बेसिक शिक्षा विभाग में मचा हड़कंप, शुरू हुई कम्पोजिट ग्रांट की जांच

यहां बता दें कि इस योजना के तहत सरकार ने तय किया कि जिस विद्यालय में 100 बच्चों तक की संख्या है ऐसे विद्यालयों को सालाना खर्च 25 हजार रुपए।

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Published on: 17 Aug 2020 6:16 PM GMT
बेसिक शिक्षा विभाग में मचा हड़कंप, शुरू हुई कम्पोजिट ग्रांट की जांच
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जौनपुर: बेसिक शिक्षा विभाग में शासन के निर्देश पर प्राथमिक विद्यालयों को दी जाने वाली कम्पोजिट ग्रांट की जांच शुरू होने से शिक्षकों में हड़कंप मचा हुआ है। शासनादेश के अनुसार इस ग्रांट के तहत मिलने वाली तीन साल की धनराशि के खर्चे का ब्यौरा मांगा गया है। साथ ही बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा दिये गये ब्योरे के क्रम में सत्यापन शुरू कर दिया गया है। सही मिलान न होने की दशा में प्रधानाध्यापक को कारण बताओ नोटिस जारी किया जा रहा है। इससे शिक्षकों में हड़कंप मचा है। इस जांच के तहत अब तक 6 विद्यालयों को नोटिस दी गयी है।

हर स्कूल में हो रही जांच

यहां बता दें कि इस योजना के तहत सरकार ने तय किया कि जिस विद्यालय में 100 बच्चों तक की संख्या है ऐसे विद्यालयों को सालाना खर्च 25 हजार रुपए। जहां पर सौ से अधिक बच्चे हैं ऐसे विद्यालयों में 50 हजार रूपये सालाना खर्च, तथा साढ़े तीन सौ से अधिक बच्चो वाले विद्यालयों को 75 हजार रुपये सालना खर्चे हेतु देने की व्यवस्था बनायी गयी है। इस धनराशि में विद्यालयों की रंगाई पोताई कुर्सी मेज, स्टेश्नरी ,एवं खेल के सामान आदि की व्यवस्था करनी होती है।

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शासनदेश के अनुसार इस धनराशि को खर्च करने के लिए विद्यालय प्रबन्ध समिति बनाने का नियम है। लेकिन यह कागज पर होता है सब कुछ प्रधानाध्यापक ही करता है। जनपद जौनपुर में प्राथमिक एवं जूनियर हाई स्कूल मिला कर कुल 3200 विद्यालय है। इसमें 80 प्रतिशत विद्यालयों को 50 हजार, 15 प्रतिशत विद्यालयों को 25 हजार एवं 5 प्रतिशत विद्यालयों को 75 हजार रुपये की धनराशि दिये जाने की पुष्टि बेसिक शिक्षा विभाग करता है।

शिक्षकों का आरो़प सरकार के इशारे पर हो रहा शिक्षकों का शोषण

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शासनदेश के तहत सभी विद्यालयों से उपभोग प्रमाण पत्र ऑनलाइन मांगा गया था। अब उसकी जांच शुरू हो गयी है। उपभोग प्रमाण पत्र के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत विद्यालय है जहां पर सामान नहीं है। अब यहां पर अधिकार सरकारी धन की लूट पाट का आरोप लगाते हुए कार्यवाही की बात कर रहे हैं। तो शिक्षक कहते हैं कि सामान टूट गये अथवा खराब हो गये तो उसे विद्यालयों में रखने की व्यवस्था नहीं है।

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ऐसे में कबाड़ खाने सामान चले गये अब अधिकारी इसे आधार बना कर शिक्षकों के शोषण की तैयारी में है। तीन साल का लेखा जोखा कहां से शिक्षक लाएगा। शिक्षकों का आरोप है कि यह सब सरकार के इशारे पर शिक्षकों का उत्पीड़न करने का रास्ता खोजा गया है। अधिकांश धनराशि तो पेन्टिंग में खर्च हुईं हैं। अधिकारी कहते हैं इसमें जो भी दोषी मिलेगा दन्डित किया जायेगा। वसूली भी संभव है।

रिपोर्ट- कपिल देव मौर्य

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