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रो रो कर निढाल थीं मां और पत्नी, जब उठा शहीद का जनाजा
शनिवार सुबह घर से 300 मीटर दूर गंगा घाट पर शहीद दरोगा महेश यादव का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।
रायबरेली: शनिवार सुबह घर से 300 मीटर दूर गंगा घाट पर शहीद दरोगा महेश यादव का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। बड़े बेटे जिस समय पिता को मुखाग्नि दी घाट पर मौजूद हर आंख से आंसू बह निकले। इससे पहले पुलिस के जवानों ने शहीद को गार्ड आफ आनर दिया।
शहीद का पार्थिव शव सुबह करीब 8:30 बजे जब उठाया गया और अंतिम यात्रा चलने लगी तो मां और पत्नी रो-रो कर निढाल हो गई। वही शुक्रवार रात 9 बजे शहीद के पैतृक गांव सरेनी थाना क्षेत्र के बनपुरवा मजरे हिलौली में जब उनका पार्थिव शव पहुंचा तो डीएम-एसपी ने मौके पर पहुंचकर,और विधायक धीरेन्द्र सिंह,ने श्रधांजलि दी थी।
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शहीद महेश को श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे ये लोग
गौरतलब हो कि शनिवार को शहीद महेश को श्रद्धांजलि देने के लिए एडीएम, एडिशनल एसपी सहित एसडीएम और सीओ घाट पर पहुंचे। स्थानीय विधायक धीरेंद्र सिंह भी यहां पहुंचे। आपको बता दें कि गुरुवार रात करीब एक बजे थाने में चौबेपुर थाना क्षेत्र के बीकारू गांव में बदमाशों से मुठभेड़ की सूचना आई। इस पर महेश पुलिस दल के साथ मौके की ओर रवाना हो गए, जहां कुख्यात अपराधी विकास दुबे के साथ हुई मुठभेड़ में वह वीरगति को प्राप्त हो गए। इसकी जानकारी शुक्रवार सुबह करीब पांच बजे गांव पहुंची तो हाहाकार मच गया। पूरे गांव में गम और मातम का माहौल पसर गया।
1996 में सहारनपुर से पुलिस में सिपाही के पद पर भर्ती हुए
शहीद महेश कुमार यादव (45) वर्ष 1996 में सहारनपुर से पुलिस में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। वर्ष 2014 में दरोगा की परीक्षा में वह पास हो गए तो सबसे पहले एसएसपी कानपुर के पीआरओ की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके बाद ईमानदारी वह मेहनत रंग लाई तो कानपुर शहर के कई थानों की कमान सौंपी गई। दो वर्षों से वह कानपुर के शिवराजपुर थाने में थानाध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे।
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गुरुवार शाम को आखिरी बार अपनी मां रामदुलारी से बात करते हुए कहा था कि मां रात को हल्दी वाला दूध पीकर सोया करो, गुनगुना पानी पिया करो, कोरोना से बचाव करना बहुत जरूरी है। शहीद महेश आखिरी बार अपने गांव चाचा राजनारायण यादव की अंत्येष्टि में शामिल होने 14 जून को गांव आए थे। व्यस्तता के कारण चाचा की तेरहवीं में शरीक नहीं हो सके लेकिन पत्नी और बच्चे आये थे। तेरहवीं के बाद पिता देवनारायण भी महेश के पास कानपुर चले गए थे और अभी तक वहीं थे।
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