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बस एक क्लिक और जाने हाईकोर्ट की दिन-भर की तमाम बड़ी खबरें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आजमगढ़ के संदीप श्रीवास्तव व अन्य परिवार के लोगों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आजमगढ़ के समक्ष चल रहे दहेज उत्पीड़न व घरेलू हिंसा के मुकदमे सुनवाई पर रोक लगा दी है।

Vidushi Mishra
Published on: 1 Nov 2019 9:42 PM IST
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कोर्ट की रोक के बावजूद चल रहे आपराधिक मुकदमे की सुनवाई पर रोक

जवाब तलब, नोटिस जारी

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आजमगढ़ के संदीप श्रीवास्तव व अन्य परिवार के लोगों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आजमगढ़ के समक्ष चल रहे दहेज उत्पीड़न व घरेलू हिंसा के मुकदमे सुनवाई पर रोक लगा दी है।

कोर्ट ने शिकायतकर्ता पत्नी को नोटिस जारी कर राज्य सरकार सहित विपक्षियों से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने दिया है। याची अधिवक्ता निर्विकल्प पांडे ने बहस की।

उनका कहना है की याची के भाई प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की शादी 21 फरवरी 2009 को हुई थी। 20 जनवरी 2017 में प्रदीप कुमार की मृत्यु हो गई। उनके जीवन काल में ही 11 नवंबर 2010 को पत्नी ने दहेज उत्पीड़न व घरेलू हिंसा के आरोप में एफ आई आर दर्ज कराया था।

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इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता समझौता करवाया जिसके तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी गई। इसके बावजूद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष याचियों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई जारी है। जिसे याचिका में चुनौती दी गई है।

तथ्य को छिपाकर दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप से इनकार

हर्जाने के साथ याचिका खारिज

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जो न्याय के लिए कोर्ट में आता है, उसे स्वच्छ हृदय से सही तथ्यों के साथ याचिका दाखिल करनी चाहिए। यदि तथ्य को छुपाकर या तोड़ मरोड़ कर याचिका दाखिल होती है, तो कोर्ट ऐसे मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर सकती है।

यह आदेश न्यायमूर्ति बी.के. नारायण तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने बलिया के नृपेन्द्र कुमार दौसिया की याचिका पर दिया है। याचिका में बलिया के सोहन ब्लाक के चितबड़ा गांव में किसान सेवा केंद्र विलेज रिटेल आउटलेट डीलरशिप देने में घपले की जांच करने तथा नीलामी पर रोक लगाने की मांग की गई थी।

याची का कहना था कि उसने 30 मार्च 2017 को उसकी शिकायत की है। जबकि उसने ऐसी कोई शिकायत 30 मार्च को नहीं की। याची ने अपने हलफनामे में ही स्वीकार किया है कि उसने पहली बार 27 अप्रैल 2017 को शिकायत की है।

कोर्ट ने कहा याची ने कोर्ट के समक्ष सही तथ्य पेश नहीं किया। ऐसे में समय के भीतर प्रत्यावेदन दाखिल होने के बावजूद उसे कोर्ट से कोई राहत नहीं दी जा सकती।

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कोर्ट ने कहा कि याचिका दाखिल करते समय पक्षकार का यह दायित्व है कि वह संपूर्ण तथ्यों के साथ कोर्ट में आए और यदि ऐसा वह नहीं करता तो कोर्ट याचिका की सुनवाई करने से इंकार कर सकती है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है।

प्रमुख सचिव चिकित्सा आदेश का पालन करे या हो हाजिर

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव चिकित्सा प्रशांत त्रिवेदी को कोर्ट के आदेश का पालन करने का निर्देश दिया है और सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता तो वह 21 नवंबर को कोर्ट में हाजिर हो।

यह आदेश न्यायमूर्ति एम.सी. त्रिपाठी ने आगरा के डा. महेश प्रसाद की अवमानना याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता राघवेन्द प्रसाद मिश्र ने बहस की। इनका कहना है कि याची आगरा में सेवा सेवानिवृत्त आयुर्वेदिक डाक्टर के रूप में निवास कर रहा है।

याची को सेवा पद ग्रहण करने की तिथि से सेवानिवृत्त परिणामों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। जिसको लेकर उसने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव को याची के पदभार ग्रहण करने की तिथि सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान करने पर निर्णय लेने का आदेश दिया।

आदेश की प्रति सचिव को उपलब्ध कराए जाने के बावजूद उसका पालन नहीं किया गया। जिस पर यह अवमानना याचिका दाखिल की गई है। याचिका की सुनवाई 21 नवंबर को होगी।

जानलेवा हमला करने के आरोपी के पुलिस उत्पीड़न पर रोक

राज्य सरकार से मांगा जवाब

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सराय इनायत, ग्राम कोटवा निवासी नितिन कुमार पांडे उर्फ सूरज पांडेय के पुलिस उत्पीड़न पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से जवाब मांगा है। इनके खिलाफ इलाहाबाद के कीडगंज थाने में परेड ग्राउंड में 16 जुलाई 2019 को आशीष सिंह पर फायर करने का आरोप है।

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी तथा न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने नितिन कुमार पांडे की याचिका पर दिया है। याचिका की सुनवाई 19 नवंबर को होगी। याची अधिवक्ता कुंजेश कुमार दुबे का कहना है कि 16 जुलाई 19 को परेड ग्राउंड प्रयागराज में आशीष सिंह पर अंशु मिश्रा व अन्य कुल 7 लोगों ने जानलेवा हमला किया।

