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यहां भगवान शिव ने ध्यान भंग होते तीसरे नेत्र से कामदेव को कर दिया था भस्म
सावन के महीने में शिव मंदिरों का महत्व काफी बढ़ जाता है। सावन मास के हर सोमवार को शिव मंदिरों में कावरिये गंगा जल लेकर बोल बम के जयकारों के साथ लाइन में लगे रहते हैं। सावन मास में खास तौर से उन मंदिरों का महत्व और बढ़ जाता है जो स्थान पुराणों में वर्णित हैं।
गाजीपुर: सावन के महीने में शिव मंदिरों का महत्व काफी बढ़ जाता है। सावन मास के हर सोमवार को शिव मंदिरों में कावरिये गंगा जल लेकर बोल बम के जयकारों के साथ लाइन में लगे रहते हैं। सावन मास में खास तौर से उन मंदिरों का महत्व और बढ़ जाता है जो स्थान पुराणों में वर्णित हैं। ऐसा ही उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में कामेश्वर धाम का मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां पर भगवान शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था।
इस भूमि पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम, लक्ष्मण आए थे। ऋषि दुर्वासा ने यहां तप किया था। दूर-दूर से भक्त इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। पुराणों में वर्णित कामेश्वर धाम बलिया जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कारो गांव में स्थित है। कामेश्वर धाम का महत्व इसलिए अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि शिव पुराण और बाल्मीकि रामायण में वर्णित वही जगह है जहां कामदेव को भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भस्म कर दिया था।
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आज भी मौजूद है अधजला आम का वृक्ष
यहां आज भी अधजला आम का हरा भरा वृक्ष मौजूद है। यहां कामदेव ने तपस्या में लीन भगवान शिव को आम के वृक्ष के पीछे से छिपकर पुष्प बाण चलाया था। तब शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जलाकर भस्म कर दिया था। तब यह वृक्ष भी आधा जल गया था। यहां के बुजुर्गों का कहना है की यह वही आम का पेड़ है। जहां कामदेव ने छिपकर भगवान शंकर पर पुष्प बाण चलाया था। भगवान शिव के क्रोध से कामदेव के साथ-साथ वृक्ष भी आधा जल गया था। यह वृक्ष कभी सूखा नहीं ऐसे ही यह हरा भरा रहता है और इसे लोग अधजल वृक्ष कहते हैं। कालांतर में कई राजाओं और मुनियों की तपस्थली रहा है यह कामेश्वर धाम। बाल्मिकी रामायण के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम और लक्ष्मण के साथ विश्वामित्र यहां आए थे।
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आठवीं सदी में मंदिर निर्माण को लेकर
मंदिर के निर्माण के बारे में किसी को सही पता नहीं है। यहां के लोगों का कहना है कि मंदिर का निर्माण कब हुआ किसने कराया ये इतिहासकार ही बता सकते हैं, लेकिन वहीं बुजुर्गों व मंदिर के महंत राम दास का कहना है कि अवध के राजा कमलेश्वर ने आठवीं सदी में यहां मंदिर का निर्माण कराया जिनके नाम पर ही बलिया जिले के कारो गांव के मंदिर का नाम कामेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
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कामेश्वर धाम का महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस जगह पर विश्वामित्र के साथ भगवान राम व लक्ष्मण भी आये थे। यहीं पर महर्षि दुर्वासा ने भी तप किया है। अघोरपंथ के साधक किना राम बाबा की दिक्षा भी यहीं से शुरू हई थी।