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Jhansi News: बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज से बढ़ रही टेंशन, एक्शन की जरूरत – डॉक्टर सौरभ शिशिर अग्रवाल
Jhansi News: कोविड-19 महामारी का असर यह हुआ कि बच्चों में एक अप्रत्याशित परेशानी पनपने लगी। अमेरिका में हुई हाल की स्टडी से पता चला है कि बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 दोनों किस्म की डायबिटीज का खतरा बढ़ा है।
Jhansi News: कोविड-19 महामारी का असर यह हुआ कि बच्चों में एक अप्रत्याशित परेशानी पनपने लगी। अमेरिका में हुई हाल की स्टडी से पता चला है कि बच्चों में टाइप-1 और टाइप-2 दोनों किस्म की डायबिटीज का खतरा बढ़ा है। हैरानी की बात ये है कि एक साल के अंदर ही टाइप-1 डायबिटीज के मामलों में 48 फीसदी और टाइप-2 डायबिटीज के मामलों में 231 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यह बात डॉक्टर सौरभ शिशिर अग्रवाल ने बच्चों में बढ़ रही डायबिटीज की समस्या पर चिंता जाहिर की और बताया कि कैसे इससे बचाव किया जा सकता है।
डॉक्टर सौरभ शिशिर अग्रवाल ने कहा कि एक एंडोक्राइनोलॉजिस्ट के तौर पर मैं ये कह सकता हूं कि ये चिंताजनक स्थिति सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगी। हम डेली रूटीन में ये देख रहे हैं कि यंग बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज की समस्याएं पैदा हो रही हैं और उसके बहुत ही तेजी से दुष्प्रभाव भी बढ़ रहे हैं, अगर इसका इलाज न किया जाए बढ़ता ब्लड ग्लूकोज लेवल खतरनाक स्तर तक पहुंच सकता है और हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकता है।
बच्चों की टाइप-2 डायबिटीज कहीं ज्यादा एग्रेसिव
बच्चों के टाइप-2 डायबिटीज को लेकर धारणा है कि ये बड़ों को होनी वाली डायबिटीज का एक हल्का रूप है। हालांकि, ये धारणा गलत है क्योंकि बच्चों की टाइप-2 डायबिटीज कहीं ज्यादा एग्रेसिव, तेजी से बढ़ने वाली है और इसके इलाज में विफलता का रेट भी ऊंचा है। बच्चों के टाइप-2 डायबिटीज पर होने वाली टूडेज ट्रायल की स्टडी में चिंताजनक जानकारी सामने आई है, जिन बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज की समस्या होती है, उनमें डायबिटीज से जुड़ी समस्याएं कम उम्र में ही होने का खतरा रहता है।
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बच्चों में कैसे होती है टाइप-2 डायबिटीज
बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज होने के कई कारण होते हैं। अगर किसी डायबिटीज फैमिली हिस्ट्री हो, ज्यादा वजन हो, फिजिकल एक्टिविटी कम हो तो टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका रहती है। कोरोना महामारी में लॉकडाउन लगा तो ये दिक्कतें और ज्यादा बढ़ गईं। बच्चे घरों के अंदर कैद हो गए, खेल कूद बंद हो गया और एक्सरसाइज से भी दूर हो गए। इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का ज्यादा इस्तेमाल करने और स्क्रीन पर ज्यादा वक्त गुजारने के अलावा स्ट्रेस, खाने-पीने की गलत आदतें परेशानी को और बढ़ा देती हैं। हमें छोटे बच्चों को खाने की सही आदतों को अपनाने और रेगुलर फिजिकल एक्सरसाइज करने के लिए मोटिवेट करना होगा। ये जिम्मेदारी सिर्फ परिवारों की नहीं, बल्कि स्कूलों और सोसाइटी की भी है।
बच्चों की लाइफ में हेल्दी लाइफस्टाइल शामिल करना होगा
हमें बच्चों की लाइफ में हेल्दी लाइफस्टाइल को शामिल करना होगा, जो स्कूल हैं उन्हें न्यूट्रिशन और फिजिकल एजुकेशन प्रोग्राम चलाने की जरूरत है जो बच्चों को एम्पावर कर सकें और अपनी हेल्थ को सही रखने के लिए विकल्प दे सकें। इसके अलावा यूं ही लेजी रहने की जगह एंटरटेनिंग एक्टिविटी और फिजिकल एक्टिविटी को प्राथमिकता दें। बच्चों में इस तरह के बदलाव लाकर उनकी हेल्थ को बेहतर किया जा सकता है। घर पर माता-पिता इसके लिए बच्चों के उदाहरण बनें, उन्हें हेल्दी फूड के लिए प्रेरित करें, स्क्रीन पर कम वक्त देने के लिए कहें, और एक फैमिली की तरह सब मिलकर फिजिकल एक्टिविटी में शामिल हों। इस तरह के चेंज एक हेल्दी वातावरण क्रिएट करेंगे जिससे बच्चों की हेल्थ पर सकारात्मक असर होगा।