TRENDING TAGS :
किसानों को सलाह: ऐसे करें फसलों का बचाव, कृषि रक्षा अधिकारी ने बताये उपाय
वे खरीफ फसलों में लगने वाले कीटों और रोगों से बचाव हेतु अपने खेत की सतत् निगरानी करते हुये फसल में निम्नानुसार लक्षण दिखाई देने पर दिये गये विवरण के अनुसार बचाव कार्य करें।
जौनपुर : फसलों पर लगने वाले कीड़ों से बचाव के लिए कई तरह के उपाय किए जा सकते है। जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश कुमार राय ने किसानों को सलाह दी है कि वे खरीफ फसलों में लगने वाले कीटों और रोगों से बचाव हेतु अपने खेत की सतत् निगरानी करते हुये फसल में निम्नानुसार लक्षण दिखाई देने पर दिये गये विवरण के अनुसार बचाव कार्य करें। अरहर और धान का पत्ती लपेटक पीले रंग की सूड़ियां पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बना लेती हैं और उसी में छिपी पत्तियों को खाती हैं और बाद में फूलों, फलों को नुकसान पहुंचाती हैं।
यह पढ़ें...बैंक ग्राहकों को तगड़ा झटका! बंद होने जा रही ये जरूरी सर्विस, जानिए क्या करना होगा
फसल के लिये हानिकारक
इनसे बचाव हेतु मोनोक्रोटोफाॅस 36 प्रतिशत 1.000 लीटर या क्यूनालफाॅस 25 प्रतिशत 1.250 लीटर प्रति हे की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का तना छेदक के लिए इस कीट की पूर्ण विकसित सूड़ी हल्के पीले रंग के शरीर तथा नारंगी पीले रंग की सिर वाली होती है जो फसल के लिये हानिकारक है। इनके आक्रमण के फल स्वरूप फसल के वानस्पतिक अवस्था में मृत गोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है।
इनके नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान 3जी 20 किग्रा या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 प्रतिशत दानेदार चूर्ण 17-18 कि ग्रा प्रतिहेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। धान की पत्तियों का भूरा धब्बा होने पर पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अण्डाकार धब्बे दिखाई देते हैं तथा इन धब्बों के चारों तरफ हल्के पीले रंग का घेरा बन जाता है जो इस रोग का विशेष लक्षण है। इसके उपचार हेतु मैंकोजेब 75 प्रतिशत या जिनेब 75 प्रतिशत रसायन को 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
अनियमित आकार के धब्बे
धान का शीथ झुलसा हेतु पत्तियों के निचले भाग पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं जिनका किनारा गहरा भूरा तथा बीच में हल्के रंग का होता है। इसके उपचार हेतु कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत एक कि0ग्रा0 या कार्बेण्डाजिम 500 ग्राम और मैंकोजेब 75 प्रतिशत रसायन 250 ग्राम मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का जीवाणु झुलसा पडने पर पत्तियों की नोक और उनके किनारे सूखने लगते हैं और किनारे अनियमित एवम् टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। लक्षण दिखते ही यूरिया की टापड्रेसिंग रोक देनी चाहिये और उपचार कार्य हेतु कापर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घुचू 500 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम मिलाकर प्रतिहेक्टेयर की दर से 800लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
यह पढ़ें...जेपी नड्डा तैयार: बिहार चुनाव पर बनी रणनीति, 29 अगस्त को बड़ी बैठक
पत्तियों पर सुनहरे पीले चकत्ते पड़ने
उरद और मूंग का पीला चित्र वर्ण रोग में पत्तियों पर सुनहरे पीले चकत्ते पड़ने लगते हैं और रोग की उग्र अवस्था में पूरी पत्ती पीलीपड़ जाती है। पूर्ण रूप से रोग ग्रस्त पौधे को उखाड़ कर नष्ट कर दें तथा उपचार कार्य हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी 01.500 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। धान का फुदका रोग में इस कीट के शिशु एवम् प्रौढ़ दोनों पौधों के किल्लों के बीच रहकर पत्ती का रस चूसते हैं।
आवश्यकता से अधिक चूसा हुआ रस निकलने के कारण पत्तियों पर काला कंचुल हो जाता है। वनस्पतिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधे छोटे रह जाते हैं। इसे हापर बर्न कहते हैं। इसके उपचार हेतु नीम आयल 1.500 लीटर या क्यूनालफाॅस 25 प्रतिशत 1.500 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 250 मिली प्रतिहेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कपिल देव मौर्य जौनपुर