याची का नाम एफआईआर में नहीं है। बाद में मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 के तहत दर्ज बयान में याची को भी फायर करने का आरोपी बनाया गया जिसको लेकर इलाहाबाद की पुलिस ने याची के सराय इनायत कोटवा आवास पर 30 अक्टूबर को छापा मारा और याचिका के पिता व बड़े भाई को गिरफ्तार कर लिया तथा परिवार की महिलाओं के साथ बदतमीजी की।

एफआईआर दर्ज कर परिवार के लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई में अवरोध उत्पन्न का आरोप लगाया गया है। घटना के बाद याची ने हाईकोर्ट की शरण ली है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस संबंध में जानकारी मांगी है और तब तक के लिए याची को विवेचना में सहयोग करने की शर्त पर राहत दी है। याचिका की सुनवाई 19 नवंबर को होगी।

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हाईकोर्ट के जज सुधीर अग्रवाल ने 15 साल में सवा लाख से अधिक केसों का किया निस्तारण

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने मुकदमों के निस्तारण में एक नया रिकर्ड कायम किया है। जस्टिस अग्रवाल ने अपने 15 साल के कार्यकाल में 31 अक्टूबर 2019 तक कुल 1,30,418 मुकदमों का निस्तारण कर एक नया कीर्तिमान बनाया है।

ऐसा करने वाले जस्टिस अग्रवाल देश के एकमात्र न्यायाधीश हैं। उनके फैसलों में कई ऐसे चर्चित फैसले भी शामिल है जो अपने आप में एक नजीर हैं। जस्टिस अग्रवाल ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर निर्णय सुना कर ख्याति अर्जित की इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट का भी फैसला आने वाला है।

राम जन्म भूमि के अलावा जस्टिस अग्रवाल ने शंकराचार्य ज्योतिष्पीठपीठ विवाद पर महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। इसके अलावा चर्चित मुकदमों की फेहरिस्त में मंत्रियों और सरकारी अफसरों के बच्चों को सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का निर्देश, सरकारी कर्मचारियों को सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराने का निर्देश, अवैध कब्जे वाली नजूल भूमि को मुक्त कराकर सरकार के कब्जे में देने का निर्देश जैसे कई महत्वपूर्ण फैसले शामिल है।

मूल रूप से आगरा के रहने वाले जस्टिस अग्रवाल ने स्नातक की शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय से तथा मेरठ विश्वविद्यालय से उन्होंने विधि स्नातक की उपाधि ली। 5 अक्टूबर 1980 से उन्होंने अपनी वकालत के करियर की शुरुआत की।

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शुरू में उन्होंने टैक्स मामलों में वकालत की मगर जल्द ही उनकी विशेषज्ञता सर्विस और इलेक्ट्रिसिटी मामलों में हो गई। वह उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के स्टैंडिंग काउंसिल भी रहे 19 सितंबर 2003 को जस्टिस अग्रवाल उत्तर प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता नियुक्त किए गए और अप्रैल 2004 को उनको वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया।

जस्टिस अग्रवाल ने 5 अक्टूबर 2005 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के अपर न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली तथा 10 अगस्त 2007 को वह हाई कोर्ट के नियमित जज नियुक्त किए गए अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने तमाम फैसले दिए हैं जो काफी चर्चित रहे। जस्टिस अग्रवाल हमेशा आम आदमी को राहत देने वाले निर्णयों के लिए जाने जाते हैं।

भ्रष्टाचार के आरोपी इंस्पेक्टर समेत कई पुलिस कान्सटेबिलों की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज भ्रष्टाचार के आरोपी गाजियाबाद में तैनात एक महिला पुलिस इंस्पेक्टर समेत कई पुलिस कान्सटेबिलों की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी। इन सभी के खिलाफ क्षेत्राधिकारी साहिबाबाद, गाजियाबाद ने 25 सितम्बर 19 को एक प्राथमिकी धारा 409 आईपीसी व 7/3 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की दर्ज कराई है।

इन पर लाखों का भ्रष्टाचार करने का आरोप है। यह आदेश जस्टिस डी.के. सिंह ने महिला पुलिस इंस्पेक्टर लक्ष्मी सिंह चैहान व 5 अन्य पुलिस कान्सटेबिलों की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

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अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता विनोद कान्त व सहयोगी अपर शासकीय अधिवक्ता अंकित कुमार का कहना था कि इन पुलिस कर्मियों ने एटीएम में पैसा डालने में लाखों का घपला करने वाले अभियुक्त राजीव सचान से पैसा की ज्यादा रिकवरी की और उसे कम दिखाया।

शासकीय वकीलों का कहना था कि इन पुलिस कर्मियों की टीम ने 70- 80 लाख का पब्लिक सर्वेन्ट होते हुए घपला किया है। रिकवरी में घपला किया पैसा भी मिल गया।

जिला जज ने याची महिला पुलिस इंस्पेक्टर व अन्य सभी पुलिस कान्सटेबिलांे की अग्रिम जमानत की याचिका पहले ही 15 अक्तूबर 19 को खारिज कर दी थी। इसके बाद यह अर्जी हाईकोर्ट में दाखिल की गयी थी।

याची पुलिस इंस्पेक्टर के अलावा अन्य पुलिस कान्सटेबिलो सचिव कुमार, धीरज भारद्वाज, बच्चू सिंह, सौरभ शर्मा व फिरोज खान की भी याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया था कि इन्हें गलत फंसाया जा रहा है। ये सभी लोग निर्दोष हैं।

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