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Jhansi News: स्ट्रोक के मामले में ये एक चीज बेहद जरूरी नहीं तो हमेशा के लिए हो सकता है पैरालिसिस या फिर मौत

Jhansi News: वर्ल्ड वाइड हर चार में से एक व्यक्ति को स्ट्रोक प्रभावित कर रहा है। भारत में हालात और भी ज्यादा भयावह है क्योंकि यहां युवा आबादी भी इसका शिकार बन रही है। इसी चिंता के मद्देनजर यथार्थ हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा में कंसल्टेंट न्यूरो सर्जन डॉक्टर चिराग गुप्ता ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी और बताया कि बचाव के लिए क्या जरूरी है।

B.K Kushwaha
Published on: 31 July 2023 5:21 PM IST
Jhansi News: स्ट्रोक के मामले में ये एक चीज बेहद जरूरी नहीं तो हमेशा के लिए हो सकता है पैरालिसिस या फिर मौत
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Dr Chirag Gupta Neuro surgeon Yatharth Hospital Noida on Heart Stroke, Jhansi

Jhansi News: स्ट्रोक के मामले काफी ज्यादा बढ़ रहे हैं जो पूरी दुनिया में एक चिंता का कारण है। वर्ल्ड वाइड हर चार में से एक व्यक्ति को स्ट्रोक प्रभावित कर रहा है। भारत में हालात और भी ज्यादा भयावह है क्योंकि यहां युवा आबादी भी इसका शिकार बन रही है। इसी चिंता के मद्देनजर यथार्थ हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा में कंसल्टेंट न्यूरो सर्जन डॉक्टर चिराग गुप्ता ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी और बताया कि बचाव के लिए क्या जरूरी है।

स्ट्रोक के मामले से बचाव में सबसे जरूरी ये है कि डॉक्टरों से लेकर यंग जनरेशन तक के बीच इसके बारे में अवेयरनेस रहे, उन्हें रिस्क फैक्टर्स का पता रहे और वो इससे बचाव के लिए लाइफस्टाइल में आवश्यक बदलाव को एक्सेप्ट कर सकें। इस लेख में समय पर डायग्नोज की इंपोर्टेंस बताई गई है जिसकी मदद से मरीज को स्ट्रोक के कारण होने वाले परमानेंट पैरालिसिस या मौत से बचाया जा सकता है।

स्ट्रोक अक्सर खराब लाइफस्टाइल के कारण होता है। अनहेल्दी खाना, तनाव, धूम्रपान, ज्यादा शराब का सेवन, कम शारीरिक गतिविधियों के कारण इसका खतरा बढ़ता है। अगर हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज और मोटापा हो तो स्मोकिंग, स्ट्रेस जैसी चीजें स्थिति को और बिगाड़ देती हैं और स्ट्रोक का रिस्क ज्यादा रहता है।

बचाव के तरीके

हेल्दी डाइट इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि इसकी मदद करीब 80 फीसदी स्ट्रोक के मामलों में बचाव हो जाता है। जंक फूड से बचें, ज्यादा मीट और अंडा न खाएं, डाइट बैलेंस रखें ताकि लंबे समय पर स्ट्रोक के रिस्क फैक्टर कम रहें। लगातार एक्सरसाइज करना इसमें बेहद जरूरी है, इसकी मदद से ब्लड प्रेशर लेवल सही रहता है, ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है और ब्लड वेसल्स में प्लेक नहीं डेवलप होता है जिससे स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है।

हार्ट अटैक की तुलना में स्ट्रोक ज्यादा घातक हो सकता है। फिजिकली एक्टिव न रहना और हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल के चलते कम उम्र में ही स्ट्रोक का खतरा बढ़ा देते हैं, इसलिए, समय पर स्ट्रोक के लक्षणों को पहचानना जरूरी है ताकि वक्त पर इलाज कराया जा सके और बचाव किया जा सके।

एस मेथड

लोगों को इस एस मेथड की जानकारी होना बेहद जरूरी है। लक्षणों की अचानक शुरुआत, ठीक से न बोल पाना या बोलने में दिक्कत होना, बांह, चेहरे, पैर या तीनों अंगों के साइड में कमजोरी होना, सिर घूमना, या चकराना, पूरे सिर में तेज दर्द होना, लक्षण देखकर तुरंत अस्पताल जाना।

स्ट्रोक के मामले में देरी है खतरा

अध्ययनों से पता चला है कि इस्केमिक स्ट्रोक (ब्लड वेसल के ब्लॉकेज से होता है) के इलाज में एक मिनट की देरी में, एक मरीज 19 लाख ब्रेन सेल्स, लगभग 140 करोड़ नर्व कनेक्शन और 12 किमी नर्व फाइबर को खो सकता है, अगर समय पर डॉक्टर को न दिखाया जाए तो हमेशा के लिए पैरालिसिस हो सकती है या मौत भी हो सकती है।

एडवांस ट्रीटमेंट मेथड

स्ट्रोक का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज ने किस तरह का स्ट्रोक महसूस किया है। लगभग 85% स्ट्रोक इस्केमिक होते हैं और लक्षण शुरू होने के 4.5 घंटे के भीतर टीपीए जैसी इंट्रावेनस मेडिकेशन के जरिए मैनेज किए जा सकते हैं। बड़ी रक्त वाहिकाओं में ब्लॉकेज से जुड़े मामलों के लिए, मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी बहुत ही असरदार ट्रीटमेंट ऑप्शन रहता है। इस प्रक्रिया में बाइप्लेन टेक्नोलॉजी के जरिए ब्लड फ्लो को ठीक करने के लिए क्लॉट हटाए जाते हैं। बाइप्लेन टेक्नोलॉजी की मदद से ब्रेन ब्लड वेसल्स की 3-डी इमेज मिलती है जिसके जरिए डॉक्टर बहुत ही सुरक्षित तरीके से क्लॉट हटा पाते हैं।

स्ट्रोक के विनाशकारी असर से बचाव के लिए समय पर डाईगनोसिस बहुत महत्वपूर्ण है। रिस्क फैक्टर्स को पहचानकर, एक स्वस्थ जीवन शैली को अपनाकर, और 6-एस विधि के बारे में जागरूक होकर, व्यक्ति खुद अपनी परेशानियों को ठीक कराने की सोचेगा। मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी जैसे एडवांस मेथड से ब्लड फ्लो री-स्टोर करने में शानदार कामयाबी मिली है। इस तरह के ट्रीटमेंट मेथड्स के बारे में लोगों को अवेयर करके हम हजारों जिंदगी बचा सकते हैं, परमानेंट पैरालिसिस से बचाव कर सकते हैं, और हमारे समाज पर बढ़ रहे स्ट्रोक के बोझ को घटा सकते हैं।



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B.K Kushwaha

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