यापार ७९.४ फीसदी घटा है। ईरान जानता है कि अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने के लिए भारत को ईरान की जरूरत है। तेहरान ने भारत को चाबहार बंदरगाह का रास्ता दिया जरूर है लेकिन मुमकिन है कि ईरान ये चाहता हो कि भारत अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके अमेरिका से प्रतिबंधों में रियायत दिलाये।

चीन से दोस्ती

ईरान की चीन से बढ़ती घनिष्ठïता भी एक बड़ी वजह हैै। आज चीन, ईरान का सबसे बड़ा आर्थिक पार्टनर है। और ईरान की विदेश नीति में चीन का प्रभाव साफ झलकने लगा है।

इसके अलावा ईरान अपने आपको इस्लामी विश्व का नेता जताना चाहता है। इस चाहत में उसी प्रतिद्वंद्विता सऊदी अरब और यूएई से है जो अमेरिका के सहयोगी हैं।

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पहले भी आग उगल चुका है ईरान

ईरान का भारत के मामले में टांग अड़ाने का ये कोई पहला मामला नहीं है। १९९२ और २००२ में भी ईरान ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुका है।

बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के एक दिन बाद ७ दिसम्बर १९९२ को ईरानी विदेश मंत्रालय ने तेहरान में भारतीय राजदूत हामिद अंसारी को बुलाया और उन्हें सुप्रीम लीडर खेमनई की 'चिंताओं से अवगत कराया।' ये बातचीत बंद कमरे में हुई थी। तेहरान स्थित भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन भी हुए थे। पथराव किया गया था। उस समय तेहरान रेडियो ने अपने प्रसारण में खेमनई के हवाले से कहा था कि 'मस्जिद का ढहाया जाना कोई स्थानीय मसला नहीं है। और भारत के मुसलमानों को ये ड्यूटी है कि वे दुश्मन के ऐसे रवैये को बर्दाश्त न करें।' तेहरा रेडियो ने कहा कि खेमनई ने ईरानी विदेश मंत्री अली अकबर वेलायती से कहा है कि वे नई दिल्ली को बता दें कि 'विश्व भर के मुसलमान ये अपेक्षा करते हैं कि भारत में मुसलमानों के अधिकारों का सम्मान किया जायेगा।'

ईरानी टीवी पर बयान

तेहरान टीवी पर तत्कालीन भारतीय राजदूत हामिद अंसारी ने एक इंटरव्यू में भारत सरकार के रुख की चर्चा करते हुए कहा था कि 'जो गलत हुआ उसे दुरुस्त किया जायेगा' और 'मस्जिद का पुनर्निमाण किया जायेगा।'

राव की तेहरान यात्रा

ईरान के धमकी भरे अंदाज के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव सितम्बर १९८३ में ईरान यात्रा पर गये। १९७९ में इस्लामी क्रांति के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ये पहली ईरान यात्रा थी। मार्च १९९४ में ईरान ने संयक्त राष्ट्र में भारत का साथ दिया और कश्मीर पर आमसहमति बनाने के एक प्रस्ताव को ब्लॉक कर दिया। कुछ ही महीने बाद ईरान ने भारत पर आरोप लगा दिया कि कश्मीर में ओआईसी के राजदूतों को जाने से रोका गया है। १९९४ में ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हसन रूहानी भारत यात्रा पर आए। उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले व्यवहार का मसला उठा दिया। इसी साल ईरान के राष्ट्रपति अली अकबर रफसंजानी का भारत दौरा रद किया गया। इसके बाद भारत और ईरान के बीच संबंधों में सुधार आया।

गुजरात दंगे

२००२ में गुजरात में हुए दंगों पर ईरान सरकार ने चिंता तो जताई लेकिन कठोर शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। दरअसल, ईरान ने इन दंगों को भारत का अंदरूनी मसला करार दिया। २००३ में ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी ने भारत का दौरा किया लेकिन इस दौरान कोई अवांछित बयानबाजी नहीं की।

खेमनई कई बार कश्मीर का मसला उठा चुके हैं। २०१७ और २०१० में खेमनई ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय को कश्मीर के 'संघर्ष' को समर्थन देना चाहिये।

भारत में शिया

ईरान में शिया जनसंख्या करीब ६ करोड़ ६० लाख है। इसके बाद भारत में सर्वाधिक शिया हैं जिनकी तादाद ढाई करोड़ के आसपास अनुमानित है।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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