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कानपुर खूनी खेल: खादी और खाकी के संरक्षण में पल रहे अपराधी
आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का अपने क्षेत्रों में दबदबा होता है। अपराधियों की राजनीति में धड़ल्ले से इंट्री हो रही है और वे चुनाव जीतकर सफेदपोश बन जाते हैं।
झाँसी: कानपुर के बिकरू गांव में कुख्यात अपराधी विकास दुबे व उसके साथियों ने दबिश देने गई पुलिस पार्टी को घेर कर ताबड़तोड़ फायरिंग करके सीओ सहित 8 पुलिसकर्मियों को शहीद कर दिया। इस दुस्साहसिक घटना के बाद पूरे प्रदेश में सनसनी फैल गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
पुलिस टीमें आरोपी विकास दुबे की तलाश में लगातार दबिश दे रही हैं पर वह अभी पुलिस की गिरफ्त से दूर है। इस घटना के बाद एक बार फिर खादी, खाकी और अपराधी के गठजोड़ पर बहस शुरू हो गई है। कई ज्वलंत सवाल उठ रहे हैं। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप मढ़ रहे हैं।
खाकी-खादी और अपराधी का पुराना रिशता
खादी पहनने पर समाज में जो रुतबा, हैसियत, दौलत और पॉवर हासिल की जा सकती है इसकी सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। यही कारण है कि राजनीति के मैदान में ताल ठोंकने वाला हर शख़्स ऊंचे-ऊंचे ख़्वाब का संजोने लगता है। किन्तु चुनाव की वैतरणी पार करना आसान नहीं है। इसके लिए जनता का विश्वास और वोट हासिल करना पड़ता है। जनता उसे ही अपना मत देती है जिसे वह पसंद करती है। जिससे भविष्य के प्रति उम्मीद रखती है या फिर जिससे खौफ खाती है। लगभग सभी राजनीतिक दल चुनावों में तमाम समीकरण को साधते हुए उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट देते हैं जिनके जीतने के आसार होते हैं। आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का अपने क्षेत्रों में दबदबा होता है। अपराधियों की राजनीति में धड़ल्ले से इंट्री हो रही है और वे चुनाव जीतकर सफेदपोश बन जाते हैं।
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देश में राजनीति का अपराधीकरण जिस तेजी से हुआ उसने कानून व्यवस्था की स्थिति को खुलेआम चुनौती मिली है। रही बात पुलिस की तो वह भी आम नागरिकों को तो छोटे-छोटे मामलों में सलाखों के पीछे झोंकने में बड़ी तत्परता दिखाती है पर रसूखदार और कुख्यात अपराधियों को प्रश्रय देती है। हमेशा से पुलिस पर बड़े अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं। कानपुर के बिकरू गांव के कुख्यात अपराधी, हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की कहानी में भी यही तथ्य अभर कर सामने आ रहे हैं। हत्या, हत्या के आरोप जैसे दर्जनों संगीन अपराधों के आरोपी विकास दुबे ने राजनीति में भी अच्छी पैठ बना रखी थी। उसकी कई पार्टियों के नेताओं से नजदीकी भी थी। उसने ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत तक के लिए ताल ठोंकी। उसकी हसरत माननीय बनने की है।
विकास दुबे भी इसी का एक उदाहरण
सूत्र बताते हैं कि चुनावों के समय तो विकास दुबे की चौखट पर नेताओं का जमघट लगा रहता था। उसका समर्थन हासिल करने की होड़ लगी रहती थी। विकास का अपने गांव के साथ-साथ आसपास के कई गांवों में इतना खौफ है कि कोई उंसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। कानपुर शूटआउट के बाद एक बार फिर खादी, खाकी और अपराधियों के गठजोड़ पर बहस शुरू हो गई है। जिला कोई भी हो यह गठबंधन गजब ढा रहा है। कानपुर जैसी घटनाओं में निर्दोष व जांबाज पुलिसकर्मियों को शहादत देनी पड़ी। काश! विकास दुबे जैसे अपराधी पर पहले ही शिकंजा कस गया होता तो आज यह दिन नहीं देखने पड़ते।
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पूरे देश-प्रदेश को झकझोर देने वाली घटना नहीं होती। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे। पुलिस स्वतंत्र, निष्पक्ष और त्वरित कार्रवाई करे तो अपराधियों की इतनी मजाल नहीं कि वह खाकी पर फायरिंग कर सकें। पर कई बार दबाव में पुलिस कार्रवाई नहीं कर पाती और अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। झांसी सहित बुंदेलखंड के अन्य जनपदों में भी विकास दुबे जैसे कई दुर्दांत अपराधी हैं जिन पर हाथ डालने से पुलिस भी बचती है। कई अपराधियों ने तो खादी का चोला ओढ़ लिया है या खादी की छत्रछाया में आए गए हैं।
रिपोर्ट- बी के कुशवाहा